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Saturday, 9 September 2023
महालया
Monday, 5 June 2023
कर्म फल ही जीवन है
रोहित नामक एक अनाथ बच्चा था। उसके माता–पिता बचपन में ही चल बसे थे, उसके ननिहाल और पिता की तरफ से भी कोई नहीं था। उसके न तो कोई आगे था ना कोई पीछे, अनाथालय में रहा और पढ़ा। वह पढ़ने में मेधावी था उसे आर्मी में नौकरी लग गई और वह एक अधिकारी बन गया। अब सेना के साथ ही रहता, कभी भी घर वापस नहीं आता क्योंकि उसका कोई था नहीं, उसने शादी भी नहीं की थी। उसे जितनी सैलरी मिलती थी वह सब बचा लेता था। आर्मी के कैंटीन में खाता था वहीं पर रहता था, तो उसका खर्चा भी लगभग ना के बराबर था। तो हम कह सकते हैं कि उसने आज तक जितनी सैलरी पाई सब बचा ही लिया था।
सूरजमल सेठ और रोहित का पैसा
उसी कैंटीन में सूरजमल नामक एक सेठ आता था जो कैंटीन के समान का छोटा सप्लायर था। बहुत दिन हो गए दोनों को एक दूसरे को जानते पहचानते, एक दिन सूरजमल ने कहा रोहित आपके पैसे बैंक में रखें हैं। मुझे व्यापार में लगाने को दे दो मैं तुम्हे अच्छा मुनाफा दूंगा। रोहित ने मना कर दिया। रोहित ने कहा मुझे इतनी ज्यादा पैसे की लालच नही है। जो सरकार ने दिया है वह मेरे खाते में पड़ा है। कभी जिंदगी में जरूरत पड़ी तो इस्तेमाल करेंगे नहीं तो कोई बात नहीं। सेठ ने कहा यह भी क्या बात हुई अगर तुम हमें अपना दोस्त मानते हो तो तुम मेरी सहायता ही कर दो। मैं तुम्हें यह पैसा वापस लौटा दूंगा। कम से कम मेरा काम हो जाएगा अभी इस पैसे की तुम्हें जरूरत भी नहीं है।
सेठ की नीयत में खोट
बात तो सही कह रहे हो, पर आप पैसा वापस करोगे इसकी क्या गारंटी है, सेठ ने कहा कसम खाकर कहता हूं धोखा नहीं दूंगा। रोहित ने कहा सेठ जी! लोग तो पैसे के लिए क्या क्या कर देते हैं।पर कोई नही चलिए मैं आपकी बात को मान लेता हूं। कम से कम आप का तो भला हो जाए। सेठ ने मुस्कुराते हुए, धन्यवाद कहा और रोहित को गले लगा लिया। पैसा लेने के बाद सेठ जब भी आता रोहित को बहुत–बहुत धन्यवाद देता। सेठ का बिजनेस रोहित के पैसों से बढ़ रहा था आमदनी दिन दुगनी रात चौगुनी हो रही थी। आमदनी बढ़ने के साथ अब सेठ की नीयत में बेईमानी आ चुकी थी। वह अब पैसा ना लौटाना पड़े उसका बहाना ढूंढता रहता।
बॉर्डर पर युद्ध
इसी बीच बॉर्डर पर पड़ोसी देश के साथ युद्ध शुरू हो गया और रोहित को भी जाना पड़ा। जहां युद्ध हो रहा था वो इलाका काफी दुर्गम था। वहां पहुंचने का एक मात्र रास्ता घोड़े से पहुंचने का था। रोहित एक कुशल घुड़सवार था, उसे जो घोड़ी मिली वो बिगड़ैल थी। रोहित के पीठ पर बैठते ही सरपट दौड़ने लगी, रोहित उसे काबू में करने की जितनी कोशिश करता वो अपनी गति और तेज करती जाती। रोहित ने लगाम पूरी ताकत से खींचा, घोड़ी का मुंह कट चुका था पर पता नही आज ये बिगड़ैल घोड़ी कुछ भी सुनने को राजी नहीं थी। घोड़ी दौड़ते दौड़ते दुश्मन के खेमे के सामने जाकर खड़ी हो गई। रोहित दुश्मन की गोलियों का शिकार हो गया।
सेठ की खुशी
सेठ बराबर आर्मी कैंट में जाता था उसे वहां पता चला की रोहित युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ। सेठ ने वहां काफी दुख दिखाया और कैंट से बाहर आते ही खुशी से झूम उठा। अब पैसा वापस नही करना होगा। सेठ का व्यापार दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था। कुछ दिनों के बाद सेठ की पत्नी मां बनी और सेठ एक सुंदर बच्चे का पिता बना। सेठ के जीवन का ये सबसे बेहतरीन समय चल रहा था।
समय बीतते देर नहीं लगती। सेठ का बेटा अमर जो अब बड़ा हो गया था और अब सेठ के साथ मिलकर व्यापार करता था। अमर विवाह योग्य हो चुका था। अच्छे घर की सुंदर सुशील कन्या देखकर अमर की शादी हो गई। अब सेठ कहता कुछ दिन की और बात है अब बेटा व्यापार संभालेगा। मेरी जिंदगी सफल हो गई और क्या चाहिए मुझे।
अमर की बीमारी
