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Saturday, 20 April 2019

मान (अभिमान) का हनन करने वाले भक्तों के प्यारे हनुमान जी






 जब श्रीरामजी अपनी मानव लीला को संवरण कर साकेत जाने लगे तो उस समय उन्होंने हनुमान को अपने पास बुलाकर कहा -

‘हे हनुमान ! अब मैं अपने लोक को प्रस्थान कर रहा हूँ । देवी सीता तुम्हें अमरत्व का वर पहले ही दे चुकी हैं, इसलिए अब तुम भूलोक में रहकर शान्ति, प्रेम, ज्ञान तथा भक्ति का प्रचार करो । मेरे वियोग का दु:ख तुम्हें नहीं होना चाहिए, क्योंकि मैं अदृश्य रूप में सदैव तुम्हारे पास ही बना रहूंगा तथा तुम्हारा हृदय ही मेरा निवास-स्थान होगा । द्वापर युग में जब मैं कृष्ण के रूप में पुन: अवतार धारण करुंगा तब मेरी तुमसे फिर भेंट होगी । जहां भी मेरी कथा तथा कीर्तन हो तुम वहां निरन्तर उपस्थित रहना तथा मेरे भक्तों की सहायता करते रहना । तुम्हें संसार में कभी कोई कष्ट नहीं होगा, इसके अतिरिक्त अपने भक्तों का कष्ट दूर करने की सामर्थ्य भी तुम्हें प्राप्त होगी । जिस स्थान पर मेरा मन्दिर बनेगा और जहां मेरी पूजा होगी, वहां तुम्हारी मूर्ति भी रहेगी और लोग तुम्हारी पूजा भी करेंगे । वास्तव में तुम शंकरावतार होने के कारण हम-तुम अभिन्न हैं । सेवक-स्वामी के अनन्य प्रेम-भाव को विश्व में उजागर करने के लिए ही हमने अब तक की सभी लीलाएं की हैं । जो लोग भक्ति और श्रद्धापूर्वक मेरा तथा तुम्हारा स्मरण करेंगे, वे समस्त संकटों से छूटकर मनोवांछित फल प्राप्त करते रहेंगे । लोक में जब तक मेरी कथा रहेगी, तब तक तुम्हारी सुकीर्ति भी जीवित बनी रहेगी । तुमने मेरे पर जो-जो उपकार किए हैं, उनका बदला मैं कभी नहीं चुका सकता ।’

इतना कह कर श्रीरामजी ने अपनी मानवी लीला संवरण कर ली । हनुमानजी नेत्रों में अश्रु भरकर श्रीसीताराम को बार-बार प्रणाम कर तपस्या के लिए हिमालय चले गए ।

कलिकाल में हनुमानजी का इन स्थानों पर है निवास

▪️रामकथा में हनुमानजी का निवास—

श्रीरामजी के साकेत प्रस्थान के बाद हनुमानजी अपने प्रभु के आदेशानुसार उन्हीं के गुणों का कीर्तन एवं श्रवण करते हुए भूतल पर भ्रमण करने लगे । हनुमानजी का विग्रह राम-नाममय है। उनके रोम-रोम में राम-नाम अंकित है। उनके वस्त्र, आभूषण, आयुध–सब राम-नाम से बने हैं। उनके भीतर-बाहर सर्वत्र आराध्य-ही-आराध्य हैं। उनका रोम-रोम श्रीराम के अनुराग से रंजित है। जहां भी रामकथा या रामनाम का कीर्तन होता है, वहां वे गुप्त रूप से सबसे पहले पहुंच जाते हैं । दोनों हाथ जोड़कर सिर से लगाये सबसे अंत तक वहां वे खड़े ही रहते हैं । प्रेम के कारण उनके नेत्रों से बराबर आंसू झरते रहते हैं ।

