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Tuesday, 13 November 2018

सर्वश्रेष्ठ नागरिक बनिये !


कुछ समय से सोशल मीडिया पर कुछ लोगो को वैश्यो का तिरस्कार करते देख रही हूँ।
कभी लोग उनके सामाजिक योगदान पर सवाल करते है तो कभी उन्हें तरह-तरह के ताने देते है और कुछ लोग तो दो कदम आगे निकलकर उनके अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर रहे है 
मै भी एक वैश्य हूँ लेकिन पहले ये सबकुछ देखकर भी इग्नोर कर देती थी क्योकि ये बातें यूजलेस लगती थी लेकिन अब लोग हदे पार करने लगे है तो वैश्य जो अभी सिर्फ मौन है आज बताउंगी कि वो कौन है!
शुरुआत भारतीय इतिहास से करती हूँ तो आपको बताती हूँ कि भारतीय इतिहास मे वैश्यो का क्या योगदान था
प्राचीनकाल से वैश्यो की आर्थिक स्थिति अच्छी ही रही है
  राजस्थान के किले, हवेलियाँ आदि देखने के बाद आपने कभी सोचा कि उस राजस्थान में जहाँ का मुख्य कार्य कृषि ही था और राजस्थान में जब वर्षा भी बहुत कम होती थी तो उससे कृषि उपज का अनुमान भी लगाया जा सकता है कि कितनी उपज होती होगी? सिंचाई के साधनों की कमी से किसान की उस समय क्या आय होती होगी? जो किसी राजा को इतना कर दे सके कि उस राज्य का राजा बड़े बड़े किले व हवेलियाँ बनवा ले| जिस प्रजा के पास खुद रहने के लिए पक्के मकान नहीं थे| खाने के लिए बाजरे के अलावा कोई फसल नहीं होती थी| और बाजरे की बाजार वेल्यु तो आज भी कुछ नही  है तो उस वक्त क्या होगी? मेरा कहने का मतलब सिर्फ इतना ही है कि जिस राज्य की प्रजा गरीब हो वो राजा को कितना कर दे देगी ? कि राजा अपने लिए बड़े बड़े महल बना ले| राजस्थान में देश की आजादी से पहले बहुत गरीबी थी| राजस्थान के राजाओं का ज्यादातर समय अपने ऊपर होने वाले आक्रमणों को रोकने के लिए आत्म-रक्षार्थ युद्ध करने में बीत जाता था| ऐसे में राजस्थान का विकास कार्य कहाँ हो पाता ? और बिना विकास कार्यों के आय भी नहीं बढ़ सकती| फिर भी राजस्थान के राजाओं ने बड़े बड़े किले व महल बनाये, सैनिक अभियानों में भी खूब खर्च किया| जन-कल्याण के लिए भी राजाओं व रानियों ने बहुत से निर्माण कार्य करवाये| उनके बनाये बड़े बड़े मंदिर, पक्के तालाब, बावड़ियाँ, धर्मशालाएं आदि जनहित में काम आने वाले भवन आज भी इस बात के गवाह है कि वे जनता के हितों के लिए कितना कुछ करना चाहते और किया भी, अब सवाल ये उठता है कि फिर उनके पास इतना धन आता कहाँ से था ?
राजस्थान के शहरों में महाजनों की बड़ी बड़ी हवेलियाँ देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि उनके पास धन की कोई कमी नहीं थी कई सेठों के पास तो राजाओं से भी ज्यादा धन था और जरुरत पड़ने पर ये सेठ ही राजाओं को धन देते थे| राजस्थान के सेठ शुरू ही बड़े व्यापारी रहें है राजा को कर का बहुत बड़ा हिस्सा इन्हीं व्यापरियों से मिलता था| बदले में राजा उनको पूरी सुरक्षा उपलब्ध कराते थे| राजा के दरबार में सेठों का बड़ा महत्व व इज्जत होती थी| उन्हें बड़ी बड़ी उपाधियाँ दी जाती थी| सेठ लोग भी अक्सर कई समारोहों व मौकों पर राजाओं को बड़े बड़े नजराने पेश करते थे| एक ऐसा ही उदाहरण सुरेन्द्र सिंह जी सरवडी से सीकर के राजा माधो सिंह के बारे में सुनने को मिला था- राजाओं के शासन में शादियों में दुल्हे के लिए घोड़ी, हाथी आदि राजा की घुड़साल से ही आते थे| राज्य के बड़े उमराओं व सेठों के यहाँ दुल्हे के लिए हाथी भेजे जाते थे|

