Search This Blog

Saturday, 27 April 2019

अजनाभ खंड



पुराणों और वेदो के अनुसार धरती कै सात द्वीप थे-
जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्राँच,शाक एंव पुष्कर।

इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित था। पहले सम्पूर्ण हिन्दू जाति जम्बू द्वीप पर शासन करती थी। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया जम्बू द्वीप के 9 खण्ड थे:-
इलावृत,भद्राक्ष, किंपुरुष, भरत,हरि,केतुमाल, रम्यक,कुरु और हिरण्यमय।

इसमे से भरत खंड को ही भारतवर्ष कहते थे जिसका नाम पहले अजनाभ खंड था। इस भरत खंड के भी नौ खंड थे:-

इंद्रद्वीप,कसेरू, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गंधर्व, और वारूण तथा समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमे नौवां है इस संपूर्ण क्षेत्र को महान सम्राट भरत के पिता, पितामह और भरत के वंशजो ने बसाया था।

यह अफगानिस्तान के हिंदुकुश से भारत के अरूणाचल की पर्वत माला और कश्मीर की हिमालय की चोटियो से कन्याकुमारी तक फैला था।दूसरी तरफ यह हिन्दुकुश से अरबसागर तक और अरूणाचल से वर्मा तक फैला था इसके अंतर्गत वर्तमान मे अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, वर्मा, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि देश आते थे जिसके प्रमाण आज भी मौजूद है।

जम्बू द्वीप से छोटा है भारतवर्ष। भारतवर्ष में ही आर्यावर्त स्थित था। आज न जम्बू द्वीप है न भारतवर्ष और न आर्यावर्त। आज सिर्फ हिन्दुस्थान है और सच कहें तो यह भी नहीं। क्या कारण हैं कि वेदों को मानने वाले लोग अब अपने ही देश में दर-बदर हैं? वह लोग जिनके कारण ही दुनियाभर के धर्मों और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई, वह लोग जिनके कारण दुनिया को ज्ञान, विज्ञान, योग, ध्यान और तत्व ज्ञान मिला।

सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।। -वेदव्यास, भीष्म पर्व, महाभारत

अर्थात : हे कुरुनन्दन! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भांति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखाई देता है। इसके दो अंशों में पिप्पल और दो अंशों में महान शश (खरगोश) दिखाई देता है।

अर्थात : दो अंशों में पिप्पल का अर्थ पीपल के दो पत्तों और दो अंशों में शश अर्थात खरगोश की आकृति के समान दिखाई देता है। आप कागज पर पीपल के दो पत्तों और दो खरगोश की आकृति बनाइए और फिर उसे उल्टा करके देखिए, आपको धरती का मानचित्र दिखाई देगा। यह श्लोक 5 हजार वर्ष पूर्व लिखा गया था। इसका मतलब लोगों ने चंद्रमा पर जाकर इस धरती को देखा होगा तभी यह बताने में सक्षम हुआ होगा कि ऊपर से समुद्र को छोड़कर धरती कहां-कहां नजर आती है और किस तरह की।

पहले संपूर्ण हिन्दू जाति जम्बू द्वीप पर शासन करती थी। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। फिर कुरुओं और पुरुओं की लड़ाई के बाद आर्यावर्त नामक एक नए क्षेत्र का जन्म हुआ जिसमें आज के हिन्दुस्थान के कुछ हिस्से, संपूर्ण पाकिस्तान और संपूर्ण अफगानिस्तान का क्षेत्र था। लेकिन लगातार आक्रमण, धर्मांतरण और युद्ध के चलते अब घटते-घटते सिर्फ हिन्दुस्तान बचा है।

यह कहना सही नहीं होगा कि पहले हिन्दुस्थान का नाम भारतवर्ष था और उसके भी पूर्व जम्बू द्वीप था। कहना यह चाहिए कि आज जिसका नाम हिन्दुस्तान है वह भारतवर्ष का एक टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बू द्वीप का एक हिस्सा मात्र है। जम्बू द्वीप में पहले देव-असुर और फिर बहुत बाद में कुरुवंश और पुरुवंश की लड़ाई और विचारधाराओं के टकराव के चलते यह जम्बू द्वीप कई भागों में बंटता चला गया।

धरती के सात द्वीप : पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है।

'जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्‌,
हरिवर्षं तथैवान्यन्‌मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्‌,
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्‌,
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।- (विष्णु पुराण)

जम्बू द्वीप का वर्णन : जम्बू द्वीप को बाहर से लाख योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चारों ओर से घेरा हुआ है। जम्बू द्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। जम्बू (जामुन) नामक वृक्ष की इस द्वीप पर अधिकता के कारण इस द्वीप का नाम जम्बू द्वीप रखा गया था।

जम्बू द्वीप के 9 खंड थे : इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इनमें भारतवर्ष ही मृत्युलोक है, शेष देवलोक हैं। इसके चतुर्दिक लवण सागर है। इस संपूर्ण नौ खंड में इसराइल से चीन और रूस से भारतवर्ष का क्षेत्र आता है।

जम्बू द्वीप में प्रमुख रूप से 6 पर्वत थे : हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत और श्रृंगवान।
भारतवर्ष का वर्णन : समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है। इसका विस्तार 9 हजार योजन है। यह स्वर्ग अपवर्ग प्राप्त कराने वाली कर्मभूमि है।

इसमें 7 कुल पर्वत हैं : महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, विंध्य और पारियात्र।

भारतवर्ष के 9 खंड : इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है।

मुख्य नदियां : शतद्रू, चंद्रभागा, वेद, स्मृति, नर्मदा, सुरसा, तापी, पयोष्णी, निर्विन्ध्या, गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी, कृतमाला, ताम्रपर्णी, त्रिसामा, आर्यकुल्या, ऋषिकुल्या, कुमारी आदि नदियां जिनकी सहस्रों शाखाएं और उपनदियां हैं।

तट के निवासी : इन नदियों के तटों पर कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए हैं।

किसने बसाया भारतवर्ष : त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था।

वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि राम के कुल में पूर्व में जो भरत हुए उनके नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा। यहां बता दें कि पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं पड़ा।

इस भूमि का चयन करने का कारण था कि प्राचीनकाल में जम्बू द्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप था, जहां रहने के लिए उचित वातारवण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु सबसे उत्तम थी। यहीं विवस्ता नदी के पास स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे।

राजा प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बनाया दिया था और अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था। इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र अपने पुत्र सुमति को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष अर्थात भरत राजा का क्षे‍त्र।

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

जब भी मुंडन, विवाह आदि मंगल कार्यों में मंत्र पड़े जाते हैं, तो उसमें संकल्प की शुरुआत में इसका जिक्र आता है:

।।जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….अमुक...।

* इनमें जम्बू द्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है। इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है, जो कि आर्यावर्त कहलाता है।

।।हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्। तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।

* हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है।

जम्बू द्वीप का विस्तार
* जम्बू दीप : सम्पूर्ण एशिया
* भारतवर्ष : पारस (ईरान), अफगानिस्तान, पाकिस्तान, हिन्दुस्थान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालद्वीप, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, कम्बोडिया, वियतनाम, लाओस तक भारतवर्ष।

आर्यावर्त : बहुत से लोग भारतवर्ष को ही आर्यावर्त मानते हैं जबकि यह भारत का एक हिस्सा मात्र था। वेदों में उत्तरी भारत को आर्यावर्त कहा गया है। आर्यावर्त का अर्थ आर्यों का निवास स्थान। आर्यभूमि का विस्तार काबुल की कुंभा नदी से भारत की गंगा नदी तक था।

ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को 'सप्तसिंधु' प्रदेश कहा गया है। ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्यनिवास में प्रवाहित होने वाली नदियों का वर्णन मिलता है, जो मुख्‍य हैं:- कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा। उक्त संपूर्ण नदियों के आसपास और इसके विस्तार क्षेत्र तक आर्य रहते थे।

वेद और महाभारत को छोड़कर अन्य ग्रंथों में जो आर्यावर्त का वर्णन मिलता है वह भ्रम पैदा करने वाला है, क्योंकि आर्यों का निवास स्थान हर काल में फैलता और सिकुड़ता गया था इसलिए उसकी सीमा क्षेत्र का निर्धारण अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग मिलता है। मूलत: जो प्रारंभ में था वही सत्य है।

हिन्दुस्थान बनने की कहानी महाभारत काल में ही लिख दी गई थी जबकि महाभारत हुई थी। महाभारत के बाद वेदों को मानने वाले लोग हमेशा से यवन और मलेच्छों से त्रस्त रहते थे। महाभारत काल के बाद भारतवर्ष पूर्णत: बिखर गया था। सत्ता का कोई ठोस केंद्र नहीं था। ऐसे में खंड-खंड हो चला आर्यखंड एक अराजक खंड बनकर रह गया था।

महाभारत के बाद : मलेच्छ और यवन लगातार आर्यों पर आक्रमण करते रहते थे। आर्यों में भरत, दास, दस्यु और अन्य जाति के लोग थे। गौरतलब है कि आर्य किसी जाति का नाम नहीं बल्कि वेदों के अनुसार जीवन-यापन करने वाले लोगों का नाम है।

बौद्धकाल में विचारधाराओं की लड़ाई अपने चरम पर चली गई। ऐसे में चाणक्य की बुद्धि से चंद्रगुप्त मौर्य ने एक बार फिर भारतवर्ष को फिर से एकजुट कर एकछत्र के नीचे ला खड़ा किया। बाद में सम्राट अशोक तक राज्य अच्छे से चला। अशोक के बाद भारत का पतन होना शुरू हुआ।

नए धर्म और संस्कृति के अस्तित्व में आने के बाद भारत पर पुन: आक्रमण का दौर शुरू हुआ और फिर कब उसके हाथ से सिंगापुर, मलेशिया, ईरान, अफगानिस्तान छूट गए पता नहीं चला और उसके बाद मध्यकाल में संपूर्ण क्षे‍त्र में हिन्दुओं का धर्मांतरण किया जाने लगा और अंतत: बच गया हिन्दुस्तान। धर्मांतरित हिन्दुओं ने ही भारतवर्ष को आपस में बांट लिया।

इस्लाम और ईसाई धर्म की उत्पत्ति के पूर्व लिखित प्राचीन ग्रंथ अनुसार :-
''हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते॥- (बृहस्पति आगम)

अर्थात : हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। इसका मतलब हिन्दुस्थान चंद्रगुप्त मौर्य के काल में था लेकिन आज जिसे हिन्दुस्थान कहते हैं वह क्या है?