सुनहिं पवनसुत सर्बदा आँखिन अंबु बहाइ ।

छकत रामपद-प्रेम महँ सकल सुरत बिसराइ ।।

अरु जहँ जहँ रघुपति-कथा सादर बाँचत कोइ ।

तहँ तहँ धरि सिर अंजली सुनत पुलक तन सोइ ।।

(महाराजा रघुराजसिंहजी द्वारा रचित रामरसिकावली, त्रेतायुगखण्ड, प्रथम अध्याय)

▪️किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी का निवास—

किम्पुरुषवर्ष हेमकूट पर्वत के दक्षिण में स्थित है । हेमकूट पर्वत हिमालय में तपस्या करने का वह स्थान है, जहां शीघ्र ही सिद्धि मिल जाती है । यह किन्नरों का निवासस्थान है ।

(देवताओं की एक जाति का नाम गन्धर्व है । इनका एक अलग लोक होता है जहां ये निवास करते हैं । ये देवताओं के गायक, नृत्यक और स्तुति पढ़ने वाले होते हैं । गन्धर्वों में तुम्बरु और हाहा-हूहू बहुत प्रसिद्ध हैं । देवर्षि नारद ने गन्धर्वों से ही संगीत सीखा था और इसी कारण वे लोक में हरिगुणगान करते हुए भगवान विष्णु को अति प्रिय हुए ।) किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी तुम्बुरु आदि गन्धर्वों द्वारा मधुर-मधुर बाजे-बजाते हुए गायी जाने वाली श्रीराम-कथा का श्रवण करते हैं, मन्त्र जपते हुए श्रीराम की स्तुति करते रहते हैं और उनके नेत्रों से अश्रु झरते रहते हैं ।

गर्गसंहिता के विश्वजित्-खण्ड में लिखा है कि किम्पुरुषवर्ष में श्रीरामचन्द्रजी सीताजी के साथ विराजमान हैं । हनुमानजी संगीत के महारथी आर्ष्टिषेण के साथ वहां उनके दर्शन के लिए आया करते हैं ।

अध्यात्मरामायण में भी हनुमानजी का तपस्या के लिए हिमालय (किम्पुरुषवर्ष) में जाकर निवास करने का उल्लेख मिलता है ।

नारदजी ने भी किम्पुरुषवर्ष में हनुमानजी को वन की सामग्री से श्रीराम की मूर्ति का पूजन करते हुए और गंधर्वों के मुख से रामायण का गान सुनते हुए देखा था । हनुमानजी ने नारदजी से कहा—‘मैं श्रीराम की मूर्ति का पूजन दर्शन करते हुए यहां निवास करता हू्ँ ।’

शास्त्र के प्रमाण

श्रीशुक उवाच । किम्पुरुषे वर्षे भगवन्तमादिपुरुषं लक्ष्मणाग्रजं सीताभिरामं रामं तच्चरण सन्निकर्षाभिरतः परमभागवतो हनुमान्सह किम्पुरुषैरविरतभक्तिरुपास्ते॥ - श्रीमद्भागवतम


 श्रील शुकदेव गोस्वामी जी ने कहाँ, “हे राजन्, किंपुरुष लोक में भक्तों में श्रेष्ठ हनुमान उस लोक के अन्य निवासियों के साथ प्रभु राम जो लक्ष्मण के बड़े भ्राता और सीता के पति है, उनकी सेवा में हमेशा मग्न रहते है।”


आर्ष्टिषेणेन सह गन्धर्वैरनुगीयमानां परमकल्याणीं भर्तृभगवत्कथां समुपशृणोति स्वयं चेदं गायति ॥ - श्रीमद्भागवतम

वहाँ गंधर्वों के समूह हमेशा रामचंद्र के गुणों का गान करते रहते है। वह गान अत्यंत शुभ और मनमोहक होता है। हनुमान जी और आर्ष्ट्रीषेण जो किंपुरुष लोक के प्रमुख है वे उन स्तुतिगानों को हमेशा सुनते रहते है।