अमर की शादी हुए मुश्किल से 2 महीने हुए थे, अमर सड़क पार कर रहा था उसे चक्कर आया और गिर गया। लोग उसे उठाकर हॉस्पिटल पहुंचाए, उसके ब्रेन का एमआरआई और अन्य टेस्ट हुए तो पता चला अमर को ब्रेन कैंसर है। सेठ ने डॉक्टरों से कहा पैसे की चिंता मत करें आप इलाज करें। डॉक्टर और हॉस्पिटल बदलते गए पर अमर की हालत दिन ब दिन बिगड़ती गई। सेठ अब व्यापार पे ध्यान नहीं दे पा रहा था, उसके कस्टमर छूटते जा रहे थे।
हॉस्पिटल का बढ़ता बिल और अमर की बीमारी
हॉस्पिटल का बिल बढ़ता जा रहा था। अब सेठ पर कर्ज काफी हो चुका था, सेठ परेशान था। अब अमर को डॉक्टर ने जवाब दे दिया, सेठ हार चुका था। किसी चमत्कार की आशा में बैठा था, चमत्कार तो नही हुआ। पर अमर अब इस दुनिया में नही रहा। महीनो जिंदगी की जंग लड़ने के बाद अमर हार चुका था। सेठ के घर में हाहाकार मच गया। सेठ, सेठानी, अमर की पत्नी सब विलाप कर रहे थे। यहां तक की घर के नौकरों का भी रो रो कर हाल बुरा था।
साधु का सच और कर्म फल
एक साधु उधर से गुजर रहे थे उन्होंने करुण क्रंदन सुना तो रुक गए। वहां जाकर उन्हें कहा रोने से कुछ नही होगा, जो होना था वो हो गया। सेठ गुस्से में बोला “मेरे साथ ही क्यों?” साधु ने कहा सब कर्म का फल (Karm Ka Fal) है, यहीं चुका कर जाना होता है। आज बहुत रो रहे हो, कल तो तुम बहुत हस रहे थे।
सेठ ने कहा “मै कुछ समझा नही महाराज“, साधु ने कहा “तुमने अपने व्यापार के लिए उधार पैसे लिए थे। जब व्यापार चल पड़ा, तो तुमने, जिसके पैसे थे उसे लौटाए नही। सेठ ने कहा “गलत, वो मर गया था, किसे लौटाता?”, साधु ने कहा “झूठ नही। तुम भूल गए उसके मरने के समाचार पे तुम कितना खुश हुए थे?, उस दिन तुमने मिठाई बांटी थी। क्या मिठाई बांटना सही था? तुम उसके पैसे को सरकार को या अनाथालय या किसी जरूरतमंद को दे सकते थे पर तुमने नही दिया। तुम्हारी नीयत में खोट थी।
शर्मिंदा सेठ और कर्म का फल
सेठ शर्मिंदा था। आज सेठ वहीं पर खड़ा था जहां पर आज से 20 साल पहले खड़ा था। आज ना तो पैसे थे न व्यापार और ना ही पुत्र और ढेर सारा कर्ज था। साधु ने कहा ये तुम्हारा पुत्र वही लड़का रोहित था, ये अपना हिसाब करने आया था, हिसाब कर लिया और चला गया। जितना उसने तुम्हे दिया था सूद सहित वापस ले लिया। तुमने उसकी शिक्षा, शादी, हॉस्पिटल सब पर खूब खर्च किया जब वो गया तुम्हे भिखारी बना कर गया। सेठ ने सुबकते हुए कहा, मान लिया मेरी गलती थी।
पत्नी के कर्म का फल
इस बेटी की क्या गलती, इससे तो सिर्फ दो महीने पहले शादी हुई थी। साधु ने कहा ये इसका कर्म फल था। ये पिछले जन्म में वो घोड़ी थी जिसके चलते रोहित की जिंदगी खत्म हुई। आज रोहित ने बदला ले लिया, और इसकी जिंदगी नर्क बना कर चला गया। जीवन में कुछ भी बिना कारण नही हो रहा है, हो सकता है बीज आपने बहुत पहले लगाया हो और आप भूल गए हो। वही बीज पेड़ बन जाता है तब हमें पता चलता है। इसलिए आप कैसा बीज लगाते हो हमेशा याद रखो। प्रकृति हिसाब करती है, आप याद रखो न रखो प्रकृति हमेशा याद रखती है। सेठ, निरुत्तर, हताश, घर की सीढ़ी पर बैठा, अपने कर्म को कोस रहा था। हमेशा अपने कर्म पर ध्यान दें, ऊपर वाले की लाठी में आवाज नही होती पर असर पूरा करती है।
Thursday, 1 June 2023
डोर
राजस्थान की एक घटना है । एक राजा थे जिनकी एक युवा पत्नी थी जो उनसे बेहद प्रेम करती थी और उनके प्रति पूरी तरह समर्पित थी लेकिन राजाओ की हमेशा ढेर सारी पत्नियां होती थी इसलिए रानी जिस तरह उनके ध्यान मे पूरी तरह डूबी रहती थी उन्हे यह काफी मूर्खतापूर्ण लगता था वह हैरान होता था और उसे यह अच्छा भी लगता था लेकिन कई बार अति हो जाती थी फिर वह उसे थोड़ा दूर करके बाकी रानियों के साथ समय बिताया था लेकिन वह रानी राजा के लिए पूर्ण रूप से समर्पित थी ।
राजा और रानी के पास दो बोलने वाली मैना थी एकदिन इनमे से एक चिड़िया मर गयी तो दूसरी ने खाना पीना छोड़ दिया और चुपचाप बैठी रही ।
राजा ने उसे खाना खिलाने की हर सम्भव कोशिश की लेकिन सफल नही हुआ और वह चिड़िया दो दिन मे मर गयी ।