Sunday, 21 April 2019

जात पात मे बटता हिंदू , जगह जगह पर मरता हिंदू।




आजकल बहुत साधारण सी बात हो गयी है ये अगर आप किसी से उसकी पहचान पूछे सामने वाला उछलकर बोलता है हम बनिए , राजपूत, ब्राह्मण , जाट , यादव , गूजर और धाकड़ समुदाय / धर्म को मानने वाले हैं। कोई नही कहता कि हम हिंदू है

आज हमारे सबके देवता / भगवान अलग अलग हैं। वो हमारे ट्रेड मार्क भी बन चुके हैं।  हम हमारी जाति समुदाय के लिए मर मिटने को हमेशा तैयार रहते हैं।  जहां तक हो सके हमारे मंदिर भी जाति के अनुसार अलग अलग हैं यहां तक कि कहीं कहीं हमारे श्मशान भी जाति के अनुसार अलग अलग हैं। हमने ॐ और स्वस्तिक का प्रतीक चिन्ह को भी त्याग दिया है और इसके स्थान पर हमारी जाति के अनुसार हमने प्रतीक चिन्ह भी विकसित कर लिए हैं। किसी समय लगता था कि हम हिन्दू हैं लेकिन अब हम अपनी जाति पर हिन्दू होने से अधिक गर्व करते हैं। हम किसी हिन्दू को देखकर खुश नहीं होते वरन हम अपनी जाति के किसी व्यक्ति को देखकर अत्यंत खुश होते हैं। हमने अपनी जाति के अनुसार जनगणनायें कराना शुरू कर दिया है। जाति के अनुसार स्कूल , धर्मशालाओं का निर्माण कार्य प्रगति पर है।   जातिवाद मे डूबे लोग बड़े गर्व से  कहते है कि " जिस जाति में जन्म लिया है उसका कर्ज उतार रहा हूँ "।  क्या कहना चाहते है  वो कि उन्होंने हिन्दू के घर जन्म नहीं लिया बल्कि किसी जाति विशेष के घर जन्म लिया है। तभी तो किसी धोबी की पिटाई होती है तो राजपूत खड़ा खड़ा तमाशा देखता है और जब किसी बनिए को लूटा जाता है तो कोई जाट खुश होता है।  

यदि आज हम हिन्दू होते तो क्या मजाल कोई विधर्मी हिंदुओं की  महिलाओं को जबरन उठा के ले जाए। क्यों हम  विधर्मी जिहादियों से डरकर कैराना छोड़कर भाग जाते ? हम हिन्दू होते तो हम दुश्मन की ईंट से ईंट नहीं बजा देते ? अब भी समय है।  जाति वाद छोडो और हिन्दू बन जाओ।  देश में हर जाति अल्पसंख्यक हैं लेकिन फिर भी संविधान जातियों को अल्पसंख्यक नहीं मानता। किसी धर्म विशेष को ही अल्पसंख्यक मानता है। फिर क्यों हम जातिवाद का विष समाज में घोल रहे हैं ? अब भी समय है एक होने का।  अन्यथा धर्मपरिवर्तन का लालची अजगर हमारी और मुंह फैलाए बैठा है। हमारा महाविनाश होना तय है। आज के पचास साल बाद भारत में हम घटकर 50 प्रतिशत रह जायेंगे फिर देखना हमारा क्या हाल होता है ?


आज हिंदुस्तान के अनेक राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक है फिर भी वहां का हिन्दू संगठित नहीं है बल्कि वहां के हिन्दू खुद हिन्दू हितैषी संस्थाओं का घोर विरोधी है। जैसे बंगाल, मणिपुर, त्रिपुरा ,केरल, आसाम आदि। यहां आज तक आर एस एस जैसे संगठन का अधिक प्रचार प्रसार नहीं है। यहां धीरे धीरे एक सोची समझी योजना के तहत हिन्दू को अल्पमत में लाने का प्रयास हो रहा है। एक दिन वह होगा जब यहां के हिन्दू खदेड़ दिए जायेंगे या जबरन उनको मुस्लिम या ईसाई बना लिया जाएगा ।  हम हिन्दू आने वाले खतरे के बारे में पूर्व विचार नहीं करते , केवल अपने स्वार्थ में लगे रहते हैं या फिर एक दूसरे की टांग खिंचाई में व्यस्त रहते हैं। जब खतरा उपस्थित होता है तब हाय तौबा मचाते हैं। हिन्दू कभी भी शस्त्र नहीं उठाता , जब मार काट की नौबत आती है तो जो अभिमानी और मुकाबला करने वाले होते हैं वे सुरक्षित स्थानों की तरफ पलायन कर जाते हैं या संघर्ष में मारे जाते हैं। जो हिन्दू कायर , मौकापरस्त और सेक्युलर दिमाग होते हैं वे यह सोचकर कि धर्म में क्या रखा है वे मुस्लिम या ईसाई बन जाते है। इतिहास इस बात का गवाह है , आज तक ऐसा ही हुआ है। हिन्दू ही वह व्यक्ति है जो विपत्ती आने पर सबसे पहले अपने धर्म को छोड़ता है। फिर अपने देवी देवताओं का अपमान करता है। हिन्दू उस कबूतर की तरह है जो बिल्ली को देखकर आँख मूंद लेता है। और सोचता है कि बिल्ली का खतरा टल गया। 


गर्व से कहो हम हिन्दू है 

यदि मैं कहूं क्या आपको हिन्दू होने में गर्व है ? तो बहुत से लोग कहेंगे कि यह क्या बात हुई ? जरूर यह आर एस एस से है। तो क्या आर एस एस के आदमी बुरे होते हैं ? वे क्या तुम्हारा अहित चाहते हैं ? जब केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों मे आर एस एस के लोग हिंदुत्व विचारधारा का प्रचार करते हुए अपनी जान गवा देते है तब क्यो चुप रहते हो इसी एक आदत की वजह से ये हाल हुआ हिंदुओं का कुछ करने की हिम्मत भी नही है लेकिन जो आगे बढ़ रहा है धर्म के लिए उसको पीछे घसीटने मे कोई कसर नही छोड़ते है।

जैसे दूसरे धर्मावलम्बियों के सामाजिक संगठन है वैसे हिन्दुओं का भी एक सबसे बड़ा संगठन आर एस एस है।  जो हिन्दू हितों के लिए लगातार चिन्तनरत और प्रयासरत है।  आर एस एस और विश्व हिन्दू परिषद् ने सोये हुए हिन्दुओं को जगाने और उनमें गर्व की भावना भरने के लिए एक नारा दिया था " गर्व से कहो हम हिंदू हैं। "

बहुत से हिंदू ऐसे है जो भजन से अधिक कव्वाली पसंद करते हैं , मंदिर से अधिक मजार में हाजिरी लगाना पसंद करते हैं , अपने बच्चों के नाम मुस्लिम बच्चों के नाम से मिलता जुलता रखना पसंद करते हैं। मैंने तो एक महाशय से यहां तक कहते सुना है कि क्या होगा यदि भारत का इस्लामीकरण हो गया तो राम के स्थान पर रहीम ही तो कहना पड़ेगा।

मुसलमानो की इस मामले में तारीफ करनी होगी , उनकी आस्था अपने धर्म में दृढ होती है।  कैसी भी मुसीबत हो वे कभी भी अपने धर्म पर आंच नहीं आने देते। जबकि आज के हिन्दू की अपने धर्म के प्रति आस्था डगमगा रही है।  वे बच्चों को धार्मिक शिक्षा से दूर रखने का प्रयत्न करते हैं क्योंकि वे समझते हैं कि ऐसा करने से उनके बच्चे स्मार्ट और आधुनिक बनेंगे।

हिन्दू धर्म का पतन क्यों हुआ 


क्या आपने सोचा कि हिन्दू धर्म का पतन क्यों हुआ ? आप सोचिये कहीं इसका एक कारण यह तो नहीं ?

हिन्दू गरीब हो या अमीर सभी मंदिर में अपनी हैसियत के अनुसार धन चढ़ाते हैं। जिससे मंदिर के रोजमर्रा के खर्चे तथा पंडित जी के परिवार का पालन पोषण होता है। लेकिन हमारे बहुत से मंदिर ऐसे भी हैं। जिनके पास अकूत धन सम्पदा है। मुगल भारत में लूट के लिए ही आते थे। उनहोंने अनेक मंदिरों को लूटा , नरसंहार किया तथा साथ ही प्राप्त धन को अपने साथ ले गए।  इसका एक उदाहरण सोमनाथ का मंदिर है। आज भी हमारे मंदिरों में बहुत सारा धन है।  यह धन समाज का है। 

आप देखिये चर्च और मस्जिदों में जो धन होता है , उस धन से वे कान्वेंट और मदरसे खोलते हैं , फिर यही धन हमारे बच्चों को हिन्दू संस्कृति से दूर करने हेतु काम आता है।  यहां तक की इस धन से हिन्दुओं का धर्मान्तरण भी करवाया जाता है।

हमारे मंदिरों में जो अथाह धन सम्पदा भरी पडी है , उसे समाज के काम आना चाहिए। क्यों नहीं उस धन से स्कूल , कालेज और विश्वविद्यालय खोले जाते ? क्यों नहीं उस धन से अनाथालय और छात्रावास खोले जाते ? क्यों नहीं इस धन का उपयोग दलित और गरीब हिन्दुओं के कल्याण पर खर्च किया जाता ?

यदि इस धन का सदुपयोग होगा तो कोई हिन्दू धर्म से विमुख नहीं होगा। कोई हिन्दू धर्मपरिवर्तन नहीं करेगा।  


क्या हिन्दू मुर्ख है 

क्या हिन्दू मूर्ख हैं? क्या हिन्दूओं ने इतिहास से कुछ सीखा? क्या हिन्दूओं में कभी एकता हो पायेगी? क्या हिन्दू किसी विपत्ति का मिलकर मुकाबला करेंगे? क्या हिन्दू कभी अपने बारे चिन्तन करेंगे? मुझे लगता है, हिन्दू मर जायेगा मिट जायेगा किन्तु कभी एक नहीं होगा। जो उसको जगाने का प्रयास करेगा, जो उसके बारे में सोचेगा वह उसी का विरोधी हो जायेगा। मुगल बादशाहों ने जो किया वह आज भी हो रहा है। चाहे कश्मीर हो, चाहे कैराना हो या धूलागढ हो कोई अन्त नहीं है। हिन्दू उसी के दुश्मन हो जाते हैं जो उनके लिए लडता है। हिन्दू वीर थे , वीर हैं इसमें कोई शक नहीं है। किन्तु अपनी मुर्खता के कारण अपनी दुर्दशा के लिए स्वयं जिम्मेदार भी हैं।


आप स्वयं इस कहानी से समझ सकते हैं---


बाबर और राणा सांगा में भयानक युद्ध चल रहा था। बाबर ने युद्ध में पहली बार तोपों का इस्तमाल किया था। उन दिनों युद्ध केवल दिन में लड़ा जाता था.....