सीकर में राजा माधोसिंह जी के कार्यकाल में एक बार शादियों के सीजन में इतनी शादियाँ थी कि शादियों में भेजने के लिए हाथी कम पड़ गए| किंवदन्ती थी कि राजा माधो सिंह जी ने राज्य के सबसे धनी सेठ के यहाँ हाथी नहीं भेजा बाकि जगह भेज दिए| और उस सेठ के बेटे की बारात में खुद शामिल हो गए जब दुल्हे को तोरण मारने की रस्म अदा करनी थी तब वह बिना हाथी की सवारी के पैदल था यह बात सेठजी को बहुत बुरी लग रही थी| सेठ ने राजा माधो सिंह जी को इसकी शिकायत करते हुए नाराजगी भी जाहिर की पर राजा साहब चुप रहे और जैसे ही सेठ के बेटे ने तोरण मारने की रस्म पूरी करने को तोरण द्वार की तरफ तोरण की और हाथ बढ़ाया वैसे ही तुरंत राजा ने लड़के को उठाकर अपने कंधे पर बिठा लिया और बोले बेटा तोरण की रस्म पूरी कर| यह दृश्य देख सेठ सहित उपस्थित सभी लोग अचंभित रह गए| राजा जी ने सेठ से कहा देखा – दूसरे सेठों के बेटों ने तो तोरण की रस्म जानवरों पर बैठकर अदा की पर आपके बेटे ने तो राजा के कंधे पर बैठकर तोरण रस्म अदा की है| इस अप्रत्याशित घटना व राजा जी द्वारा इस तरह दिया सम्मान पाकर सेठजी अभिभूत हो गए और उन्होंने राजा जी को विदाई देते समय नोटों का एक बहुत बड़ा चबूतरा बनाया और उस पर बिठाकर राजा जी को और धन उपहार में  दिया| इस तरह माधोसिंह जी ने सेठ को सम्मान देकर अपना खजाना भर लिया|
इस घटना से आसानी से समझा जा सकता है कि राजस्थान के राजाओं के पास धन कहाँ से आता था| राजाओं की पूरी अर्थव्यवस्था व्यापार से होने वाली आय पर ही निर्भर थी न कि आम प्रजा से लिए कर पर|
व्यापारियों की राजाओं के शासन काल में कितनी महत्ता थी सीकर की ही एक और घटना से पता चलता है- सीकर के रावराजा रामसिंह एक बार अपनी ससुराल चुरू गए| चुरू राज्य में बड़े बड़े सेठ रहते थे उनके व्यापार से राज्य को बड़ी आय होती थी| चुरू में उस वक्त सीकर से ज्यादा सेठ रहते थे| जिस राज्य में ज्यादा सेठ उस राज्य को उतना ही वैभवशाली माना जाता था| इस हिसाब से सीकर चुरू के आगे हल्का पड़ता था| कहते है कि ससुराल में सालियों ने राजा रामसिंह से मजाक की कि आपके राज्य में तो सेठ बहुत कम है इसलिए लगता है आपकी रियासत कड़की ही होगी| यह मजाक राजा रामसिंह जी को चुभ गई और उन्होंने सीकर आते ही सीकर राज्य के डाकुओं को चुरू के सेठों को लूटने की छूट दे दी| डाकू चुरू में सेठों को लूटकर सीकर राज्य की सीमा में प्रवेश कर जाते और चुरू के सैनिक हाथ मलते रह जाते| सेठों को भी परिस्थिति समझते देर नहीं लगी और तुरंत ही सेठों का प्रतिनिधि मंडल सीकर राजाजी से मिला और डाकुओं से बचाने की गुहार की| राजा जी ने भी प्रस्ताव रख दिया कि सीकर राज्य की सीमाओं में बस कर व्यापार करो पूरी सुरक्षा मिलेगी| और सीकर राजा जी ने सेठों के रहने के लिए जगह दे दी, सेठों ने उस जगह एक नगर बसाया , नाम रखा रामगढ़| और राजा जी ने उनकी सुरक्षा के लिए वहां एक किला बनवाकर अपनी सैनिक टुकड़ी तैनात कर दी| इस तरह सीकर राज्य में भी व्यवसायी बढे और व्यापार बढ़ा| फलस्वरूप सीकर राज्य की आय बढ़ी और सेठों ने जन-कल्याण के लिए कई निर्माण कार्य यथा विद्यालय, धर्मशालाएं, कुँए, तालाब, बावड़ियाँ आदि का निर्माण करवाया| जो आज भी तत्कालीन राज्य की सीमाओं में जगह जगह नजर आ जाते है और उन सेठों की याद ताजा करवा देते है|

