आखिर कौन है विक्रम कोठरी
विक्रम कोठारी रोटोमैक के चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर है और कानपुर मे वे गुटखा किंग के नाम से भी जाने जाते है विक्रम कोठारी ने पिता मंसूख कोठारी के साथ काफी समय तक उनके फैमिली बिजनेस का संचालन किया।
मंसूख भाई कोठारी ने 1973 मे फेमस पान मसाला ब्रांड पान पराग की शुरुआत की थी जिनकी मृत्यु के बाद 1999 मे विक्रम कोठारी और उसका भाई दीपक कोठारी अलग हो गए जिसके बाद दीपक कोठारी को पान पराग का बिजनेस मिला और विक्रम कोठारी को रोटोमैक का स्टेश्नरी बिजनेस मिला रोटोमैक के स्टैश्नरी बिजनेस मे आई मंदी के बाद कोठारी ने रियल स्टेट और इंपोर्ट एक्सपोर्ट का बिजनेस शुरू किया।
स्कैम
रोटोमैक जो पेन और स्टेश्नरी सामान बनाने बाली प्रसिद्द कंपनी है उसने फ्रॉड तरीके से पब्लिक सेक्टर बैंक से करीब 3000 करोड़ का लोन लिया था ब्याज लगने के बाद अब वह लोन 3695 करोड़ का हो गया है कंपनी ने उस लोन का भुगतान नही किया है और न ही उसके ब्या ज का ही भुगतान किया है इस बीच कई दिनो से रोटोमैक के ओनर विक्रम कोठारी का अॉफिस बंद था और ये अफवाह थी कि विक्रम कोठारी भी नीरव मोदी की तरह देश छोड़कर भाग गये है जिसके बाद विक्रम कोठारी ने मीडिया मे आकर कहा है कि वह कानपुर मे ही है रोटोमैक का लोन न चुकाने पर बैंक ऑफ बड़ोदा ने विक्रम कोठारी को पिछले साल फरवरी मे विलफुल डिफॉल्टर घोषित किया था
जिसके बाद विक्रम कोठारी कोर्ट गए और कोर्ट ने कोठारी से विलफुल डिफॉल्टर का टैग हटा दिया फिर भी कोठारी ने बैंक को उनका पैसा व ब्याज पे नही किया है
विक्रम कोठारी की कंपनी रोटोमैक ग्लोबल प्राईवेट लिमिटेड का एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट का बिजनेस था रोटोमैक ग्लोबल ने एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट करने के लिए इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ बड़ोदा बैंक ऑफ इंडिया यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और ओरियंटल बैंक ऑफ कामर्स इन सारी पब्लिक सेक्टर बैंको से लोन लिया था पर विक्रम कोठारी ने जिन कार्यों के लिए बैंक से लोन लिया था उन पैसो का प्रयोग उस कार्यों के लिए नही किया यानी उन पैसो से वह कोई एक्सपोर्ट या इंपोर्ट का कार्य नही करता था जब विक्रम कोठारी की कंपनी की दूसरी कंपनी से सामान एक्सपोर्ट करने के लिए बैंक से लोन लेती थी तो विक्रम कोठारी की कंपनी दूसरी कंपनी को सप्लायर्स दिखाकर उसे वो पैसा ट्रांसफर कर देती थी फिर वो पैसा वापस कोठारी की ही किसी कंपनी को भेजा जाता था और इस काम को करने के लिए विक्रम कोठारी ने बहुत सारी फेक कंपनी बनाई थी ऐसा करके विक्रम कोठारी ने सभी को को 3695 करोड़ मे फसाया है