शाम के समय दोनों तरफ के सैनिक अपने-अपने शिविर में आराम करते थे। फिर सुबह युद्ध होता था। लड़ते-लड़ते शाम हो चली थी। दोनों तरफ के सैनिक अपने शिविर में भोजन कर रहे थे, बाबर टहलते हुए अपने शिविर के बाहर खड़ा दुश्मन सेना को कैम्प देख रहा था। तभी उसे राणा सांगा की सेना के शिविरों से कई जगह से धुआं उठता दिखाई दिया। बाबर को लगा कि दुश्मन के शिविर में आग लग गई है। उसने तुरंत अपने सेनापति मीर बांकी को बुलाया और पूछा देखो, दुश्मन के शिविर में आग लग गई है। शिविर में पचासों जगहों से धुएं निकल रहे हैं.....

सेनापति ने अपने गुप्तचरों को आदेश दिया:- "जाओ, पता लगाओ कि दुश्मन के सैन्य शिविर से इतनी बड़ी संख्या में इतनी जगहों से धूएं का गुबार क्यों निकल रहा है??? गुप्तचर कुछ देर बाद लौटे। उन्होंने बताया कि हुजुर, दुश्मन सैनिक सब हिन्दू हैं। वो एक साथ एक जगह बैठ कर खाना नहीं खाते। सेना में कई जाति के सैनिक है, जो एक दुसरे का छुआ नहीं खाते। इसलिए सब अपना भोजन अलग-अलग बनाते हैं। एक दुसरे का छुआ पानी तक नहीं पीते.......

ये सुनकर बाबर खूब जोर से हंसा। काफी देर हंसने के बाद उसने अपने सेनापति से कहा कि मीरबांकी, फ़तेह हमारी होगी, ये क्या हमसे लड़ेंगे?? जो सेना एक साथ मिलकर बैठकर खाना तक नहीं खा सकती वो एक साथ मिलकर दुश्मन के खिलाफ कैसे लड़ेगी??......

तीन दिनों में राणा सांगा की सेना मार दी गई और बाबर ने मुग़ल शासन की नीव रखी। लेकिन हिन्दू आज भी उतने ही मूर्ख है, जितने पहले थे।


हम हिन्दू है 

हम हिन्दू हैं ! हमारा अपना समृद्ध इतिहास है किन्तु इस देश के इतिहासकरों ने कभी भी हिन्दुत्व के महत्व को नहीं जाना , इस देश की सांस्कृतिक चेतना को नहीं पहचाना।  यही कारण है कि हम हमारी संस्कृति और गौरव से विमुख होते जा रहे हैं। यदि हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान होता और हमारी शिक्षा में नैतिक मूल्यों का सर्वोच्च स्थान होता तो इस पवित्र भारत भूमि के समाज का इस स्तर तक नैतिक पतन नहीं होता।  इस समाज में नारी का अपमान नहीं होता , सत्ता के लोभी नहीं होते , सामाजिक द्वेष नहीं होता।  हमारी सांस्कृतिक विरासत ही हमारी पहचान है।  इसी से हमारा अस्तित्व है , इसकी रक्षा करना हमारा धर्म है।  हमें हमारी संस्कृति को नष्ट करने वालों से सावधान रहना होगा। 

हिंदुओं के पतन का कारण

हिंदुओं के पतन का सबसे बड़ा कारण है  कि हम हिंदुओं की न तो वैश्विक दृष्टि है और न ही इतिहास का बोध है। हमने इतिहास से कुछ नहीं सीखा है। हममें हकीकत की गहराइयों  से दो -दो हाथ करने की हिम्मत नहीं है। हम सिकुड़ते जाते हैं। आज भी हम दलित और वंचित को अपना नहीं सके हैं इसलिए वह हमसे प्रथक होता जा रहा है।

                     कुछ तो विचार करो , कुछ तो बंधन तोड़ो !












Saturday, 20 April 2019

मान (अभिमान) का हनन करने वाले भक्तों के प्यारे हनुमान जी






 जब श्रीरामजी अपनी मानव लीला को संवरण कर साकेत जाने लगे तो उस समय उन्होंने हनुमान को अपने पास बुलाकर कहा -

‘हे हनुमान ! अब मैं अपने लोक को प्रस्थान कर रहा हूँ । देवी सीता तुम्हें अमरत्व का वर पहले ही दे चुकी हैं, इसलिए अब तुम भूलोक में रहकर शान्ति, प्रेम, ज्ञान तथा भक्ति का प्रचार करो । मेरे वियोग का दु:ख तुम्हें नहीं होना चाहिए, क्योंकि मैं अदृश्य रूप में सदैव तुम्हारे पास ही बना रहूंगा तथा तुम्हारा हृदय ही मेरा निवास-स्थान होगा । द्वापर युग में जब मैं कृष्ण के रूप में पुन: अवतार धारण करुंगा तब मेरी तुमसे फिर भेंट होगी । जहां भी मेरी कथा तथा कीर्तन हो तुम वहां निरन्तर उपस्थित रहना तथा मेरे भक्तों की सहायता करते रहना । तुम्हें संसार में कभी कोई कष्ट नहीं होगा, इसके अतिरिक्त अपने भक्तों का कष्ट दूर करने की सामर्थ्य भी तुम्हें प्राप्त होगी । जिस स्थान पर मेरा मन्दिर बनेगा और जहां मेरी पूजा होगी, वहां तुम्हारी मूर्ति भी रहेगी और लोग तुम्हारी पूजा भी करेंगे । वास्तव में तुम शंकरावतार होने के कारण हम-तुम अभिन्न हैं । सेवक-स्वामी के अनन्य प्रेम-भाव को विश्व में उजागर करने के लिए ही हमने अब तक की सभी लीलाएं की हैं । जो लोग भक्ति और श्रद्धापूर्वक मेरा तथा तुम्हारा स्मरण करेंगे, वे समस्त संकटों से छूटकर मनोवांछित फल प्राप्त करते रहेंगे । लोक में जब तक मेरी कथा रहेगी, तब तक तुम्हारी सुकीर्ति भी जीवित बनी रहेगी । तुमने मेरे पर जो-जो उपकार किए हैं, उनका बदला मैं कभी नहीं चुका सकता ।’

इतना कह कर श्रीरामजी ने अपनी मानवी लीला संवरण कर ली । हनुमानजी नेत्रों में अश्रु भरकर श्रीसीताराम को बार-बार प्रणाम कर तपस्या के लिए हिमालय चले गए ।

कलिकाल में हनुमानजी का इन स्थानों पर है निवास

▪️रामकथा में हनुमानजी का निवास—

श्रीरामजी के साकेत प्रस्थान के बाद हनुमानजी अपने प्रभु के आदेशानुसार उन्हीं के गुणों का कीर्तन एवं श्रवण करते हुए भूतल पर भ्रमण करने लगे । हनुमानजी का विग्रह राम-नाममय है। उनके रोम-रोम में राम-नाम अंकित है। उनके वस्त्र, आभूषण, आयुध–सब राम-नाम से बने हैं। उनके भीतर-बाहर सर्वत्र आराध्य-ही-आराध्य हैं। उनका रोम-रोम श्रीराम के अनुराग से रंजित है। जहां भी रामकथा या रामनाम का कीर्तन होता है, वहां वे गुप्त रूप से सबसे पहले पहुंच जाते हैं । दोनों हाथ जोड़कर सिर से लगाये सबसे अंत तक वहां वे खड़े ही रहते हैं । प्रेम के कारण उनके नेत्रों से बराबर आंसू झरते रहते हैं ।

सुनहिं पवनसुत सर्बदा आँखिन अंबु बहाइ ।

छकत रामपद-प्रेम महँ सकल सुरत बिसराइ ।।

अरु जहँ जहँ रघुपति-कथा सादर बाँचत कोइ ।

तहँ तहँ धरि सिर अंजली सुनत पुलक तन सोइ ।।

(महाराजा रघुराजसिंहजी द्वारा रचित रामरसिकावली, त्रेतायुगखण्ड, प्रथम अध्याय)

▪️किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी का निवास—

किम्पुरुषवर्ष हेमकूट पर्वत के दक्षिण में स्थित है । हेमकूट पर्वत हिमालय में तपस्या करने का वह स्थान है, जहां शीघ्र ही सिद्धि मिल जाती है । यह किन्नरों का निवासस्थान है ।

(देवताओं की एक जाति का नाम गन्धर्व है । इनका एक अलग लोक होता है जहां ये निवास करते हैं । ये देवताओं के गायक, नृत्यक और स्तुति पढ़ने वाले होते हैं । गन्धर्वों में तुम्बरु और हाहा-हूहू बहुत प्रसिद्ध हैं । देवर्षि नारद ने गन्धर्वों से ही संगीत सीखा था और इसी कारण वे लोक में हरिगुणगान करते हुए भगवान विष्णु को अति प्रिय हुए ।) किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी तुम्बुरु आदि गन्धर्वों द्वारा मधुर-मधुर बाजे-बजाते हुए गायी जाने वाली श्रीराम-कथा का श्रवण करते हैं, मन्त्र जपते हुए श्रीराम की स्तुति करते रहते हैं और उनके नेत्रों से अश्रु झरते रहते हैं ।

गर्गसंहिता के विश्वजित्-खण्ड में लिखा है कि किम्पुरुषवर्ष में श्रीरामचन्द्रजी सीताजी के साथ विराजमान हैं । हनुमानजी संगीत के महारथी आर्ष्टिषेण के साथ वहां उनके दर्शन के लिए आया करते हैं ।

अध्यात्मरामायण में भी हनुमानजी का तपस्या के लिए हिमालय (किम्पुरुषवर्ष) में जाकर निवास करने का उल्लेख मिलता है ।

नारदजी ने भी किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी को वन की सामग्री से श्रीराम की मूर्ति का पूजन करते हुए और गंधर्वों के मुख से रामायण का गान सुनते हुए देखा था । हनुमानजी ने नारदजी से कहा—‘मैं श्रीराम की मूर्ति का पूजन दर्शन करते हुए यहां निवास करता हू्ँ ।’