वैश्य हमेशा से ही अपने देश और धर्म के साथ रहे है और ये अभी से नही है बल्कि राजा महाराजाओं के समय से है वैश्य हमेशा से सबको फाइनेंसियल मदद करते आए है  जागीरों की प्रशासन व्यवस्था चलाने, सामंतों को ऋण प्रदान करने में, ब्रिटिश सरकार का कर चुकाने तथा राजपूतों को उनकी  सामाजिक रूढ़ियों और गौरव का निर्वाह करने के लिए समय समय पर सेठ साहूकारों की शरण लेनी पड़ती थी । इससे वैश्य महाजनों का सामाजिक और राजनितिक रुतबा भी बड़ा था। आदिकाल से लेकर मानव जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के हर क्षेत्र में वैश्य समाज का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा हैं महाराणा प्रताप के समय में यह बात उस समय सिद्ध हो गई जब राणा जी पर परेशानी पड़ी और सेना एकत्रित करने के लिये पैसा चाहिये था तो भामाशाह ने अशरफियों का ढेर उनके सामने लगा दिया। इसी प्रकार अन्य शासकों के शासनकाल में भी वैश्य समाज के योगदान को बादशाओं व राजाओं ने खूब सराहा और फिर उन्हे बड़ी बड़ी पदवियां भी दी।
कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि वैश्य समाज का मानव जाति के उत्थान में बहुत बडा योगदान रहा है, मेरा मानना है कि हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण वैश्य आखिर खराब कैसे हो सकते हैं। अगर कुछ लोगों को कमी दिखाई देती है तो वो पहले अपने अंदर झांककर देखे और जब वो एक उंगली दूसरे पर उठाता है तो तीन उंगलियां उस पर उठ रही हैं। 
क्योंकि कुछ भी कह लों जिस प्रकार अन्नदाता किसान के योगदान को कोई भी नकार नहीं सकता उसी प्रकार वैश्य व्यापारी और बनिया के योगदान को किसी भी क्षेत्र में कोई भी नकारने की स्थिति में सही मायनों में नहीं हैं। और गलत तरीके से किसी को परेशान करना अपनी ही हानि के मार्ग को खोलना ही कहा जा सकता है।
कुछ लोग तो ऐसे है जिन्हे पीएम मोदी इसलिए नही पसंद क्योकि वो वैश्य है तभी उनके लिए शेर की खाल गीदड़ या भेड़िया जैसे शब्दो का इस्तेमाल किया जाता है उनको भी बताना चाहूंगी कि भारतवर्ष के इतिहास मे गुप्तवंश का शासन सबसे ज्यादा न्यायप्रिय पराक्रमशाली समृद्ध और दीर्घकालिक रहा है और शेर तो शिकार करने की चीज है जो पहले भी होता था और गुपचुप तरीके से अब भी होता है

"यूनानी शासक सेल्यूकस के राजदूत मैगस्थनीज ने वैश्य समाज की विरासत की प्रशंसा में लिखा है-‘कि देश में भरण- पोषण के प्रचुर साधन तथा उच्च जीवन-स्तर, विभिन्न कलाओं का अभूतपूर्व विकास और पूरे समाज में ईमानदारी, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा प्रचुर उत्पादन वैश्यों के कारण है।"
"वैश्य समाज की समाजसेवा प्रवृत्ति की प्रशंसा में राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने दिल्ली में 22 फरवरी 2009 को भाषण के दौरान कहा था कि ‘इस समाज का प्रेम और सद्भाव देश को मंदी के दौर से उबारने में सक्षम है। समाज लोगों की मदद में जुटा हुआ है। सामान्य हैसियत वाला वैश्य बन्धु भी जनसेवा में पीछे नहीं है। ऐसा समाज ही देश को सुदृढ बनाने की क्षमता रखता है।"
"राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने 2 जनवरी 2009 को हैदराबाद में विचार प्रकट करते हुए कहा था कि ‘वैश्य समाज ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में बहुत बड़ा योगदान दिया । स्वतन्त्रता के बाद भी राष्ट्र निर्माण में वैश्य समाज की भूमिका सराहनीय रही। वैश्य समाज ने अपने वाणिज्यिक ज्ञान और व्यापारिक निपुणता का लोहा देश में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में मनवाया है। वैश्य समाज ने देश को बहुत से चिकित्सक, इंजीनियर, वैज्ञानिक समाजसेवी आदि दिए हैं तथा आर्थिक प्रगति और विकास कार्य में हमेशा भरपूर योगदान किया है।"