जब बैंक ऑफ बड़ोदा के कुछ ऑफिसर्स ने रोटोमैट के विदेशी सप्लायर्स और बायर्स के ऑफिस चेक किये तो वहां पर ऑफिस थे ही नही तब उन्हे इस फ्रॉड के बारे मे पता चला और इसके बाद बैंक ऑफ बड़ोदा ने सीबीआई मे कंप्लेंट दर्ज करवाई जिसके बाद सीबीआई ने 19 फरवरी को सुबह 3 से 4 बजे कोठारी के घर पर रेड डाली है इसके साथ ही कोठारी के ऑफिस पर भी रेड डाली गयी
बैंक ऑफ बड़ोदा ने दिसम्बर 2017 मे ही इस केस को फ्रॉड घोषित कर दिया था उसके बाद भी बैंक ने इसकी कंप्लेंट नही की अब नीरव मोदी केस एक्सपोज होने के बाद बैंक ने सीबीआई मे कंप्लेंट दर्ज की है पिछले लगभग 8 से 10 साल से यह स्कैम चल रहा है
30 सितम्बर 2017 को विलफुल डिफॉल्टर्स पर बैंक का 1,11,000 करोड़ का कर्ज था जिसमे 85% कर्ज पब्लिक सेक्टर बैंक का था बैंको के डिफॉल्टर होने के साथ विक्रम कोठारी अपने कर्मचारियों के भी डिफॉल्टर थे न ही उन्होंने पनकी स्थित रोटोमैक ग्लोबल के कर्मचारियों का पीएफ जमा किया और न ही चार महीनो से कर्मचारियों की सैलरी ही दी गयी है
विक्रम कोठारी के रूतवे के आगे बैंक ऑफिसर्स ने कम कीमत पर लोन दिया और इस सेवा के बदले मे ऑफिसर्स को विक्रम कोठारी की तरफ से खूब मेवा भी मिला है बैंक इन्डस्ट्री से ये बात भी सामने आई है बड़े बिजनेसमैन को जो लोन दिया जाता है उसमे सीएमडी और बोर्ड के डायरेक्टर्स स्तर के ऑफिसर्स की सहमति होती है उन्ही के साईन से बैंको के समूह कंसोर्टियम बैंकर लोन देने की प्रक्रिया शुरू करते है विक्रम कोठारी को जब भी लोन की लिमिट बढ़वानी होती थी हेड ऑफिस से आर्डर आ जाता था और वहाँ भी विक्रम कोठारी का रूतवा और सेवा के बदले मेवा काम करती थी
विक्रम कोठारी के प्रभाव का इस्तेमाल ऑडिट करने आए ऑडिटर्स पर भी किया जाता था ऑडिटर लोन की खामियां बताते तो उन्हें समझाया जाता था कि किसका अकाउंट है अगर ऑडिटर उनकी बात नही मानते तो उन्हें धमकियाँ दी जाती कि उन्हें बैंक कंपनी मे काम मिलना मुश्किल हो सकता है ऐसे ही विक्रम कोठारी का लोन बढ़ता गया बैंक के ऑडिट से लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के ऑडिट मे भी खामियां सामने नही आई साथ ही ये बात सामने आई है कि विक्रम कोठारी ने हर कुर्सी को अच्छे से मैनेज किया हुआ था जहाँ से भी उसे नुकसान हो सकता है।
विक्रम कोठरी के कारनामे
इस केस मे विक्रम कोठारी बैंक से फेक बायर्स क्रेडिट इसू करवाकर विदेशों मे फेक कंपनी बनाकर आपस मे डील करके बायर्स क्रेडिट के पैसो का ट्रांसफर किया जाता था जो बाद मे कोठारी के अकाउंट मे ट्रांसफर हो जाते थे टैक्स चोरी और बेनामी कंपनियों के कारोबारियों की भाषा मे इसे high see sale या समुद्री रास्ते से बिक्री का खेल कहा जाता है जब ये बात सामने आई तो आरबीआई समेत कर्ज देने वाले सभी समूहों ने इससे किनारा कर लिया। बैंक ने बताया कि शहर मे 10-11 ऐसे बिजनेसमैन है जो विदेशी व्यापार के जरिये बैंको को चूना लगा रहे है यहाँ भी फेक बायर्स क्रेडिट का प्रयोग किया गया है