शास्त्र के प्रमाण

श्रीशुक उवाच । किम्पुरुषे वर्षे भगवन्तमादिपुरुषं लक्ष्मणाग्रजं सीताभिरामं रामं तच्चरण सन्निकर्षाभिरतः परमभागवतो हनुमान्सह किम्पुरुषैरविरतभक्तिरुपास्ते॥ - श्रीमद्भागवतम


 श्रील शुकदेव गोस्वामी जी ने कहाँ, “हे राजन्, किंपुरुष लोक में भक्तों में श्रेष्ठ हनुमान उस लोक के अन्य निवासियों के साथ प्रभु राम जो लक्ष्मण के बड़े भ्राता और सीता के पति है, उनकी सेवा में हमेशा मग्न रहते है।”


आर्ष्टिषेणेन सह गन्धर्वैरनुगीयमानां परमकल्याणीं भर्तृभगवत्कथां समुपशृणोति स्वयं चेदं गायति ॥ - श्रीमद्भागवतम

वहाँ गंधर्वों के समूह हमेशा रामचंद्र के गुणों का गान करते रहते है। वह गान अत्यंत शुभ और मनमोहक होता है। हनुमान जी और आर्ष्ट्रीषेण जो किंपुरुष लोक के प्रमुख है वे उन स्तुतिगानों को हमेशा सुनते रहते है।


किम्पौरुषाणाम् वायुपुत्रोऽहं ध्रुवे ध्रुवः मुनिः ॥ - ब्रह्म वैवर्त पुराण

किंपुरुष लोक के निवासियों में तुम मुझे वायुपुत्र हनुमान जान लो तथा ध्रुवलोक में मुझे ध्रुव ऋषि के रूप में देखो।

▪️अयोध्या में निवास—

अयोध्या श्रीराम की पुरी है । हनुमानजी इस पुरी में नित्य निवास करके अपने आराध्य श्रीराम की सेवा करते हैं । अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी हनुमानजी की सेवा की प्रतीक है ।

बृहद्ब्रह्मसंहिता के अनुसार श्रीराम के अनन्य सेवक महावीर हनुमान साकेत धाम (अयोध्या) की ईशान दिशा में रक्षक के रूप में सदा विराजमान रहते हैं ।

▪️महाभारत के युद्ध में भी हनुमानजी उपस्थित रहे । वे अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठे रहते थे । उनके बैठे रहने से अर्जुन के रथ को कोई पीछे नहीं हटा सकता था । कई बार उन्होंने अर्जुन की रक्षा भी की । एक बार हनुमानजी ने भीम, अर्जुन और गरुड़जी को अभिमान करने से बचाया था ।

कलिकाल में हनुमानजी का निवास-स्थान

श्रीराम के अनन्य सेवक हनुमानजी अमर, चिरंजीवी और सनातन हैं । उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान माता सीता और प्रभु श्रीराम दोनों ने ही दिया है । माता सीता हनुमानजी को आशीष देते हुए कहती हैं—

अजर अमर गुननिधि सुत होहू ।

करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥

करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना ।

निर्भर प्रेम मगन हनुमाना ।। (श्रीरामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड)

अर्थात—

हे पुत्र! तुम अजर (बुढ़ापे से रहित), अमर और गुणों के खजाने होओ । श्री रघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें। 'प्रभु कृपा करें' ऐसा कानों से सुनते ही हनुमान जी पूर्ण प्रेम में मग्न हो गए ।

हनुमानजी जीवन्मुक्त हैं, सर्वलोकगामी हैं, वे अपनी इच्छानुसार कभी भी जाकर अपने भक्तों को दर्शन देते रहते हैं ।


हनुमान जी के मुख्य भक्त 

1. माधवाचार्यजी- माधवाचार्यजी का जन्म 1238 ई. में हुआ था। माधवाचार्यजी प्रभु श्रीराम और हनुमानजी के परम भक्त थे। यही कारण था कि एक दिन उनको हनुमानजी के साक्षात दर्शन हुए थे। संत माधवाचार्य ने हनुमानजी को अपने आश्रम में देखने की बात बताई थी।


2. श्री व्यास राय तीर्थ-

श्री व्यास राय तीर्थ का जन्म कर्नाटक में 1447 में कावेरी नदी के तट पर बन्नूर में हुआ था। विजयनगर के महान सम्राट श्री कृष्णदेवराय के गुरु श्री व्यास राय तीर्थ हनुमानजी के परम भक्त थे। उन्होंने देशभर में घुमकर देश की रक्षा के लिए 732 वीर हनुमान मंदिर स्थापित किए। उन्होंने श्री हनुमान पर प्रणव नादिराई, मुक्का प्राण पदिराई और सद्गुण चरित लिखा।


3. तुलसीदासजी- 

तुलसीदासजी का जन्म 1554 ईस्वी में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। तुलसीदासजी जब चित्रकूट में रहते थे, तब जंगल में शौच करने जाते थे। वहीं एक दिन उन्हें एक प्रेत नजर आया। उस प्रेत ने ही बताया था कि हनुमानजी के दर्शन करना है तो वे कुष्ठी रूप में प्रतिदिन हरिकथा सुनने आते हैं। तुलसीदासजी ने वहीं पर हनुमानजी को पहचान लिया और उनके पैर पकड़ लिए। अंत में हारकर कुष्ठी रूप में रामकथा सुन रहे हनुमानजी ने तुलसीदासजी को भगवान के दर्शन करवाने का वचन दे दिया। फिर एक दिन मंदाकिनी के तट पर तुलसीदासजी चंदन घिस रहे थे। भगवान बालक रूप में आकर उनसे चंदन मांग-मांगकर लगा रहे थे, तब हनुमानजी ने तोता बनकर यह दोहा पढ़ा- 'चित्रकूट के घाट पै भई संतनि भीर/ तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।'




4. राघवेन्द्र स्वामी- 

1595 में जन्मे रामभक्त राघवेन्द्र स्वामी माधव समुदाय के एक गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनके जीवन से अनेक चमत्कारिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। उनके बारे में भी कहा जाता है कि उन्होंने भी हनुमानजी के साक्षात दर्शन किए थे। वे भी हनुमानजी के परम भक्त थे। उन्होंने 1671 में मंत्राल्यम में तुंगभद्रा नदी के तट पर जीवा समाधि में प्रवेश किया।



5. भद्राचल रामदास-

 1620 में जन्मे और 1688 में ब्रह्मलीन भद्राचल रामदास का पूर्व नाम गोपन था। गोपन अब्दुल हसन तान शाह के दरबार में तहसीलदार थे। उन्हें एक महिला के स्वप्न के आधार पर भद्रगिरि पर्वत से राम की मूर्तियां मिलीं। तब उन्होंने खम्माम जिले के भद्राचलम में गोदावरी नदी के बाएं किनारे पर उक्त मूर्ति की स्थापना कर एक भव्य मंदिर बनवा दिया।



6. समर्थ रामदास-                                                                      

समर्थ स्वामी रामदास का जन्म रामनवमी 1608 में गोदा तट के निकट ग्राम जाम्ब (जि. जालना) में हुआ। वे हनुमानजी के परम भक्त और छत्रपति शिवाजी के गुरु थे। महाराष्ट्र में उन्होंने रामभक्ति के साथ हनुमान भक्ति का भी प्रचार किया। हनुमान मंदिरों के साथ उन्होंने अखाड़े बनाकर महाराष्ट्र के सैनिकीकरण की नींव रखी, जो राज्य स्थापना में बदली। कहते हैं कि उन्होंने भी अपने जीवनकाल में एक दिन हनुमानजी को देखा था। 1608–1681 को समर्थ रामदासजी ने देह का त्याग कर दिया।


7. छत्रपति शिवाजी-                                                             

1627 में जन्मे और 1680 में ब्रह्मलीन छत्रपति शिवाजी महान मराठा योद्धा थे जिन्होंने बीजापुर के मुगलों, तुर्कों, पुर्तगालियों, अंग्रेजों, डचों और फ्रांसीसियों से लड़ाई की। वे श्री हनुमान और माता तुलजा भवानी के परम भक्त थे। उनके गुरु समर्थ रामदास के बारे में पहले ही ऊपर लिखा जा चुका है। शिवाजी को साहसी, निडर, विनम्र, बुद्धिमान, महत्वाकांक्षी, अनुशासित, एक विशेषज्ञ रणनीतिकार, एक अच्छा संगठक और दूरदर्शी के रूप में जाना जाता है।

8. संत त्यागराज-                                                               

 1767 में जन्मे और 1847 में ब्रह्मलीन संत त्यागराज श्रीराम और हनुमानजी के परम भक्त थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने 6 करोड़ बार श्रीराम के थारका नाम का पाठ किया और थिरुवियारु के थिरुमंजना स्ट्रीट पर अपने घर के सामने सीता देवी, लक्ष्मण और श्री अंजनेय के साथ श्रीराम के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया था।



9. श्री रामकृष्ण परमहंस-                                                        

1836 में जन्मे और 1886 में ब्रह्मलीन स्वामी रामकृष्ण परमहंस भी हनुमानजी के परम भक्त थे। हालांकि उनकी प्रसिद्धि काली के भक्त के रूप में ज्यादा थी, क्योंकि वे मंदिर के पुजारी थे। कहते हैं कि श्री रामकृष्ण परमहंस ने हनुमानजी की भक्ति इस चरमता के साथ की थी कि उक्त भक्ति के चलते उनकी रीढ़ में से लगभग एक पूंछ निकलने लगी थी। दरअसल, रामकृष्ण परमहंस ने धर्म के सभी मार्गों की पद्धति से भक्त करके सत्य को जानने का कार्य किया था।



10. नीम करोली बाबा-                                                              

नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था। उन्होंने अपने शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में किया था। बाबा नीम करोली हनुमानजी के परम भक्त थे और उन्होंने देशभर में हनुमानजी के कई मंदिर बनवाए थे। नीम करोली बाबा के कई चमत्कारिक किस्से हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि हनुमानजी उन्हें साक्षात दर्शन देते थे।