"डाॅ. दाऊजी गुप्त वैश्य समाज की विरासत को रेखांकित करते हुए लिखते हैं- ‘वणिकों ( वैश्यों ) की आश्चर्यजनक प्रतिभा का प्रथम दिग्दर्शन हमें हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राप्त होता है। उस समय जैसे वैज्ञानिक ढंग से बसाए गए व्यवस्थित नगर आज संसार में कहीं नहीं हैं।आज के सर्वश्रेष्ठ नगर न्यूयार्क, पेरिस, लंदन आदि से हड़प्पा सभ्यता के नगर कहीं अधिक व्यवस्थित थे। ललितकला शिल्पकला और निर्यात-व्यापार पराकाष्ठा पर थे। इनकी नाप-तौल तथा दशमलव-प्रणाली अत्यन्त विकसित थी। भारतीय वणिकों ने चीन, मिश्र, यूनान, युरोप तथा दक्षिणी अमेरिका आदि देशों में जाकर न केवल अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ाया अपितु उन देशों की अर्थव्यवस्था को भी सुधारा। ईसा से 200 वर्ष पूर्व कम्बोडिया, वियतनाम, इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड आदि देशों में जाकर बस गए। वहाँ उनके द्वारा बनवाए गए उस काल के सैंकड़ों मन्दिर आज भी विद्यमान हैं। उसी काल में वे व्यापारी भारत से बौद्ध संस्कृति को अपने साथ वहाँ ले गए। वणिकों ने भारतीय धर्म, दर्शन और विज्ञान से सम्बन्धित लाखों ग्रन्थों का अनुवाद कराया जो आज भी वहाँ उपलब्ध हैं।"

किन्तु वैश्य समाज की महान विरासत को इतिहास में उचित स्थान नहीं मिला। इतिहासकारों की संकुचित प्रकृति ही इसका कारण है। किसी देश व समाज का समग्र इतिवृत्त ही इतिहास का विषय होता है, पर प्रायः राजवंशों के उत्थान-पतन के साथ ही इतिहास के आरोह-अवरोह का संगीत चलता रहा है। राजवंशों का इतिहास दरबारी इतिहासकारों पर निर्भर रहा। ऐसे इतिहासकार पूर्ण सत्य का दर्शन न करा सके, फलस्वरूप अपूर्ण इतिहास केवल राजाओं के जन्म, राज्यारोहण, मृत्यु, युद्ध और सुधार के कार्यों में ही चक्कर काटता रहा।
भारत मे मुगलो और ब्रिटिश लूटपाट के बाद भी वैश्यो ने हिम्मत नही हारी बल्कि किसानी और पशुपालन का व्यवसाय किया और तबसे अब तक अपने निरंतर परिश्रम और गतिशीलता से आज भारत और विश्व के व्यावसायिक राजनीतिक व सभी क्षेत्रों मे अपना परचम लहराने मे सफल हुए है 
तो जिन्हें वैश्यो से आपत्ति है उनके लिए -

इसे पढ़ कर वैश्यो के बारे में उनकी धारणा ठीक हो जाएगी जिन्हे कुछ भी भ्रम है भारत में वैश्यो की मौजूदा स्थिति जानने के लिए इन तथ्यों को भी जान लें  
  • भारत के कुल इनकम टैक्स में 44% योगदान।
  • भारत में विभिन्न प्रकार के दिए जाने वाले दान में 72% योगदान।
  • लगभग 17000 गोशालाओं का सुचारु संचालन 
  • भारत के 56% शेयर ब्रोकर वैश्य हैं 
  • भारत की GDP में लगभग 47% योगदान 
  • वैश्य भारत की कुल संपत्ति के 38% पर मालिकाना अधिकार रखते हैं 
  • लगभग 39% चार्टर्ड अकाउंटेंट वैश्य हैं, 21% इंजीनियर,13% डॉक्टर ,24% कंपनी सेक्रेटरी -27% कॉस्ट अकाउंटेंट -11% एम् बी ए, 28% वकील 
  • लगभग 80% से ज्यादा धर्मशालाएं वैश्यो द्वारा संचालित हैं।
  • मंदिरों में दिए जाने वाले दान में सबसे ज्यादा हिस्सा वैश्यो का होता है 
नीचे दी कम्पनिया सिर्फ मारवाड़ी वैश्यो के मालिकाना हक़ वाली है 