विक्रम कोठारी का बिजनेस दुबई हॉगकॉग और सारजाह समेत दर्जनभर देशो मे फैला हुआ है इनका ज्यादातर माल कस्टम मे आने से पहले ही दूसरे देशों मे बिक जाता है जिसे असली बायर्स और सप्लायर्स का पता ही नही चलता था वो डील के फेक पेपर्स को बैंक मे लगाकर वे झिझक से लैटर ऑफ अंडरटेकिंग का प्रयोग करते थे जैसे दुबई के कारोबारी से खरीदे हुए माल को चीन के कारोबारी को बेच देना। कस्टम मे भेजे जाने वाले डॉक्यूमेंट यानी बिल ऑफ लैंडिंग मे भी बायर्स और सप्लायर्स का नाम नही होता था सिर्फ प्रोडक्ट की जानकारी होती थी बैंक ऑफ बड़ोदा ने ये नोटिस किया और बाद मे जांच कारवाई तो ऑफिस के नाम पर सिर्फ 2-3 कुर्सियां और शाइनबोर्ड ही मिला।
जब बैंक मेहरबान तो सिर्फ बड़े कारोबारी धनबान
विक्रम कोठारी ने लोन के नाम पर एक दो नही बल्कि देश के सात बड़े बैंको से लोन के नाम पर खैरात मांगी थी बदले मे नाम मात्र की सम्पत्ति गिरवी रखी लेकिन इलाहाबाद बैंक से 352 करोड़ के लोन के बदले मे 20करोड़ की संपत्ति गिरवी रखी थी जिसकी रियल वैल्यू 12करोड़ थी
बैंक की इस मेहरबानी मे स्थानीय ऑफिसर्स से लेकर बैंक के उच्च ऑफिसर्स की मिली भगत थी
लोन देेेेने से लेकर एनपीए होने तक 10साल तक सात बैंको के दो सौ से ज्यादा ऑफिसर्स के सामने विक्रम कोठारी की फाइल्स दौड़ती रही किसी ने कोई एक्शन नही लिया अब जाकर बैंक ऑफ बड़ोदा ने विक्रम कोठारी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवायी है
इलाहाबाद बैंक से 352करोड़ का लोन लेने के बाद बैंक अकाउंट अनियमित रहने के बाद भी बैंक चुप रहा।
बैंक ऑफिसर्स सीधे तरीके से विक्रम कोठारी को फायदा पहुचाने का काम करते रहे संपत्तियों की 20करोड़ की नीलामी के बाद भी बैंक का कोठारी पर 330 करोड़ का बकाया है अब ये पैसा बसूल पाना नामुमकिन ही है
स्तिथि अन्य 6 बैंको की भी वही है सभी बैंको को सिर्फ 10-15 फीसदी की कीमत वाली संपत्तियो के गिरवी रखकर कोठारी को लोन दिया है
इलाहाबाद बैंक के बाद सिर्फ यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की नीलामी की प्रक्रिया सामने आई है बाकी सभी चुप बैठे हैं
अब तक
सीबीआई ने अब तक रोटोमैक ग्लोबल, विक्रम कोठारी और उसकी पत्नी साधना कोठारी और बेटे राहुल कोठारी के साथ कुल 20 अन्य लोगो के खिलाफ केस दर्ज किया है साथ ही सीबीआई ने विक्रम कोठारी और उसके बेटे राहुल कोठारी को अरेस्ट किया है
ईडी ने भी विक्रम कोठारी और रोटोमैक ग्लोबल के खिलाफ Prevenstion of money loundering act के अनुसार क्रिमिनल चार्जेस लगाए है और उसकी फैमिलो को देश से बाहर जाने से रोकने के लिए सभी अथारिटी और एग्जिट टर्मिनल को आदेश दे दिए है विक्रम कोठारी इंपोर्ट एक्सपोर्ट के फेक डाक्यूमेंट बनाकर बैंक से लोन लेता था और बैंक ने डाक्यूमेंट की ठीक से छानबीन भी नही की थी इसलिए कुछ बैंक ऑफिसर्स पर ये आरोप है कि उन्होंने बैंक रूल्स के अगेंस्ट रोटोमैक के लोन क्लियर किये थे।