परमवीर चक्र से सम्मनित भारतीय सैनिक जदुनाथ सिहं

नायक जदुनाथ सिंह , जिन्होने सैनिक के रूप मे ब्रिटिश काल मे भारतीय सेना ज्वाइन करके द्वितीय विश्वयुद्ध मे वर्मा मे जापान के खिलाफ लड़ाई मे अपना योगदान दिया था । आजाद भारत मे भारतीय सेना ज्वाइन करके भारत पाकिस्तान युद्ध मे जम्मू के नौशेरा मे पाकिस्तानी सैनिको से युद्ध करते हुए शहीद हो गए। जिसके बाद इन्हे परमवीर चक्र से सम्मनित किया गया ।
लेकिन इनका जीवन किस तरह हनुमान जी से कनेक्टेड है इस शार्ट फिल्म मे देखिए।

https://youtu.be/TFHDFqDb6jA



कहते है कि जब राम जी ने जल समाधि ली तो इसबात से बहुत दुखी होकर हनुमानजी दक्षिण भारत के जंगलो मे चले गये और निर्णय लिया कि अब वो जीवनभर जंगलो मे ही रहेंगे उनकी यात्रा के दौरान वे एक कबीले मे रूके उस कबीले के लोगो ने उनकी बहुत सेवा की जिससे हनुमान जी ने खुश होकर उन्हे आत्मज्ञान दिया। उस कबीले के लोगो ने हनुमानजी से यह विनती की कि वो समय समय पर वहां जाकर उनकी आने वाली पीढ़ी को भी आत्मज्ञान दे तो हनुमानजी ने उस कबीले के लोगो को यह वचन दिया कि वो प्रत्येक 41 वर्ष बाद वहाँ आएंगे और उनकी पीढ़ी को आत्मज्ञान देंगे


उस कबीले के लोगो को मातंग कहते है इनकी संख्या बहुत कम है

ऐसा बताया जाता है कि 41 वर्ष मे एकबार हनुमानजी आज भी इनसे मिलने आते है और 27 मई 2014 को हनुमानजी जी ने अंतिम बार अपना समय व्यतीत किया था जिसके उपरान्त अब 2055 मे हनुमानजी इनसे मिलने आएंगे ।

2014 मे मैने ये न्यूज लाइव देखी थी न्यूज चैनल शायद स्टार न्यूज या इंडिया मे एक था ।

जिसमे जर्नलिस्ट ने वहां के लोगो से वात भी की थी जिनका कहना था कि हनुमान जी के संपर्क सिर्फ बहुत ही पवित्र देह के लोग कर सकते है हनुमान जी का औरा भी बहुत ही पवित्रता की अनूभूति देता है ।



🙏🙏

।। जय राम जी की ।।

मानो तो भगवान न मानो तो पत्थर ।
न भगवान का अपमान सिर्फ हमारा नुकसान। 
आज भी अपने भक्तो के सबसे करीब है हनुमान जी 
न जाने कितनी कहानियाँ सबको पता है न जाने कितनी कुछ लोगो ने सीक्रेट बना रखी है लेकिन सच कभी छुपता नही हमारे हनुमानजी को वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर चुके है तभी सेतु एशिया जैसे इंटरनेशनल संगठन भी उनपर रिसर्च कर रहे है ।

Thursday, 18 April 2019

हकीकत से कोसो दूर औरंगजेब की वीरगाथा

शीर्षक देखकर आश्चर्यचकित होने की जरूरत नही है मै यहाँ कुछ भी गलत या हिंसक बात नही कह रही हूँ बस हमारे इतिहास के आधे सच मे आधे झूठ को मिलाकर किस तरह एक क्रूर शासक को दानवीर, नेक और एक महान इंसान घोषित कर दिया बस उसी तथ्य को कुछ ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ एक छोटे से ब्लाग मे स्पष्ठ कर रही हूँ उम्मीद करती हूँ कि आप पूरा पढ़ेंगे।
जैसा कि आप सब जानते है कि औरंगज़ेब का जन्म गुजरात के दाहोद गांव मे 3 नवंबर 1618 को हुआ था ये मुगल सम्राट शाहजहाँ और मुमताज महल के तीसरे पुत्र और छठी संतान थे जिसे आमतौर पर औरंगजेब या आलमगीर के नाम से जाना जाता था भारत पर राज्य करने वाला छठा मुगल शासक था उसका शासन 1647 - 1707 मे उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगजेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया उसके शासनकाल मे  मुगल साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था जिसकी वजह से वह अपने समय का सबसे धनी व शक्तिशाली व्यक्ति था उसने पूरे साम्राज्य पर  फतवा-ए-आलमगीरी ( शरीयत या इस्लामी कानून ) लागू किए ।
हिंदुओं पर शरीयत लागू करने वाला वो पहला मुसलमान शासक था और कुरान को अपना शासन आधार मानते हुए सिक्को पर कलमा खुदवाना, नौरोज का त्योहार मनाना, भांग की खेती करना,गाना- बजाना, आदि पर रोक लगा दी। इसके साथ ही सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगाया,तीर्थ कर पुन: लगाया, झरोखा दर्शन और तुलादान पर रोक लगाया 1668 मे हिंदु त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया और न कई मंदिरो को तोड़ने का आदेश दिया जिसके तहत मथुरा का केशव राय मंदिर और बनारस विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर के साथ अकेले उदयपुर मे 172 और चित्तौड़ मे 63 मंदिरों को तुड़वाकर मस्जिद बनवाई और मंदिरों की मूर्तियो को मस्जिदों के चौतरो पर दवा दिया ।
औरंगजेब का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य 'दारूल हर्ब' यानी काफिरो के देश भारत को ' दारूल इस्लाम' यानी इस्लाम के देश मे परिवर्तित करना था। औरंगजेब के अंतिम समय मे दक्षिण मे मराठों की ताकत बहुत बढ़ चुकी थी जिनको हराने मे उसकी सेना को सफलता नही मिल रही थी इसलिए 1683 मे औरंगजेब स्वयं सेना लेकर दक्षिण चला गया और करीब 25वर्ष तक उन्हे परास्त करने मे लगा रहा जिसके बाद 3 मार्च 1707 मे उसकी मृत्यु हो गयी। तत्पश्चात मुगल साम्राज्य का अंत भी हो गया।

हकीकत से दूर अफवाह

1-औरंगज़ेब एक पवित्र जीवन व्यतीत करता था और वह एक श्रेष्ठ व्यक्ति था )

वजह क्योकि औरंगजेब टोपियाँ सीकर कुरान की आयते लिखकर अपना खर्च चलाते थे

अपने बड़े भाई दारा शुकोह, शुजा और मुराद की हत्या करवाकर दारा शुकोह के बड़े पुत्र की हत्या की व छोटे पुत्र को कैद करवाकर सत्ता हासिल की और इतना ही नही सत्ता हासिल करने के बाद अपने पिता शाहजहाँ को उनके बुढ़ापे मे बीमार होने के दौरान आगरा के किले की एक अंधेरी कोठरी मे कैद करवा दिया।
 उस कोठरी में एक छोटी से खिड़की से शाहजहाँ ताजमहल को निहार कर अपने दिल की कसक पूरी करता था। शाहजहाँ को पुरे दिन में एक घड़ा पानी भर मिलता था। जेठ की दोपहरी में कंपकपाते बूढ़े हाथों से पानी लेते समय वह मटका टूट गया। शाहजहाँ ने दूसरे मटके की मांग करी तो हवलदार ने यह कहकर मना कर दिया की बादशाह का हुकुम नहीं हैं।


औरंगजेब ने अपने साम्राज्य मे वृद्धि तो अवश्य की लेकिन कट्टरपन तथा अपने भाईयो के प्रति दुर्व्यवहार के कारण उसे जनता के विरोध का सामना भी करना पड़ा।
औरंगजेब ने तख्त के लिए अपने तीनो भाईयों को इतनी क्रूरता से मरवाया था कि उसे सपने मे उनकी स्मृतियाँ तंग करती रहती थी वह इतना शकी हो चुका था कि वह स्वयं अपने पुत्रों को अपने निकट नही आने देता था हमेशा उन्हे डांटता रहता था क्योंकि उसे हमेशा डर रहता था कि वे कही गद्दी के लिए कही उसे न मार दे जैसा उसने अपने सगो के साथ किया था। उसकी इसी नीति की वजह से उसके पुत्र उसके जीवनकाल मे ही बुढ्डे हो गए थे मगर राजनीति का एक पाठ भी न सीख सके यही कारण था कि उसके मरने के बाद मे सभी राजकाज मे असक्षम सिद्ध हुई और मुगलिया सल्तनत का दिवाला निकल गया।
औरंगज़ेब ने गैर मुसलमानों से लेकर मुसलमानों पर अनेक अत्याचार किये। उसने अपनी सुन्नी फिरकापरस्ती के चलते मुहर्रम के जुलुस पर पाबन्दी लगा दी, पारसियों के नववर्ष त्यौहार को बंद कर दिया , दरबार में संगीत पर पाबन्दी लगा दी, हिन्दुओं पर तीर्थ यात्रा पर जजिया कर लगा दिया, यहाँ तक की साधु-फकीरों तक को नहीं छोड़ा।

2- औरंगजेब के शासन में, भारत की अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था का लगभग 25% थी जो दुनिया में सबसे बड़ी थी ।