किम्पौरुषाणाम् वायुपुत्रोऽहं ध्रुवे ध्रुवः मुनिः ॥ - ब्रह्म वैवर्त पुराण

किंपुरुष लोक के निवासियों में तुम मुझे वायुपुत्र हनुमान जान लो तथा ध्रुवलोक में मुझे ध्रुव ऋषि के रूप में देखो।

▪️अयोध्या में निवास—

अयोध्या श्रीराम की पुरी है । हनुमानजी इस पुरी में नित्य निवास करके अपने आराध्य श्रीराम की सेवा करते हैं । अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी हनुमानजी की सेवा की प्रतीक है ।

बृहद्ब्रह्मसंहिता के अनुसार श्रीराम के अनन्य सेवक महावीर हनुमान साकेत धाम (अयोध्या) की ईशान दिशा में रक्षक के रूप में सदा विराजमान रहते हैं ।

▪️महाभारत के युद्ध में भी हनुमानजी उपस्थित रहे । वे अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठे रहते थे । उनके बैठे रहने से अर्जुन के रथ को कोई पीछे नहीं हटा सकता था । कई बार उन्होंने अर्जुन की रक्षा भी की । एक बार हनुमानजी ने भीम, अर्जुन और गरुड़जी को अभिमान करने से बचाया था ।

कलिकाल में हनुमानजी का निवास-स्थान

श्रीराम के अनन्य सेवक हनुमानजी अमर, चिरंजीवी और सनातन हैं । उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान माता सीता और प्रभु श्रीराम दोनों ने ही दिया है । माता सीता हनुमानजी को आशीष देते हुए कहती हैं—

अजर अमर गुननिधि सुत होहू ।

करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥

करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना ।

निर्भर प्रेम मगन हनुमाना ।। (श्रीरामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड)

अर्थात—

हे पुत्र! तुम अजर (बुढ़ापे से रहित), अमर और गुणों के खजाने होओ । श्री रघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें। 'प्रभु कृपा करें' ऐसा कानों से सुनते ही हनुमान जी पूर्ण प्रेम में मग्न हो गए ।

हनुमानजी जीवन्मुक्त हैं, सर्वलोकगामी हैं, वे अपनी इच्छानुसार कभी भी जाकर अपने भक्तों को दर्शन देते रहते हैं ।


हनुमान जी के मुख्य भक्त 

1. माधवाचार्यजी- माधवाचार्यजी का जन्म 1238 ई. में हुआ था। माधवाचार्यजी प्रभु श्रीराम और हनुमानजी के परम भक्त थे। यही कारण था कि एक दिन उनको हनुमानजी के साक्षात दर्शन हुए थे। संत माधवाचार्य ने हनुमानजी को अपने आश्रम में देखने की बात बताई थी।


2. श्री व्यास राय तीर्थ-

श्री व्यास राय तीर्थ का जन्म कर्नाटक में 1447 में कावेरी नदी के तट पर बन्नूर में हुआ था। विजयनगर के महान सम्राट श्री कृष्णदेवराय के गुरु श्री व्यास राय तीर्थ हनुमानजी के परम भक्त थे। उन्होंने देशभर में घुमकर देश की रक्षा के लिए 732 वीर हनुमान मंदिर स्थापित किए। उन्होंने श्री हनुमान पर प्रणव नादिराई, मुक्का प्राण पदिराई और सद्गुण चरित लिखा।


3. तुलसीदासजी- 

तुलसीदासजी का जन्म 1554 ईस्वी में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। तुलसीदासजी जब चित्रकूट में रहते थे, तब जंगल में शौच करने जाते थे। वहीं एक दिन उन्हें एक प्रेत नजर आया। उस प्रेत ने ही बताया था कि हनुमानजी के दर्शन करना है तो वे कुष्ठी रूप में प्रतिदिन हरिकथा सुनने आते हैं। तुलसीदासजी ने वहीं पर हनुमानजी को पहचान लिया और उनके पैर पकड़ लिए। अंत में हारकर कुष्ठी रूप में रामकथा सुन रहे हनुमानजी ने तुलसीदासजी को भगवान के दर्शन करवाने का वचन दे दिया। फिर एक दिन मंदाकिनी के तट पर तुलसीदासजी चंदन घिस रहे थे। भगवान बालक रूप में आकर उनसे चंदन मांग-मांगकर लगा रहे थे, तब हनुमानजी ने तोता बनकर यह दोहा पढ़ा- 'चित्रकूट के घाट पै भई संतनि भीर/ तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।'