इसके साथ ही देश के लगभग सभी टॉप बिजनेस घराने वैश्य समाज से ही आते है और जो लोग कहते है कि वैश्य समाज को आरक्षण की क्या जरुरत है वो तो व्यापार ही करेगा उन्हे बता दूं कि सभी वैश्य अमीर नही होते कुछ गरीब भी होते है और व्यापार के लिए धन ही आवश्यकता होती है इसके बावजूद वो आरक्षण और किसी की दया के भरोषे नही बैठते बल्कि अपने लगातार प्रयासो से कुछ तो सचिन बंसल और बिन्नी बंसल (फ्लिपकार्ट के ओनर) बन जाते है बाकी अपने प्रयास से अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी निभाते रहते है विश्व के नए ऑनलाइन बाजार मे अपनी मेहनत से सफल हुए वैश्यो ने ही बाजी मारी है जैसे -मिंत्रा, येभी, इंडियामार्ट, जोमैटो, स्नैपडील आदि
  • इसके साथ ही वैश्य वर्ण में स्वतंत्रता के संग्राम में आहुति देने वाले बहुत से वीर हुए हैं जैसे- महात्मा गाँधी, सेठ जमनालाल बजाज, सेठ घनश्यामदास बिरला, राम कोठरी और शरद कोठरी 



और जिन्हे लगता है वैश्यो का राजनीती मे कोई अस्तित्व नही है तो उनके ज्ञानवर्धन के लिए मै बता दूं कि भारत के पीएम से लेकर कई राज्यो के सीएम और शीर्ष नेता वैश्य समाज से आते है जैसे- अमितशाह, विजय गोयल, पियूष गोयल, डॉ हर्षवर्धन, कैलाश विजयवर्गीय, सुभाष चंद्रा गोयल पी चिदंबरम, अभिषेक मनु सिंधवी,
येदुरप्पा, चेट्टियार ब्रदर्स रधुवर दास, अरविंद केजरीवाल सुशील मोदी इत्यादि।
इतना सब कुछ और जनसँख्या केवल 6% की हिस्सेदारी और वो भी बिना किसी आरक्षण के  क्योकि आगे बढ़ने के लिए 
दिमाग और मेहनत चाहिए किसी की दया नही 
मुझे गर्व हैं कि मैं एक वैश्य परिवार में जन्मी हूँ और आगे के सभी जन्मो में वैश्य परिवार में ही जन्म लेना चाहूंगी क्योंकि वैश्यो का इतिहास भी बड़ा शानदार रहा है अपनी मेहनत और गतिशीलता से उनका वर्तमान भी काफी शानदार है उनकी अच्छी सोच और कर्म से उनका भविष्य भी उज्जवल ही रहेगा












8 comments:

  1. why you left twitter suddenly ? Everything is OK ?

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    1. I joined Twitter to share perspective on different topics.But in the past 6 months, some people hizacked Twitter by making many fake accounts just for their own benefit who spreading hate only. I don't like that's kind of atmosphere so left it

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    2. Ahha I can understand, actually world is not so simple as much we expect, many time we fail to stand for truth either due to our bias or may be simply remain bystander as issue is not affecting us or any xyz. But anyway we have face it, and stand for the truth, no matter how hard it is.
      I also use twitter occasionally since it full of negative thoughts, anyway I would also quit it as from next month since I am going to start work as postdoctoral fellow in Finland.
      Have a good day ma'am.
      Best wishes for your future
      Sumit

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    3. Thanks lot Gupta ji, and i wish you best of luck for your new journey too :))

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  2. Baisa hukum ji thanks for posting .. will love to read more about great baniya ancestors who takes our most ancient civilzation to such extreme heaight that all wanderering looser from all corners of earth end up here..

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    1. Had to write it in some special circumstances.
      Usually I also avoid castism and especially to do support or chanting baniyagiri everytime but in that time many people started to humiliate Bania's
      And by their soft nature, Bania kept avoiding answering them.
      But after posting it, i feel very ashamed coz indirectly i'm doing castism but I thinks it's demand of that time

      Otherwise I believed in "unity is the best policy"

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    2. Baisa hukum ji What for many is caste for us it is varna.. rest our civilization is the last bastion of polytheist.. all we need to unite only is with truth and there is no better way then knowing your roots..

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    3. Yes agree, just becouse of these type of bigots Now I have had a lot of knowledge about Vaish community which were not before.

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शक्ति

प्रायः सभी पुराण तथा विद्वान् ऐसा कहते हैं कि ब्रह्मामें सृष्टि करनेकी शक्ति, विष्णुमें पालन करनेकी शक्ति, शिवमें संहार करनेकी शक्ति, सूर्यम...