वजह क्योकि उसके शासनकाल मे लगभग पूरे भारत पर मुगलो का अधिपत्य हो चुका था
औरंगजेब के पूर्वज अकबर, बाबर आदी शासकों ने अधिकतर भारत पर अधिग्रहण कर लिया था , और औरंगजेब ने क्रूरता और हैवानगी की सारी सीमाएं पार कर उसमें वृध्दि की थी लेकिन आर्थिक समृध्दि के दृष्टिकोण से कोई भी ठोस कदम नही उठाया ।
औरंगजेब ने हिन्दुओ से हद से ज्यादा कर बसूला लेकिन उसका प्रयोग सिर्फ युद्ध मे किया जैसा हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान करता है और उसकी अर्थव्यवस्था की हालत सब जानते है किस आधार पर लोग औरंगजेब के शासनकाल को समृद्ध कहते हैं जबकि सब जानते है एक समृद्ध से समृद्ध  देश की अर्थव्यवस्था पर युद्ध का नकारात्मक प्रभाव पड़ता ही है ।
सच तो यह है कि एक आर्थिक सम्पन्नता से परिपूर्ण सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश पर पहले तुर्को की गंदी नजर पड़ी फिर मुगलो की ।
प्राचीन भारत मे मौर्य साम्राज्य ने पूरे भारत को एक क्षत्र मे लाया था कर व्यवस्था मे सुधार कर प्रजा को विकास के अवसर प्रदान किए
गुप्त काल मे महिलाओं को सशक्त बनाया कृषि तथा पशुपालन को राष्ट्रीय सम्पत्ति का एक बड़ा साधन निरूपित किया है । धान, गेहूँ, गन्ना, जूट, तिलहन, कपास, ज्वार-बाजरा, मसाले, धूप, नील आदि प्रभूत मात्रा में उत्पन्न होते थे क्योकि सिचाई की समुचित व्यवस्था थी । उद्योग-धन्धे उन्नति पर थे । कपड़े का निर्माण करना इस काल का सर्वप्रमुख उद्योग था जिससे बहुसंख्यक लोगों को जीविका मिलती थी ।
इसके अतिरिक्त हाथी-दाँत की वस्तुएँ बनाना, मूर्तिकारी, चित्रकारी, शिल्प-कार्य, मिट्टी के बर्तन बनाना, जहाजों का निर्माण आदि इस समय के कुछ अन्य उद्योग-धन्धे थे । गुप्त युग में व्यापार-व्यवसाय के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व प्रगति हुई
हर्षवर्धन ने इसी व्यवस्था को जारी रखा जिससे उस समय की प्रजा व तत्कालीन भारत सम्पन्न व समृद्ध बन चूका था बल्कि गुप्तकाल को ही भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता है ।
हर्षवर्धन के बाद लगभग 1000 वर्षों तक राजपूतों का शासन रहा जो काफी प्रतिष्ठित और वैभवशाली रहा जिसे देखकर पहले तुर्को ऐर फिर मुगलों की गंदी नजर भारत पर पड़ी।
तुर्क और मुगल तो लुटेरे थे कभी किसी ने सुना है कि चोर लुटेरे अपने खजाना लेकर किसी का घर बनाने के लिए ले गए ?
पूरे भारत पर अपना अधिपत्य जमाने के लिए जिन्होंने अपने भाईयो और पिता के खून से होली खेली हो उनके लिए ऐसा कहना बौद्धिक जेहाद
 होगा।

3.औरंगजेब एक महान शासक था

वजह ये है फिरकापरस्ती और चापलूसी की सीमा पार करते कुछ लोगो का कहना है कि औरंगजेब ने मंदिरों मे धन आभूषण दान किए बल्कि बहुत से मंदिरों का निर्माण करवाया ।
और ये बात उतनी ही सच है जितनी, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे श्रेष्ठ अर्थव्यवस्था है आगे कुछ ऐतिहासिक प्रमाणों को देखकर आप औरंगजेब और उनके समर्थकों की सोच का आकलन स्वंय कीजिए।
औरंगज़ेब ने गैर मुसलमानों से लेकर मुसलमानों पर अनेक अत्याचार किये।
गैर मुसलमान इसलिए क्योंकि उसने हिन्दुओ, बौद्ध, जैन, सिख सभी को अपनी क्रूरता का शिकार बनाया ।
उसने अपनी सुन्नी फिरकापरस्ती के चलते मुहर्रम के जुलुस पर भी पाबन्दी लगा दी, पारसियों के नववर्ष त्यौहार को बंद कर दिया , दरबार में संगीत पर पाबन्दी लगा दी, हिन्दुओं पर तीर्थ यात्रा पर जजिया कर लगा दिया, यहाँ तक की साधु-फकीरों तक को नहीं छोड़ा।औरंगज़ेब ने होली पर प्रतिबन्ध लगाकर, मंदिरों में गोहत्या करवाकर, अनेक मंदिरों को तुड़वा कर अपने आपको "आलमगीर" बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

औरंगजेब द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़ने के लिए जारी किये गए फरमानों का कच्चा चिट्ठा

1-  काशी विश्वनाथ मंदिर 

9 अप्रैल 1669 को मिर्जा राजा जय सिंह अम्बेर की मौत के बाद औरंगजेब के हुक्म से उसके पूरे राज्य में जितने भी हिन्दू मंदिर थे, उनको तोड़ने का हुक्म दे दिया गया और किसी भी प्रकार की हिन्दू पूजा पर पाबन्दी लगा दी गयी। 



9 अप्रैल 1669 को मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के आदेशानुसार काशी विश्वनाथ (बनारस) अगस्त 1669 का विध्वंस किया गया था



मूल काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी को नष्ट करने के बाद ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने 1669 ईस्वी में किया।



हिंदू मंदिर के अवशेषों को ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर देखा जा सकता है

मस्जिद के निर्माण से पहले जो मंदिर का ढांचा मौजूद था, वह शायद अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह द्वारा बनाया गया था।


2- सोमनाथ मंदिर 

भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। ऐसी मान्यता है  कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है।
9 अप्रैल, 1969 को मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा पारित आदेश के अनुसार 'सोमनाथ मंदिर' का भी विध्वंस किया गया


जिसके स्थान पर भी एक मस्जिद का निर्माण करवाया गया था

मंदिर की वर्तमान बिल्डिंग का निर्माण भारत के लौहपुरुष सरदार पटेल ने उसके वास्तविक स्थान पर बनी मस्जिद को तोड़ कर करवाया


3- औंधा नागनाथ

औंधा नागनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में से 8 वें स्थान पर है, मंदिर का निर्माण 7 मंजिला था और इसे औरंगज़ेब द्वारा तोड़ दिया गया था।
औंधा नागनाथ के पहले मंदिर का निर्माण युधिष्ठिर ने # महाभारत के समय में करवाया था। औंधा नागनाथ का वर्तमान मंदिर 13 वीं शताब्दी में सेउना / यादव वंश द्वारा बनाया गया है।


4-  केशवदेव राय मंदिर मथुरा 

मथुरा में स्थित केशवदेव राय का महान मंदिर भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि और भारत में निर्मित सबसे शानदार मंदिरों में से एक था।
भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने लगभग 5,000 साल पहले यहां पहला बड़ा मंदिर बनवाया था। दूसरा बड़ा मंदिर 400ईसवी मे गुप्त साम्राज्य के चंद्रगुप्त द्वितीय के समय मे बनवाया गया था 
विजयपाल देव के शासन के दौरान विक्रम संवत १२० 11 (११५० ईस्वी) में जाजा जी द्वारा निर्मित तीसरा मंदिर और चौथा मंदिर वीर सिंह जी द्वारा बनवाया गया था जिसके ऊपर ही औरंगजेब ने ईदगाह मस्जिद बनवाई थी ।

 11 जनवरी -16 फरवरी 1670 औरंगजेब द्वारा मथुरा के भगवान केशवदेव राय मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया गया 

जिसके बाद केशव देव राय के मंदिर को तोड़ दिया गया और उसके स्थान पर मस्जिद बना दी गयी। मंदिर की मूर्तियों को तोड़ कर आगरा लेकर जाया गया और उन्हें मस्जिद की सीढियों में गाड़ दिया गया और मथुरा का नाम बदल कर इस्लामाबाद कर दिया गया। 


औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव राय मंदिर से नक्काशीदार जालियों को जोकि उसके बड़े भाई दारा शिकोह द्वारा भेंट की गयी थी को तोड़ने का हुक्म यह कहते हुए दिया कि किसी भी मुसलमान के लिए एक मंदिर की तरफ देखने तक की मनाही है। और दारा शिको ने जो किया वह एक मुसलमान के लिए नाजायज है।


केशवदेव राय मंदिर को रमजान के महिने मे गिरवाया गया और मूर्तियो को बेगम मस्जिद (जामा मस्जिद) के नीचे दफन किया गया

मंदिर गिराने के बाद उसी स्थान पर ईदगाह मस्जिद का निर्माण करवाया 


500 ईस्वी पूर्व औरंगजेब द्वारा ध्वस्त किया गया ऐतिहासिक कृष्णजन्मभूमि के केशवदेव राय मंदिर की रुद्रा मूर्ति, जो वर्तमान में मथुरा संग्रहालय में है।


इसके बाद औरंगजेब ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर का भी विध्वंश कर दिया।

5- कालकाजी मंदिर 


 12 सितम्बर 1667 को औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली के प्रसिद्द कालकाजी मंदिर को तोड़ दिया गया।

5. 25 मई 1679 को जोधपुर से लूटकर लाई गयी मूर्तियों के बारे में औरंगजेब ने हुकुम दिया कि सोने-चाँदी-हीरे से सज्जित मूर्तियों को जिलालखाना में सुसज्जित कर दिया जाये और बाकि मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढियों में गाड़ दिया जाये।








6- श्रीनाथ जी मंदिर की मूर्ति का स्थानांतरण 

 5 दिसम्बर 1671 औरंगजेब के शरीया को लागु करने के फरमान से गोवर्धन स्थित श्री नाथ जी की मूर्ति को पंडित लोग मेवाड़ राजस्थान के सिहाद गाँव ले गए। जहाँ के राणा जी ने उन्हें आश्वासन दिया की औरंगजेब की इस मूर्ति तक पहुँचने से पहले एक लाख वीर राजपूत योद्धाओं को मरना पड़ेगा।


6.कोोउदयपुर मे बने जगन्नाथ मंदिर को राजपूतो द्वारा बचाया गया

23 दिसम्बर 1679 को औरंगजेब के हुक्म से उदयपुर के महाराणा झील के किनारे बनाये गए मंदिरों को तोड़ा गया। महाराणा के महल के सामने बने जगन्नाथ के मंदिर को मुट्ठी भर वीर राजपूत सिपाहियों ने अपनी बहादुरी से बचा लिया।


7. 22 फरवरी 1980 को औरंगजेब ने चित्तोड़ पर आक्रमण कर महाराणा कुम्भा द्वाराबनाएँ गए 63 मंदिरों को तोड़ डाला।

8. जगन्नाथ मंदिर 

1 जून 1681 को औरंगजेब ने प्रसिद्द पूरी के जगन्नाथ मंदिर को तोड़ने का हुकुम दिया।




9. 13 अक्टूबर 1681 को बुरहानपुर में स्थित मंदिर को मस्जिद बनाने का हुकुम औरंगजेब द्वारा दिया गया।

10. नन्द माधव मंदिर

13 सितम्बर 1682 को मथुरा के नन्द माधव मंदिर को तोड़ने का हुकुम औरंगजेब द्वारा दिया गया। इस प्रकार अनेक फरमान औरंगजेब द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़ने के लिए जारी किये गए।




और यहाँ भी मंदिर तोड़कर उसी स्थान पर मस्जिद बनवाई जिसका नाम था आलमगिर मस्जिद


23 दिसम्बर 1679 को सिर्फ  उदयपुर में 172 मंदिर ध्वस्त करने का औरंगजेब द्वारा पारित आदेश