इसबात ने राजा को काफी प्रभावित किया यह क्या है किसी भी जीव के लिए पहले अपने जीवन को महत्तव देना स्वभाविक है मगर यह चिड़िया बैठी रही और मर गयी यह कहने पर रानी ने कहा जब कोई वास्तव मे किसी से प्रेम करता है तो दूसरे के साथ मर जाना उनके लिए स्वभाविक है क्योकि उसके बाद उनके लिए अपने जीवन का कोई अर्थ नही रह जाता ।
राजा ने मजाक मे पूछा क्या आप भी हमे इतना प्रेम करती है? रानी ने हां मे जबाव दिया । यह सुनकर राजा बड़ा खुश हुआ ।
एकदिन राजा अपने दोस्तो के साथ शिकार खेलने गया
उसके दिमाग मे चिड़ियो के मरने वाला प्रसंग चल रहा था राजा रानी की बात की परीक्षा लेना चाहता था इसलिए उसने अपने वस्त्रो पर खून लगाकर सिपाही के हाथो महल पहुंचा दिया । महल पहुचकर सिपाही ने घोषणा कर दी कि राजा पर एक बाघ ने हमला कर उन्हे मार डाला रानी ने अपनी ऑख मे आसू लाए बिना बहुत गरिमा के साथ उनके कपड़े लिए, लकड़िया इक्ठठी की और उनपर लेटकर मर गयी लोगो को विश्वास नही हो रहा था कि रानी बस चिता पर लेटी और मर गयी कुछ और करने को नही था क्योकि वह मर चुकी थी इसलिए उन्होने उनका अंतिम संस्कार कर दिया जब यह खबर राजा को मिली तो वह दुख मे डूब गया उसने सिर्फ एक सनक मे आकर उसके साथ मजाक किया और वह वास्तव मे मर गयी उसने आत्महत्या नही की वह बस यूं ही मर गयी लोग इसतरह भी प्रेम करते थे क्योकि कही न कही लोग आपस मे जुड़ जाते थे ।।
Thursday, 18 May 2023
अनुभूति
हमारे साथ होने वाली भविष्य की घटनाओं का पहले से महसूस होने की प्रक्रिया को ही इंट्यूशन कहते है इतना ही नहीं
लोग जो हमारे अपने होते है उनके साथ होने वाली घटनाओं का एहसास भी हमे तब हो जाता है जब हम उनसे काफी दूर होते है यही हमे महसूस करवाता है है की कोई इंसान हमारे लिए कैसी भावनाएं रखता है सकारात्मक नकारात्मक प्यार गुस्सा नफरत सब चीजों का एहसास ।
कोई परेशान है लेकिन सबके सामने नॉर्मल है । बहुत बड़ा दुख छिपा रहा है इसके साथ में आपके दुख तकलीफ में किसी को अंदर ही अंदर मजे मिल रहे है वो कहते है न मुझे उससे पॉजिटिव वाइब्स नही मिलती ।
जीवन बदलने वाला अनुभव तब होता है जब आप ऐसे अजनावियो से मिलते है जिनसे मिलकर आपको अजनवियो वाली कोई फीलिंग ही नही आती एक कंफर्ट, एक अपनत्व लगता है उनका दुख उनकी परेशानी स्वयं को कही ज्यादा परेशान कर जाती है अगर कही दूर वो आशुओ में डूबे है तो आपको महसूस हो जाता हैं जब वो हमे ही याद करते है तो महसूस हो जाता है इतना सब होने के बाद अगर कोई आपको प्रैक्टिकल लाइफ ओर इस भौतिक दुनिया का मुफ्त ज्ञान दे कर आपकी फीलिंग्स को कोरी कल्पना मात्र कहे तो just keep smile and let it go
क्योंकि ये दिल की बातें वही समझ सकता है जिसके पास दिल होगा ओर मन में अपनो के लिए सच्चा लगाव होगा । कभी स्वार्थ के अलावा किसी दूसरे के दुख को समझा होगा ......✍️
बात सिर्फ भावनाओ तक ही सीमित नहीं इसके साथ हम इंसान को भी परखना जानते है एक अच्छा इंसान, दिल का सच्चा इंसान या विलेन टाइप लोग
जब हम जीवन में एक अच्छे इंसान से मिलते है बाते करते है तो सबसे पहले सम्मान उन्हें जाता है जिनकी परवरिश या विचारधारा में वो रहता है मतलब माता पिता ।
वो कहते है न इंसान इतना अच्छा है तो पैरेंट्स कितने अच्छे होंगे !! they deserve that respect 💙💙
जिंदगी बहुत हसीन है,
कभी हंसाती है, तो कभी रुलाती है,
लेकिन जो जिंदगी की भीड़ में खुश रहता है,
जिंदगी उसी के आगे सिर झुकाती है।
बिना संघर्ष कोई महान नही होता,
बिना कुछ किए जय जय कार नही होता,
जब तक नहीं पड़ती हथौड़े की चोट,
तब तक कोई पत्थर भगवान नहीं होता।
Tuesday, 16 May 2023
जात- पात मे मरता हिंदु जगह जगह पर मरता हिंदु पार्ट 2
अंग्रेज लेखक और उनके मानसिक गुलाम साम्यवादीलेखकों द्वारा एक शताब्दी से भी अधिक के हिंदुओ के इस स्वर्णिम राज को पाठ्य पुस्तकों में न लिखा जाना इतिहास के साथ खिलवाड़ नहीं तो और क्या हैं ?
