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Wednesday, 2 March 2022

शुभ कर्मो का अक्षय फल !!

वैश्वीकरण के समय मे समाज मे श्रेष्ठता की जंग इस सीमा तक बढ़ चुकी है कि लोगो ने त्योहारों पर भी पेशे की छाप डालनी शुरू कर दी है अक्षय तृतीया का नाम आते ही स्वर्णकारो, किसानो,फाइनेंशियल कन्सलटेंट, रियल स्टेट आदि मे ज्यादा से ज्यादा कस्टमर एक्वायर करने का कम्पटीशन स्टार्ट हो जाता है । लेकिन आज बायर सेलर से आगे बढ़ तिथि के महत्व के साथ साथ नेक भावना के साथ किए गए शुभ कर्मों से प्राप्त अक्षय फलो की बात करते है।

जिनसे पवित्र कथाओ का निर्माण होता है। 


अक्षय का अर्थ होता है “जो कभी खत्म ना हो” और इसीलिए ऐसा कहा जाता है, कि अक्षय तृतीया वह तिथि है जिसमें सौभाग्य और शुभ फल का कभी क्षय नहीं होता है। इस दिन होने वाले कार्य मनुष्य के जीवन को कभी न खत्म होने वाले शुभ फल प्रदान करते हैं। इसलिए यह कहा जाता है, कि इस दिन मनुष्य जितने भी पुण्य कर्म तथा दान करता है उसे, उसका शुभ फल अधिक मात्रा में मिलता है और शुभ फल का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता है वहीं इसके विपरीत जो व्यक्ति इस दिन कुकर्म करता है उसका परिणाम भी उसे कई गुना बढ़कर भुगतना पड़ता है। 


कथा- 

बहुत समय पहले की बात है कुशावती नामक नगरी में महोदय नाम का एक वैश्य रहता था। सौभाग्यवश महोदय वैश्य को एक पंडित से अक्षय तृतीया के व्रत करने की विधि के बारे में पता चला। 


महोदय ने भक्ति – भाव से विधि पूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रताप से महोदय वैश्य कुशावती का महाप्रतापी शक्तिशाली राजा बन गया। उसका खजाना हमेशा स्वर्ण मुद्राओं , हीरे जवाहरातों से भरा रहता था। राजा महोदय अच्छे स्वभाव का तथा दानवीर था। वह उदार मन से खुले हाथ से दान करता था और असहाय व गरीबो की भरपूर सहायता  करता था। 


एक बार राजा का वैभव और सुख शांतिपूर्ण जीवन देख कर दूसरे राजाओं ने उसकी समृद्धि का कारण पूछा। राजा ने स्पष्ट रूप से अपने अक्षय तृतीया व्रत की कथा कह सुनाई और कहा कि सब कुछ अक्षय तृतीय व्रत की कृपा से हुआ है। 


राजा से सुनकर उन्होंने अपने राज्य में जाकर विधि विधान सहित अक्षय तृतीया का पूजन व व्रत किया तथा प्रजा को भी ऐसा ही करने को कहा। अक्षय तृतीया के पुण्य प्रताप से उनके सभी नगर वासी , धन धान्य से पूर्ण होकर वैभवशाली और सुखी हो गए। 


हे अक्षय तीज माता ! जैसे आपने उस वैश्य को वैभव और राज्य दिया वैसे ही अपने सब भक्तो को धन धान्य और सुख देना। सब पर अपनी कृपा बनाये रखना।

अक्षय तृतीया का पौराणिक इतिहास -


अक्षय तृतीया का पौराणिक इतिहास महाभारत काल में मिलता है। जब पाण्डवों को 13 वर्ष का वनवास हुआ था तो एक दुर्वासा ऋषि उनकी कुटिया में पधारे थे। तब द्रौपदी से जो भी बन पड़ा, जितना हुआ, उतना उनका श्रद्धा और प्रेमपूर्वक सत्कार किया, जिससे वे काफी प्रसन्न हुए। दुर्वासा ऋषि ने उस दिन द्रौपदी को एक अक्षय पात्र प्रदान किया। 


श्रीकृष्ण से सम्बंधित एक और कथा अक्षय तृतीया के सन्दर्भ में प्रचलित है| कथानुसार श्रीकृष्ण के बालपन के मित्र सुदामा इसी दिन श्रीकृष्ण के द्वार उनसे अपने परिवार के लिए आर्थिक सहायता मांगने गए था| भेंट के रूप में सुदामा के पास केवल एक मुट्ठीभर पोहा ही था| श्रीकृष्ण से मिलने के उपरान्त अपना भेंट उन्हें देने में सुदामा को संकोच हो रहा था किन्तु भगवान कृष्ण ने मुट्ठीभर पोहा सुदामा के हाथ से लिया और बड़े ही चाव से खाया| चूंकि सुदाम श्रीकृष्ण के अतिथि थे, श्रीकृष्ण ने उनका भव्य रूप से आदर-सत्कार किया| ऐसे सत्कार से सुदामा बहुत ही प्रसन्न हुए किन्तु आर्थिक सहायता के लिए श्रीकृष्ण ने कुछ भी कहना उन्होंने उचित नहीं समझा और वह बिना कुछ बोले अपने घर के लिए निकल पड़े| जब सुदामा अपने घर पहुंचें तो दंग रह गए| उनके टूटे-फूटे झोपड़े के स्थान पर एक भव्य महल था और उनकी गरीब पत्नी और बच्चें नए वस्त्राभूषण से सुसज्जित थे| सुदामा को यह समझते विलंब ना हुआ कि यह उनके मित्र और विष्णुःअवतार श्रीकृष्ण का ही आशीर्वाद है| यहीं कारण है कि अक्षय तृतीया को धन-संपत्ति की लाभ प्राप्ति से भी जोड़ा जाता है।

तः आज के दिन धरती पर जो भी श्रीहरि विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना करेगा। उनको चने का सत्तू, गुड़, मौसमी फल, वस्त्र, जल से भरा घड़ा तथा दक्षिणा के साथ श्री हरी विष्णु के निमित्त दान करेगा, उसके घर का भण्डार सदैव भरा रहेगा। उसके धन-धान्य का क्षय नहीं होगा, उसमें अक्षय वृद्धि होगी।

ध्यान दीजिए दान और सेवा का महत्व आवश्यक है। कुछ अलग, स्पेशल, ऐसा करे जिससे मन को शांति मिले। मन की शांति अक्षय रह सके। क्योकि फल तो हमे हमारे कर्मो का ही मिलता है बाकी शॉपिंग से संतुष्टि तो सिर्फ महिलाओं को ही मिलती है 😜 

अक्षय तृतीया की आप सभी  और आपके सम्पूर्ण परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं । 🙏🙏

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