हिन्दुओं पर औरंगजेब द्वारा अत्याचार करना


2 अप्रैल 1679 को औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया गया


जिसका हिन्दुओं ने दिल्ली में बड़े पैमाने पर शांतिपूर्वक विरोध किया परन्तु उसे बेरहमी से कुचल दिया गया।

 इसके साथ-साथ मुसलमानों को करों में छूट दे दी गयी जिससे हिन्दू अपनी निर्धनता और कर न चूका पाने की दशा में इस्लाम ग्रहण कर ले।

 16 अप्रैल 1667 को औरंगजेब ने दिवाली के अवसर पर आतिशबाजी चलाने से और त्यौहार बनाने से मना कर दिया गया।


धर्मांतरण

 इसके बाद सभी सरकारी नौकरियों से हिन्दू कर्मचारियों को निकाल कर उनके स्थान पर मुस्लिम कर्मचारियों की भरती का फरमान भी जारी कर दिया गया। हिन्दुओं को शीतला माता, पीर प्रभु आदि के मेलों में इकठ्ठा न होने का हुकुम दिया गया। हिन्दुओं को पालकी, हाथी, घोड़े की सवारी की मनाई कर दी गयी। कोई हिन्दू अगर इस्लाम ग्रहण करता तो उसे कानूनगो बनाया जाता।
7 अप्रैल 1685 हिंदुओं का धर्मान्तरण करने के लिए औरंगजेब द्वारा जारी किया गया फतवा मुसलमान बनने पर प्रत्येक हिन्दू पुरुष को 4 रु जबकि हिंदू महिला को 2 रु दिये जाने का आदेश दिया था । 


ऐसे न किए जाने पर न जाने कितने अत्याचार औरंगजेब ने हिन्दू जनता पर किये और आज उसी द्वारा जबरन मुस्लिम बनाये गए लोगों के वंशज उसका गुण गान करते नहीं थकते हैं।


औरंगजेब के अनुसार एक मुसलमान का एक मंदिर या मूर्ति को देखने भी एक पाप है। 13 अक्टूबर 1666


16 फरवरी 1668 को औरंगजेब ने संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया,


मगर इन सबका परिणाम वही निकला जो हर अत्याचारी का निकलता हैं। बर्बादी। औरंगज़ेब को उसके कुकर्मों, उसके बाप के शाप, उसके भाइयों की हाय, गैर मुसलमानों के प्रति वैमनस्य की भावना और मज़हबी उन्माद ने बर्बाद कर दिया ।

औरंगजेब द्वारा सम्भाजी राजे की निर्मम हत्या

महान शिवाजी के देहांत के बाद 1680 में मराठो को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। औरंगजेब को लगा था कि शिवाजी के बाद उनका पुत्र संभाजी ज्यादा समय तक टिक नहीं सकेगा, इसलिए शिवाजी की मृत्यु के बाद 1680 में औरगंजेब दक्षिण की पठार की तरफ आया, उसके साथ 400,000 जानवर और 50 लाख की सेना थी। औरंगजेब ने बीजापुर की सल्तनत के आदिलशाह और गोलकोंडा की सल्तनत के कुतुबशाही को परस्त किया और वहां अपने सेनापति क्रमश: मुबारक खान और शार्जखन को नियुक्त किया। इसके बाद औरंगजेब ने मराठा राज्य का रुख किया और वहां संभाजी की सेना का सामना किया। 1682 में मुगलों ने मराठो के रामसेई दुर्ग को घेरने की कोशिश की लेकिन 5 महीने के प्रयासों के बाद भी वो सफल ना हो सके। फिर 1687 में वाई के युद्ध में मराठा सैनिक मुगलों के सामने कमजोर पड़ने लगे। वीर मराठाओं के सेनापति हम्बिराव मोहिते शहिद हो गए।
1689 तक स्थितियां बदल चुकी थी। मराठा राज संगमेश्वर में क्षत्रुओ के आगमन से अनभिज्ञ था ऐसे में मुक़र्राब खान के अचानक आक्रमण से मुग़ल सेना महल तक पहुँच गयी और संभाजी के साथ कवि कलश को बंदी बना लिया उन दोनों को कारागार में डाला गया और उन्हें वेद-विरुद्ध इस्लमा अपनाने को विवश किया गया।

औरंगजेब के शासन काल के आधिकारिक इतिहासकार मसिर प्रथम अम्बारी और कुछ मराठा सूत्रों के अनुसार कैदीयों को चैनों से जकडकर हाथी के हौदे से बांधकर औरंगजेब के कैंप तक ले जाया जाता था जो कि अकलूज में था। मुगल शासक तक ये खबर पहले ही पहुँच चुकी थी और उन्होंने इसके लिए एक बड़े महोत्सव के आयोजन की घोषणा की मुगलों ने पूरे मार्ग में विजयी सेनापतियों के लिए उत्सव का आयोजन और स्वागत किया। मुगलो की जीत के जश्न के लिए शेख निज़ाम का चित्र बनवाया गया. मुगल पुरुष सड़कों पर और झरोखों से झांकती महिलाए बुरखे के भीतर से हारे हुए मराठा को देखने को उत्सुक थी, जबकि राह में पड़ने वाले हर मुगल उनकी हँसी उड़ा रहे थे और कोई तो अपमान में मुंह पर थूक भी रहा था। मुगलों में मिले हुए राजपूत सैनिकों को संभाजी के लिए बहुत सहानुभूति थी संभाजी ने उन्होंने ललकारते हुए कहा था, कि या तो वे उन्हें खुला छोड़कर सन्मुख युद्ध कर ले या फिर उन्हें मारकर इस अपमान से मुक्ति दे, लेकिन मुगलों के डर से वो सैनिक खामोश थे इस तरह 5 दिन तक चलने के बाद वो लोग औरंगजेब के दरबार में पहुंचे 

औरंगजेब संभाजी को देखकर अपने सिहासन से नीचे उतरकर आया और उसने कहा कि मराठाओ का आतंक कुछ ज्यादा ही हो गया था, वीर शिवाजी के पुत्र का मेरे सामने खड़े होना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, ऐसा कहकर औरंगजेब ने अपने अल्लाह को याद करने के लिए घुटने टेके।
कवि कलश उस समय चैनो से बंधे हुए एक तरफ खड़े थे, लेकिन उन्होंने संभाजी की तरफ देखा और कहा कि हे मराठा राजे!  देखिये आलमगीर खुद अपने सिंहासन से उठकर आपके आगे श्रद्धा से नतमस्तक होने आये हैं. कलश ने उन विपरीत परिस्थियों में भी वीरता दिखाते हुए कहा, कि औरंगजेब अपने दुश्मन संभाजी राजे के सामने घुटने टेक रहे हैं।

इससे औरंगजेब आग बबूला हो गया और उसने उन दोनों को तहखाने में डालने का आदेश दे दिया।औरंगजेब ने शेख निजाम को फ़तेह जंग खान-ए-आजम की उपाधि देने की घोषणा की, साथ ही 50,000 रूपये,एक घोडा,एक हाथी,और 6000 सैनिकों की टुकड़ी देने की घोषणा की। इसके अलावा उसके पुत्र इकलास और भतीजे को भी उपहार और सेना में उच्च पद देने की घोषणा की।

मुगल नायकों ने संभाजी को सुझाव दिया, कि वे यदि अपना पूरा राज्य और सभी किले औरंगजेब को सौप दे, तो औरंगजेब संभाजी की जान बख्श देगा संभाजी ने इस बात से मना कर दिया इसके बाद मुगल अपने उस उद्देश्य पर लौट आये, जिसके लिए उन्होंने भारत पर आक्रमण किया था जिसमे गैर-मुस्लिम को मुस्लिम बनाना और जनता को लूटना और महिलाओं का शील भंग मुख्य कार्य था। संभाजी ये सब देखकर बहुत आहत हो रहे थे ऐसे में संभाजी की हालत देख उन्हें फिर से औरंगजेब का ये सन्देश आया, कि वो यदि इस्लाम अपना लेते हैं, तो उन्हें ऐशो-आराम की जिंदगी दी जायेगी लेकीन संभाजी ने साफ़ कह दिया, कि आलमगीर देश का सबसे बड़ा शत्रु हैं और वो ऐसी कोई संधि नहीं कर सकते, जो उनके राष्ट्र के सम्मान के विपरीत हो।

कठोर यातनाओ के बाद भी ना झुकने पर संभाजी और कलश को कैद से निकालकर घंटी वाली टोपी पहना दी। उनके हाथ में झुनझुना बाँध कर उन्हें ऊँटो से बांध दिया गया और तुलापुर के बाज़ार में घसीटा जाने लगा, मुगल लगातार उनका अपमान कर रहे थे उन्हें जबरदस्ती घसीटा जा रहा था, जिसके कारण झुनझुने की आवाज़ को साफ़ सुना जा सकता था। मुगल अपनी असलियत का परिचय देते हुए, ये सब देखकर क्रूरता से हंस रहे थे और उपहास कर रहे थे। मंत्री कलश भी ऐसे में हार मानाने वालो में से नहीं थे, वो लगातार भगवान का जाप कर रहे थे, जब उनके बाल खीच कर उन्हें इस्लाम कबूलने के लिए कहा जा रहा था, तब भी उन्होंने साफ़ तौर पर इससे ना कह दिया और कहा, कि हिंदुत्व सभी धर्मो से ऊपर सच्चा और शान्ति प्रिय धर्म हैं। मराठाओ के लिए अपने राजा के अपमान को देखना बहुत बड़ी बाध्यता थी।

औरंगजेब ने कई बार कहा कि वो संभाजी को क्षमा कर देगा, लेकिन वो यदि अब भी इस्लाम कबूल ले। संभाजी ने मुगलों का उपहास उड़ाते हुए कहा, कि वह मुस्लिमों के समान मुर्ख नहीं है, जो ऐसे मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति के सामने घुटने टेके। फिर संभाजी ने अपने हिन्दू आराध्य महादेव को याद किया और कहा कि धर्म-अधर्म के भेद को देखने और समझने के बाद वो अपना जीवन हज़ारो बार हिंदुत्व और राष्ट्र को समर्पित करने को तैयार हैं। और इस तरह संभाजी म्लेच्छ औरंगजेब के आगे नहीं झुके, औरंगजेब ने इससे क्रोधित होकर आदेश दिया, की संभाजी के घावों पर नमक छिड़का जाए और उन्हें घसीटकर औरंगजेब के सिंहासन के नीचे लाया जाए फिर भी संभाजी लगातार भगवान शिव का नाम जपे चले जा रहे थे फिर उनकी जीभ काट दी गई और आलमगीर के पैरो में रखी गयी, जिसने इसे कुत्तो को खिलाने का आदेश दे दिया लेकिन औरंगजेब भूल गया था, कि वो जीभ काटकर भी संभाजी के दिल और दिमाग से कभी देशभक्ति और भगवद भक्ति को अलग नहीं कर सकता।