हम न भूले की "जो राष्ट्र अपने प्राचीन गौरव को भुला देता हैं , वह अपनी राष्ट्रीयता के आधार स्तम्भ को खो देता हैं।"
उलटी गंगा बहा दी
वीर शिवाजी का जन्म 1627 में हुआ था। उनके काल में देश के हर भाग में मुसलमानों का ही राज्य था। यदा कदा कोई हिन्दू राजा संघर्ष करता तो उसकी हार, उसी की कौम के किसी विश्वासघाती के कारण हो जाती, हिन्दू मंदिरों को भ्रष्ट कर दिया जाता, उनमें गाय की क़ुरबानी देकर हिन्दुओं को नीचा दिखाया जाता था। हिन्दुओं की लड़कियों को उठा कर अपने हरम की शोभा बढ़ाना अपने आपको धार्मिक सिद्ध करने के समान था। ऐसे अत्याचारी परिवेश में वीर शिवाजी का संघर्ष हिन्दुओं के लिए एक वरदान से कम नहीं था। हिन्दू जनता के कान सदियों से यह सुनने के लिए थक गए थे की किसी हिन्दू ने मुसलमान पर विजय प्राप्त की। 1642 से शिवाजी ने बीजापुर सल्तनत के किलो पर अधिकार करना आरंभ कर दिया। कुछ ही वर्षों में उन्होंने मुग़ल किलो को अपनी तलवार का निशाना बनाया। औरंगजेब ने शिवाजी को परास्त करने के लिए अपने बड़े बड़े सरदार भेजे पर सभी नाकामयाब रहे। आखिर में धोखे से शिवाजी को आगरा बुलाकर कैद कर लिया जहाँ पर अपनी चतुराई से शिवाजी बच निकले। औरंगजेब पछताने के सिवाय कुछ न कर सका। शिवाजी ने मराठा हिन्दू राज्य की स्थापना की और अपने आपको छत्रपति से सुशोभित किया। शिवाजी की अकाल मृत्यु से उनका राज्य महाराष्ट्र तक ही फैल सका था। उनके पुत्र शम्भा जी में चाहे कितनी भी कमिया हो पर अपने बलिदान से शम्भा जी ने अपने सभी पाप धो डाले। औरंगजेब ने शम्भा जी के आगे दो ही विकल्प रखे थे या तो मृत्यु का वरण कर ले अथवा इस्लाम को ग्रहण कर ले। वीर शिवाजी के पुत्र ने भयंकर अत्याचार सह कर मृत्यु का वरण कर लिया पर इस्लाम को ग्रहण कर अपनी आत्मा से दगाबाजी नहीं की और हिन्दू स्वतंत्रता रुपी वृक्ष को अपने रुधिर से सींच कर और हरा भरा कर दिया। शिवाजी की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब ने सोचा की मराठो के राज्य को नष्ट कर दे परन्तु मराठों ने वह आदर्श प्रस्तुत किया जिसे हिन्दू जाति को सख्त आवश्यकता थी। उन्होंने किले आदि त्याग कर पहाड़ों और जंगलों की राह ली। संसार में पहली बार मराठों ने छापामार युद्ध को आरंभ किया। जंगलों में से मराठे वीर गति से आते और भयंकर मार काट कर, मुगलों के शिविर को लूट कर वापिस जंगलों में भाग जाते। शराब-शबाब की शौकीन आरामपस्त मुग़ल सेना इस प्रकार के युद्ध के लिए कही से भी तैयार नहीं थी। दक्कन में मराठों से 200वर्षों के युद्ध में औरंगजेब बुढ़ा होकर निराश हो गया , करीब 3 लाख की उसकी सेना काल की ग्रास बन गई। उसके सभी विश्वास पात्र सरदार या तो मर गए अथवा बूढ़े हो गए। पर वह मराठों के छापा मार युद्ध से पार न पा सका। मराठों की विजय का इसी से अंदाजा लगा सकते हैं की औरंगजेब ने जितनी संगठित फौज शिवाजी के छोटे से असंगठित राज्य को जीतने में लगा दी थी उतनी फौज में तो उससे 10 गुना बड़े संगठित राज्य को जीता जा सकता था। अंत में औरंगजेब की भी 1704 में मृत्यु हो गई परन्तु तब तक पंजाब में सिख, राजस्थान में राजपूत, बुंदेलखंड में छत्रसाल, मथुरा,भरतपुर में जाटों आदि ने मुगलिया सल्तनत की ईट से ईट बजा दी थी। मराठों द्वारा औरंगजेब को दक्कन में उलझाने से मुगलिया सल्तनत इतनी कमजोर हो गई की बाद में उसके उतराधिकारियों की आपसी लड़ाई के कारण ताश के पत्तों के समान वह ढह गई। इस उलटी गंगा बहाने का सारा श्रेय वीर शिवाजी को जाता हैं।
स्वार्थ से बड़ा जाति अभिमान
इतिहास इस बात का गवाह हैं की मुगलों का भारत में राज हिन्दुओं की एकता में कमी होने के कारण ही स्थापित हो सका था।