संभाजी अब भी मुस्कुराते हुए भगवान् शिव की आरधना कर रहे थे और मुगलों की तरफ गर्व भरी दृष्टि से देख रहे थे। इस पर उनकी आँखे निकाल दी गयी और फिर उनके दोनों हाथ भी एक-एक कर काट दिए गए। और ये सब धीरे-धीरे हर दिन संभाजी को प्रताड़ित करने के लिए किया जाने लगा। संभाजी के दिमाग में तब भी अपने पिताजी वीर शिवाजी की यादें ही थी, जो उन्हें प्रतिक्षण इन विपरीत परिस्थिति का सामना करने के लिए प्रेरित कर रही थी। हाथ काटने के भी लगभग 2 सप्ताह के बाद 11 मार्च 1689 को उनका सर भी धड से अलग किया गया। उनका कटा हुआ सर महाराष्ट्र के कस्बों में जनता के सामने चौराहों पर रखा गया, जिससे की मराठाओं में मुगलों का डर व्याप्त हो सके। जबकि उनके शरीर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर तुलापुर के कुत्तों को खिलाया गया। लेकिन ये सब वीर मराठा पर अपना प्रभाव नहीं जमा सके। अंतिम क्षणों तक भगवान शिव का जाप करने वाले बहादुर राजा के इस बलिदान से हिन्दू मराठाओ में अपने राजा के प्रति सम्मान  मुगलों के प्रति आक्रोश और बढ़ गया।

गुरू तेगबहादुर की हत्या-

गुरु तेग बहादुर की मुगल बादशाह औरंगजेब से अदावत की शुरुआत कश्मीरी पंडितों को लेकर हुई। कश्मीरी पंडित मुगल शासन द्वारा जबरदस्ती मुसलमान बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। उन्होंने गुरु तेग बहादुर से अपनी रक्षा की गुहार की। गुरु तेग बहादुर ने उन्हें अपनी निगहबानी में ले लिया। मुगल बादशाह इससे बहुत नाराज हुआ। जुलाई 1675 में गुरु तेग बहादुर अपने तीन अन्य शिष्यों के साथ आनंदपुर से दिल्ली के लिए रवाना हुए थे। इतिहासकारों के अनुसार गुरु तेग बहादुर को मुगल फौज ने जुलाई 1875 में गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें करीब तीन-चार महीने तक दूसरी जगहों पर कैद रखने के बाद पिंजड़े में बंद करके दिल्ली लाया गया जो मुगल सल्तनत की राजधानी थी।

माना जाता है कि चार नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर को दिल्ली लाया गया था। मुगल बादशाह ने गुरु तेग बहादुर से मौत या इस्लाम स्वीकार करने में से एक चुनने के लिए कहा। उन्हें डराने के लिए उनके साथ गिरफ्तार किए गए उनके तीन ब्राह्मणों अनुयायियों का सिर कटवा दिया गया लेकिन गुरु तेग बहादुर नहीं डरे। उनके साथ गिरफ्तार हुए भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गये,


भाई दयाल दास को तेल के खौलते कड़ाहे में फेंकवा दिया गया


और भाई सति दास को जिंदा जलवा दिया गया।



गुरु तेग बहादुर ने जब इस्लाम नहीं स्वीकार किया तो औरंगजेब ने उनकी भी हत्या करवा दी।



4.औरंगजेब एक बहादुर शासक था

बहादुरी और क्रूरता के बीच बारीक सी रेखा होती है जिसे पार कर औरंगजेब एक क्रूरता की सारी सीमाएं पार कर चूका था औरंगज़ेब ने मुग़ल साम्राज्य का विस्तार दूर तक किया, लेकिन उसे ख़त्म करने के लिए बीज भी उसीने डाले थे। गैर-मुसलमानों के लिए उनके विस्तार और असहिष्णुता ने कई समुदायों को नाराज कर दिया, जिन्होंने उनके शासन के खिलाफ विद्रोह करना शुरू कर दिया। मूल रूप से, गैर-हिंदुओं पर उनके द्वारा लगाए गए जजिया कर ने बड़े पैमाने पर विद्रोह किया। सिखों पर उत्पीड़न के कारण उन्हें तलवार उठानी पड़ी, और वे मुगल पक्ष में सबसे बड़ा कांटा बन जाएंगे।
1669 में जाट विद्रोह करने वाले पहले व्यक्ति थे, और औरंगजेब ने विद्रोह को क्रूरता से अंजाम देने में सफलता पाई और जल्द ही उन्होंने भरतपुर में अपने राज्य की स्थापना की। पूर्व में, लछित बोरोफुकन के नेतृत्व में अहोमों ने लड़ाई लड़ी, पूरे क्षेत्र को पुनः प्राप्त किया, और साराघाट के युद्ध में मुगलों को अपमानजनक हार मिली। सिख गुरु, तेग बहादुर के क्रूर वध ने उन्हें नाराज कर दिया, और गुरु गोविंद सिंह के अधीन, उन्होंने हथियार उठा लिया। गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा की स्थापना की, और जल्द ही सिख मुगल शासन के कट्टर विरोधियों में से एक बन गए। लेकिन किसी भी चीज़ से अधिक डेक्कन अभियान था, जिसने औरंगज़ेब को सचमुच समाप्त कर दिया, और मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हुआ। सबसे पहले, शिवाजी ने अपनी छापामार रणनीति के साथ, मुगल सेना को खदेड़ दिया, औरंगजेब को युद्ध का कोई अंत नहीं होने के लिए परेशान किया, कई किलों को पकड़ने और एक मराठा परिसंघ का निर्माण करने में कामयाब रहा। शिवाजी के पुत्र संभाजी के क्रूरतापूर्ण हत्या के बावजूद, मराठा प्रतिरोध कभी नहीं समाप्त हो गए। राजाराम, बाद में उनकी विधवा ताराबाई और फिर मराठा सरदारों के साथ लगातार मुगलों पर हमला किया। और औरंगजेब को लगातार मराठा विद्रोहों को झेलना पड़ा।  2 दशकों के करीब, औरंगजेब ने दक्कन में समय बिताया, मराठों को अपने अधीन करने की कोशिश की। जिसने उसे थका दिया, उसे अपनी सेना के लगभग 1/5 वें भाग को खो दिया।
देखा जाए तो औरंगज़ेब के जीवन में उसकी सनक ने मुग़ल सल्तनत को बर्बाद कर दिया। करीब 20 वर्षों तक दक्कन में चले युद्ध ने सरकारी खजाना समाप्त कर दिया, उसके सभी सरदार या तो बुड्ढे हो गए या मर गए। मगर विजय श्री नहीं दिखी। अपने उत्कर्ष से मुग़ल सल्तनत जमीन पर आ गिरी और ताश के पत्तों के समान ढह गई। यह औरंगज़ेब की गलती के कारण हुआ।
औरंगज़ेब ने अपने पूर्वजों की राजपूतों से दोस्ती की नीति को तोड़ दिया। वह सदा राजपूत सरदारों को काफिर और इस्लाम का दुश्मन समझता था। इस नीति के चलते राजपूत सरदार उसकी ओर से किसी भी युद्ध में दिलोजान से नहीं लड़ते थे। मुस्लमान सरदारों को इस्लाम की दुहाई देकर औरंगज़ेब भेजता था मगर शराब और शबाब में गले तक डूबें हुए सरदार अपने तम्बुओं में पड़े राजकोष के पैसे बर्बाद करते रहे। अंत में परिणाम वही दाक के तीन पात। मुग़ल साम्राज्य युद्ध पर युद्ध हारता चला गया। अलग अलग प्रान्त में अनेक सरदार उठ खड़े हुए। महाराष्ट्र में वीर शिवाजी, बुंदेलखंड में वीर छत्रसाल, पंजाब में सिख गुरु, राजपुताना में दुर्गादास राठोड़ आदि उठ खड़े हुए। इस प्रतिरोध ने मुग़ल साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दी। अपने साम्राज्य के हर कौने से उठे प्रतिरोध को औरंगज़ेब न संभाल सका
इसलिए जब औरंगज़ेब का निधन हुआ, मुग़ल साम्राज्य अपने चरम पर था, लेकिन इसे सबसे तीव्र विद्रोह भी झेलना पड़ रहा था। मराठा, जाट, सिख, अहोम सभी ने अपने-अपने मजबूत राज्य बना लिए और मुगलों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। मुग़ल साम्राज्य वास्तव में विद्रोहों का सामना नहीं कर सका, और पतन शुरू हुआ।

एक मुहावरा है कि एक झूठ को छुपाने के लिए हज़ार झूठ बोलने पड़ते हैं। औरंगज़ेब को न्यायप्रिय घोषित करने वालों ने तो उसके अत्याचार और मतान्धता को छुपाने के लिए इतने कमजोर साक्ष्य प्रस्तुत किये जो एक ही परीक्षा में ताश के पत्तों के समान उड़ गए। औरंगजेब के समर्थको के
समक्ष यह प्रश्न है कि उनके लिए आदर्श कौन है?
औरंगज़ेब जैसा अत्याचारी या उसके अत्याचार का प्रतिकार करने वाले वीर शिवाजी महाराज।

औरंगजेब की नीतियों को जानने के बाद अगर उसकी तुलना आईएस आईएस चीफ बगदादी से की जाए तो ये गलत नही होगा फर्क इतना है बगदादी की क्रूरता हम वीडियो के जरिये देखते है और औरंगजेब को किताबो मे पढ़ते है जो औरंगजेब से प्रेरित होकर उसकी पूजाकर उसका गुणगान करते है यकीकन बगदादी भी उनके लिए मसीहा ही होगा।
और ऐसे लोगो से हमे अलर्ट रहना चाहिए भविष्य मे ये आईएसआईएस सदस्य बनकर हमारे लिए खतरा बन सकते है बल्कि सरकार को चाहिए ऐसे लोगो पर विशेष रूप से नजर रखे।



















एक राजा बहुत दिनों बाद अपने बगीचे में सैर करने गया, पर वहां पहुँच उसने देखा कि सारे पेड़-पौधे मुरझाए हुए हैं। राजा बहुत चिंतित हुआ, उसने इसक...