अकबर के काल से ही हिन्दू राजपूत एक ओर अपने ही देशवासियों से, अपनी ही कौम से अकबर के लिए लड़ रहे थे वही दूसरी और अपनी बेटियों की डोलियों को मुगल हरमों में भेज रहे थे। औरंगजेब ने जीवन की सबसे बड़ी गलती यही की कि उसने काफ़िर समझ कर राजपूतों का अपमान करना आरंभ कर दिया जिससे न केवल उसकी शक्ति कम हो गई अपितु उसकी सल्तनत में चारों और से विरोध आरंभ हो गया। भातृत्व की भावना को पनपने का मौका मिला और भाई ने भाई को अपने स्वार्थ और परस्पर मतभेद को त्याग कर गले से लगाया। शिवाजी के पुत्र राजाराम के नेतृत्व में मराठों ने जिनजी के किले से संघर्ष आरंभ कर दिया था। मराठों के सेनापति खान्डोबलाल ने उन मराठा सरदारों को जो कभी जिनजी के किले को घेरने में मुगलों का साथ दे रहे थे अपनी और मिलाना आरंभ कर दिया। नागोजी राणे को पत्र लिख कर समझाया गया की वे मुगलों का साथ न देकर अपनों का साथ दे जिससे देश,धर्म और जाति का कल्याण हो सके। नागोजी ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया और अपने 5000 आदमियों को साथ लेकर वे मराठा खेमे में आ मिले।
अगला लक्ष्य शिरका था जो अभी भी मुगलों की चाकरी कर रहा था। शिरका ने अपने अतीत को याद करते हुए राजाराम के उस फैसले को याद दिलाया जब राजाराम ने यह आदेश जारी किया था की जहाँ भी कोई शिरका मिले उसे मार डालो। शिरका ने यह भी कहा की राजाराम क्या वह तो उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हैं जब पूरा भोंसले खानदान मृत्यु को प्राप्त होगा तभी उसे शांति मिलेगी। खान्डोबलाल शिरका के उत्तर को पाकर तनिक भी हतोत्साहित नहीं हुआ। उन्होंने शिरका को पत्र लिखकर कहा की यह समय परस्पर मतभेदों को प्रदर्शित करने का नहीं हैं। मेरे भी परिवार के तीन सदस्यों को राजाराम ने हाथी के तले कुचलवा दिया था। मैं राजाराम के लिए नहीं अपितु हिन्दू स्वराज्य के लिए संघर्ष कर रहा हूँ। इस पत्र से शिरका क ह्रदय द्रवित हो गया और उसके भीतर हिन्दू स्वाभिमान जाग उठा। उसने मराठों का हरसंभव साथ दिया और मुगलों के घेरे से राजाराम को छुड़वा कर सुरक्षित महाराष्ट्र पहुँचा दिया।
काश अगर जयचंद से यही शिक्षा मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय ले ली होती तो भारत से पृथ्वी राज चौहान के हिन्दू राज्य का कभी अस्त न होता।
महाराष्ट्र से भारत के कोने कोने तक
मराठों ने मराठा संघ की स्थापना कर महाराष्ट्र के सभी सरदारों को एक तार में बांध कर, अपने सभी मतभेदों को भुला कर, संगठित हो अपनी शक्ति का पुन: निर्माण किया जो शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद लुप्त सी हो गई थी। इसी शक्ति से मराठा वीर सम्पूर्ण भारत पर छाने लगे। महाराष्ट्र से तो मुगलों को पहले ही उखाड़ दिया गया था। अब शेष भारत की बारी थी। सबसे पहले निज़ाम के होश ठिकाने लगाकर मराठा वीरों ने बची हुई चौथ और सरदेशमुखी की राशी को वसूला गया। दिल्ली में अधिकार को लेकर छिड़े संघर्ष में मराठों ने सैयद बंधुओं का साथ दिया। 70000 की मराठा फौज को लेकर हिन्दू वीर दिल्ली पहुँच गये। इससे दिल्ली के मुसलमान क्रोध में आ गये। इस मदद के बदले मराठों को सम्पूर्ण दक्षिण भारत से चौथ और सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार मिल गया।
मालवा के हिन्दू वीरों ने जय सिंह के नेतृत्व में मराठों को मुगलों के राज से छुड़वाने के लिए प्रार्थना भेजी क्यूंकि उस काल में केवल मराठा शक्ति ही मुगलों के आतंक से देश को स्वतंत्र करवा सकती थी। मराठा वीरों की 70000 की फौज ने मुगलों को हरा कर भगवा झंडे से पूरे प्रान्त को रंग दिया।
बुंदेलखंड में वीर छत्रसाल ने अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी। शिवाजी और उनके गुरु रामदास को वे अपना आदर्श मानते थे। वृद्धावस्था में उनके छोटे से राज्य पर मुगलों ने हमला कर दिया जिससे उन्हें राजधानी त्याग कर जंगलों की शरण लेनी पड़ी।इस विपत्ति काल में वीर छत्रसाल ने मराठों को सहयोग के लिए आमंत्रित किया। मराठों ने वर्षा ऋतु होते हुए भी आराम कर रही मुग़ल सेना पर धावा बोल दिया और उन्हें मार भगाया। वीर छत्रसाल ने अपनी राजधानी में फिर से प्रवेश किया। मराठों के सहयोग से वो इतने प्रसन्न हुए की उन्होंने बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र बना लिया और उनकी मृत्यु के पश्चात उनके राज्य का तीसरा भाग बाजीराव को मिला।
इसके पश्चात गुजरात की और मराठा सेना पहुँच गई। मुगलों ने अभय सिंह को मराठों से युद्ध लड़ने के लिये भेजा। उसने एक स्थान पर धोखे से मराठा सरदार की हत्या तक कर दी पर मराठा कहाँ मानने वाले थे। उन्होंने युद्ध में जो जोहर दिखाए की मराठा तल्वाक की धाक सभी और जम गई। इधर दामा जी गायकवाड़ ने अभय सिंह के जोधपुर पर हमला कर दिया जिसके कारण उसे वापिस लौटना पड़ा। मराठों ने बरोडा और अहमदाबाद पर कब्ज़ा कर लिया।
दक्षिण में अरकाट में हिन्दू राज को गद्दी से उतर कर एक मुस्लिम वहां का नवाब बन गया था। हिन्दू राजा के मदद मांगने पर मराठों ने वहाँ पर आक्रमण कर दिया और मुस्लिम नवाब पर विजय प्राप्त की। मराठों को वहाँ से एक करोड़ रुपया प्राप्त हुआ। इससे मराठों का कार्य क्षेत्र दक्षिण तक फैल गया।इसी प्रकार बंगाल में भी गंगा के पश्चिमी तट तक मराठों का विजय अभियान जारी रहा एवं बंगाल से भी उचित राशी वसूल कर मराठे अपने घर लौटे।मैसूर में भी पहले हैदर अली और बाद में टीपू सुल्तान से मराठों ने चौथ वूसली की थी।
दिल्ली के कागज़ी बादशाह ने फिर से मराठों का विरोध करना आरंभ कर दिया। बाजीराव ने मराठों की फौज को जैसे ही दिल्ली भेजा उनके किलों की नीवें मराठा सैनिकों की पदचाप से हिलने लगी। आखिर में अपनी भूल और प्रयाश्चित करके मराठा क्षत्रियों से उन्होंने पीछा छुड़ाया। अहमद शाह अब्दाली से युद्ध के काल में ही मराठा उसका पीछा करते हुए सिंध नदी तक पहुँच गये थे। पंजाब की सीमा पर कई शताब्दियों के मुस्लिम शासन के पश्चात मराठा घोड़े सिंध नदी तक पहुँच पाए थे। मराठों के इस प्रयास से एवं पंजाब में मुस्लिम शासन के कमजोर होने से सिख सत्ता को अपनी उन्नति करने का यथोचित अवसर मिला जिसका परिणाम आगे महाराजा रंजीत सिंह का राज्य था। इस प्रकार सिंध के किनारों से लेकर मदुरै तक, कोंकण से लेकर बंगाल तक मराठा सरदार सभी प्रान्तों से चौथ के रूप में कर वसूल करते थे, स्थान स्थान पर अपने विरुद्ध उठ रहे विद्रोहों को दबाते थे और भगवा पताका को फहरा कर हिन्दू पद पादशाही को स्थिर कर रहे थे। इन सब प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की करीब एक शताब्दी तक मराठों का भारत देश पर राज रहा जोकि विशुद्ध हिन्दू राज्य था।
थल से जल तक
वीर शिवाजी के समय सही मराठा फौज अपनी जल सेना को मजबूत करने में लगी हुई थी। इस कार्य का नेतृत्व कान्होजी आंग्रे के कुशल हाथों में था। कान्होजी को जंजिरा के मुस्लिम सिद्दी, गोआ के पुर्तगाली, बम्बई के अंग्रेज और डच लोगों का सामना करना पड़ता था जिसके लिए उन्होंने बड़ी फौज की भर्ती की थी। इस फौज के रख रखाव के लियी वो उस रास्ते से आने जाने वाले सभी व्यापारी जहाजों से कर लेते थे। अंग्रेज यही काम सदा से करते आये थे इसलिए उन्हें यह कैसे सहन होता। बम्बई के समुद्र तट से 16 मील की दूरी पर खाण्डेरी द्वीप पर मराठों का सशक्त किला था। इतिहासकार कान्होजी आंग्रे को समुद्री डाकू के रूप में लिखते हैं जबकि वे कुशल सेनानायक थे। 1717 में बून चार्ल्स बम्बई का गवर्नर बन कर आया। उसने मराठों से टक्कर लेने की सोची। उसने जहाजों का बड़ा बेड़ा और पैदल सेना तैयार कर मराठों के समुद्री दुर्ग पर हमला कर दिया। अंग्रेजों ने अपने जहाजों के नाम भी रिवेंज,विक्ट्री,हॉक और हंटर आदि रखे थे। पूरी तैयारी के साथ अंग्रेजों ने मराठों के दुर्ग पर हमला किया पर मराठों के दुर्ग कोई मोम के थोड़े ही बने थे। अंग्रेजों को मुँह की खानी पड़ी। अगले साल फिर हमला किया फिर मुँह की खानी पड़ी। तंग आकर इंग्लैंड के महाराजा ने कोमोडोर मैथयू के नेतृत्व में एक बड़ा बेड़ा मराठों से लड़ने के लिए भेजा। इस बार पुर्तगाल की सेना को भी साथ में ले लिया गया। बड़ा भयानक युद्ध हुआ। कोमोडोर मैथयू स्वयं आगे बढ़ बढ़ कर नेतृत्व कर रहा था। मराठा सैनिक ने उसकी जांघ में संगीन घुसेड़ दी, उसने दो गोलियाँ भी चलाई पर वह खाली गई क्यूंकि मराठों के आतंक और जल्दबाजी में वह उसमें बारूद ही भरना भूल गया। अंत में अंग्रेजों और पुर्तगालियों की संयुक्त सेना की हार हुई। दोनो एक दूसरे को कोसते हुए वापिस चले गए। डच लोगों के साथ युद्ध में भी उनकी यही गति बनी। मराठे थल से लेकर जल तक के राजा थे।
ब्रह्मेन्द्र स्वामी और सिद्दी मुसलमानों का अत्याचार
ब्रह्मेन्द्र स्वामी को महाराष्ट्र में वही स्थान प्राप्त था जो स्थान शिवाजी के काल में समर्थ गुरु रामदास को प्राप्त था। सिद्दी कोंकण में राज करते थे मराठों के विरुद्ध पुर्तगालीयों , अंग्रेजों और डच आदि की सहायता से उनके इलाकों पर हमले करते थे। इसके अलावा उनका एक पेशा निर्दयता से हिन्दू लड़के और लड़कियों को उठा कर ले जाना और मुसलमान बनाना भी था। इसी सन्दर्भ में सिद्दी लोगों ने भगवान परशुराम के मंदिर को तोड़ डाला। यह मंदिर ब्रह्मेन्द्र स्वामी को बहुत प्रिय था। उन्होंने निश्चय किया की वह कोंकण देश में जब तक वापिस नहीं आयेंगे जब तक उनके पीछे अत्याचारी मलेच्छ को दंड देने वाली हिन्दू सेना नहीं होगी क्यूंकि सिद्दी लोगों ने मंदिर और ब्राह्मण का अपमान किया हैं। स्वामी जी वहाँ से सतारा चले गए और अपने शिष्यों शाहू जी और बाजीराव को पत्र लिख कर अपने संकल्प की याद दिलवाते रहे। मराठे उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। सिद्दी लोगों का आपसी युद्ध छिड़ गया, बस मराठे तो इसी की प्रतीक्षा में थे। उन्होंने उसी समय सिद्दियों पर आक्रमण कर दिया। जल में जंजिरा के समीप सिद्दियों के बेड़े पर आक्रमण किया गया और थल पर उनकी सेना पर आक्रमण किया गया। मराठों की शानदार विजय हुई और कोंकण प्रदेश मराठा गणराज्य का भाग बन गया। ब्रह्मेन्द्र स्वामी ने प्राचीन ब्राह्मणों के समान क्षत्रियों की पीठ थप-थपा कर अपने कर्तव्य का निर्वाहन किया था। वैदिक संस्कृति ऐसे ही ब्राह्मणों की त्याग और तपस्या के कारण प्राचीन काल से सुरक्षित रही हैं।
गोआ में पुर्तगाली अत्याचार
गोआ में पुर्तगाली सत्ता ने भी धार्मिक मतान्धता में कोई कसर न छोड़ी थी। हिन्दू जनता को ईसाई बनाने के लिए दमन की निति का प्रयोग किया गया था। हिन्दू जनता को अपने उत्सव बनाने की मनाही थी। हिन्दुओं के गाँव के गाँव ईसाई न बनने के कारण नष्ट कर दिए गये थे। सबसे अधिक अत्याचार ब्राह्मणों पर किया गया था। सैकड़ों मंदिरों को तोड़ कर गिरिजाघर बना दिया गया था। कोंकण प्रदेश में भी पुर्तगाली ऐसे ही अत्याचार करने लगे थे।ऐसे में वह की हिन्दू जनता ने तंग आकर बाजीराव से गुप्त पत्र व्यवहार आरंभ किया और गोवा के हालात से उन्हें अवगत करवाया। मराठों ने कोंकण में बड़ी सेना एकत्र कर ली और समय पाकर पुर्तगालियों पर आक्रमण कर दिया। उनके एक एक कर कई किलों पर मराठों का अधिकार हो गया। पुर्तगाल से अंटोनियो के नेतृत्व में बेड़ा लड़ने आया पर मराठों के सामने उसकी एक न चली। वसीन के किले के चारों और मराठों ने चिम्मा जी अप्पा के नेतृत्व में घेरा दाल दिया था। वह घेरा कई दिनों तक पड़ा रहा था। अंत में आवेश में आकार अप्पा जी ने कहा की तुम लोग अगर मुझे किले में जीते जी नहीं ले जा सकते तो कल मेरे सर को तोप से बांध कर उसे किले की दिवार पर फेंक देना कम से कम मरने के बाद तो मैं किले मैं प्रवेश कर सकूँगा। वीर सेनापति के इस आवाहन से सेना में अद्वितीय जोश भर गया और अगले दिन अपनी जान की परवाह न कर मराठों ने जो हमला बोला की पुर्तगाल की सेना के पाँव ही उखड़ गए और किला मराठों के हाथ में आ गया। यह आक्रमण गोआ तक फैल जाता पर तभी उत्तर भारत पर नादिर शाह के आक्रमण की खबर मिली। उस काल में केवल मराठा संघ ही ऐसी शक्ति थी जो इस प्रकार की इस राष्ट्रीय विपदा का प्रतिउत्तर दे सकती थी। नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण कर 15000 मुसलमानों को अपनी तलवार का शिकार बनाया। उसका मराठा पेशवा बाजीराव से पत्र व्यवहार आरंभ हुआ। जैसे ही उसे सूचना मिली की मराठा सरदार बड़ी फौज लेकर उससे मिलने आ रहे हैं वह दिल्ली को लुटकर ,मुगलों के सिंघासन को उठा कर अपने देश वापिस चला गया।
पहाड़ी चूहे से महाराजाधिराज तक
दिल्ली में अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण का काल में रोहिल्ला सरदार नजीब खान ने दिल्ली में बाबर वंशी शाह आलम पर हमला कर उसकी आँखें फोड़ दी और उस पर भयानक अत्याचार किये। मराठा सरदार महाजी सिंधिया ने दिल्ली पर हमला बोल कर नजीब खा को उसके किये की सजा दी। इतिहास गवाह हैं की जिस औरंगजेब ने वीर शिवाजी की वीरता से चिढ़ कर अपमानजनक रूप से उन्हें पहाड़ी चूहा कहा था उसी औरंगजेब के वंशज ने मराठा सरदार को पूना के पेशवा के लिए "वकिले मुतालिक" अर्थात "महाराजाधिराज" से सुशोभित किया। औरंगजेब जिसे आलमगीर भी कहा जाता हैं ने अपनी ही धर्मान्ध नीतियों से अपने जीवन में इतने शत्रु एकत्र कर लिए थे जिसका प्रबंध करने में ही उसकी सारी शक्ति, उसकी आयु ख़त्म हो गई।
पहले पानीपत के मैदान में मराठों को हार का सामना करना पड़ा पर इससे अब्दाली की शक्ति भी क्षीण हो गई और अब्दाली वही से वापिस अपने देश चला गया। कालांतर में मराठों के आपसी टकराव ने मराठा संघ की शक्ति को सिमित कर दिया जिससे उनकी 1818 में अंग्रेजों से युद्ध में हार हो गई और हिन्दू पद पादशाही का मराठा स्वराज्य का सूर्य सदा सदा के लिए अस्त हो गया।
इतिहास इस बात का भी साक्षी हैं की जब भी किसी जाति पर अत्याचार होते हैं, उनका अन्याय पूर्वक दमन किया जाता हैं तब तब उसी जाति से अनेक शिवाजी, अनेक प्रताप, अनेक गुरु गोबिंद सिंह उठ खड़े होते हैं जो अत्याचारी का समूल नष्ट कर देते हैं।केवल इस्लामिक आक्रान्ता और मुग़ल शासन से इतिहास की पूर्ति कर देना इतिहास से साथ खिलवाड़ के समान हैं जिसके दुष्परिणाम अत्यंत दूरगामी होंगे।
वियतनामी चाम हिंदू
चाम हिंदुओं के पीछे एक सुनहरा इतिहास है। उनका साम्राज्य जिसे चंपराज नाम दिया गया था, आज के दक्षिण वियतनाम और लाओस के कुछ हिस्सों को नियंत्रित करता था। चंपा के महाराजा भगवान शिव के भक्त थे और कई मंदिरों के निर्माता थे।
चंपा से भगवान नटराज की दसवीं शताब्दी की प्रतिमा
चम्पा साम्राज्य का मुकुट
हिंदू धर्म को राजधर्म के रूप में स्थापित करने के बाद, चंपा ने संस्कृत शिलालेख बनाना शुरू किया और हिंदू मंदिरों का निर्माण किया। शिलालेखों के अनुसार, पहले राजा महाराज भद्रवर्मन थे, जिन्होंने 380 ईस्वी से 413 ईस्वी तक शासन किया था। "मी शॉन" में, राजा भद्रवर्मन ने भद्रेश्वर नामक एक लिंग की स्थापना की, जिसका नाम राजा के अपने नाम और भगवान शिव के संयोजन में था। । भद्रेश्वर नाम के देव-राजा की पूजा सदियों के बाद भी जारी रही। महाराजा रुद्रवर्मन ने 529 ईस्वी में एक नए राजवंश की स्थापना की और उनके पुत्र महाराज शंभुवर्मन ने उनका उत्तराधिकार लिया। उन्होंने भद्रवर्मन के मंदिर का पुनर्निर्माण किया और इसका नाम बदलकर शंभू-भद्रेश्वर रखा। 629 में उनकी मृत्यु हो गई और उनके पुत्र कंदर्पधर्म की मृत्यु हो गई, जिनकी मृत्यु 630–31 में हुई। कंदर्पधर्म का उत्तराधिकारी उनके पुत्र, प्रभासधर्म द्वारा प्राप्त किया गया था, जिनकी मृत्यु 645 ईस्वी में हुई थी।
7 वीं से 10 वीं शताब्दी ईस्वी के बीच, चाम राजवंश एक नौसेना शक्ति बन गया; चंपा के बंदरगाहों ने स्थानीय और विदेशी व्यापारियों को आकर्षित किया, चम्पा के जहाजों ने चीन, इंडोनेशियाई द्वीपसमूह और भारत के बीच दक्षिण चीन सागर में मसालों और रेशम के व्यापार को भी नियंत्रित किया।
1471 में, उत्तरी दिशा से वियतनामी आक्रमण हुआ और चम्पा को एक गंभीर हार का सामना करना पड़ा, जिसमें 120,000 लोग या तो पकड़ लिए गए या मारे गए, और उनका राज्य नष्ट हो गया। चंपा के महाराज महाजन को युद्ध के कैदी के रूप में लिया गया था और उसके साथ, उनके लोगों ने अपनी खुद की जमीन पर नियंत्रण खो दिया था जो वे फिर से हासिल करने में कामयाब नहीं हुए।
वियतनामी सम्राट "लेह थान ताह" की एक प्रतिमा जिसने चम्पा को हराया था
8 वीं शताब्दी से ही अरब के व्यापारी चम्पा में पहुंचने लगे थे। मुसलमानों ने 10 वीं शताब्दी ईस्वी के बाद चाम के बीच धर्मप्रचार शुरू किया। 17 वीं शताब्दी तक, चाम के पूरे शाही परिवार ने इस्लाम कबूल कर लिया था, इंडोनेशिया में कई मुस्लिम चाम ने इस्लाम का धर्म प्रचार किया। उन्होंने वियतनामी आक्रमणकारियों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा, लेकिन यह सवाल के दायरे से बाहर है। अंत में, शैव ब्राह्मणों और नागवंशी क्षत्रियों को छोड़कर अधिकांश चाम लोग इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गए और अब वियतनामी चेम्स में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं।
आज भी चम्पा के लोगों को वियतनामी कम्युनिस्ट शासन द्वारा उनके वाजिब अधिकार नहीं दिए गए हैं, क्योंकि सरकार को चम्पन अलगाववादी तत्वों के पुनरुत्थान का भय है।
चंपा में स्थित एक भव्य गणेश मंदिर
वियतनाम के "न्हा तरंग" के अपने मंदिर के सामने नृत्य प्रस्तुत करतीं हुईं चाम स्त्रियाँ
चम्पा साम्राज्य को सबसे बड़ी हद तक दिखाने वाला एक नक्शा
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