4. राघवेन्द्र स्वामी- 

1595 में जन्मे रामभक्त राघवेन्द्र स्वामी माधव समुदाय के एक गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनके जीवन से अनेक चमत्कारिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। उनके बारे में भी कहा जाता है कि उन्होंने भी हनुमानजी के साक्षात दर्शन किए थे। वे भी हनुमानजी के परम भक्त थे। उन्होंने 1671 में मंत्राल्यम में तुंगभद्रा नदी के तट पर जीवा समाधि में प्रवेश किया।



5. भद्राचल रामदास-

 1620 में जन्मे और 1688 में ब्रह्मलीन भद्राचल रामदास का पूर्व नाम गोपन था। गोपन अब्दुल हसन तान शाह के दरबार में तहसीलदार थे। उन्हें एक महिला के स्वप्न के आधार पर भद्रगिरि पर्वत से राम की मूर्तियां मिलीं। तब उन्होंने खम्माम जिले के भद्राचलम में गोदावरी नदी के बाएं किनारे पर उक्त मूर्ति की स्थापना कर एक भव्य मंदिर बनवा दिया।



6. समर्थ रामदास-                                                                      

समर्थ स्वामी रामदास का जन्म रामनवमी 1608 में गोदा तट के निकट ग्राम जाम्ब (जि. जालना) में हुआ। वे हनुमानजी के परम भक्त और छत्रपति शिवाजी के गुरु थे। महाराष्ट्र में उन्होंने रामभक्ति के साथ हनुमान भक्ति का भी प्रचार किया। हनुमान मंदिरों के साथ उन्होंने अखाड़े बनाकर महाराष्ट्र के सैनिकीकरण की नींव रखी, जो राज्य स्थापना में बदली। कहते हैं कि उन्होंने भी अपने जीवनकाल में एक दिन हनुमानजी को देखा था। 1608–1681 को समर्थ रामदासजी ने देह का त्याग कर दिया।


7. छत्रपति शिवाजी-                                                             

1627 में जन्मे और 1680 में ब्रह्मलीन छत्रपति शिवाजी महान मराठा योद्धा थे जिन्होंने बीजापुर के मुगलों, तुर्कों, पुर्तगालियों, अंग्रेजों, डचों और फ्रांसीसियों से लड़ाई की। वे श्री हनुमान और माता तुलजा भवानी के परम भक्त थे। उनके गुरु समर्थ रामदास के बारे में पहले ही ऊपर लिखा जा चुका है। शिवाजी को साहसी, निडर, विनम्र, बुद्धिमान, महत्वाकांक्षी, अनुशासित, एक विशेषज्ञ रणनीतिकार, एक अच्छा संगठक और दूरदर्शी के रूप में जाना जाता है।

8. संत त्यागराज-                                                               

 1767 में जन्मे और 1847 में ब्रह्मलीन संत त्यागराज श्रीराम और हनुमानजी के परम भक्त थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने 6 करोड़ बार श्रीराम के थारका नाम का पाठ किया और थिरुवियारु के थिरुमंजना स्ट्रीट पर अपने घर के सामने सीता देवी, लक्ष्मण और श्री अंजनेय के साथ श्रीराम के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया था।



9. श्री रामकृष्ण परमहंस-                                                        

1836 में जन्मे और 1886 में ब्रह्मलीन स्वामी रामकृष्ण परमहंस भी हनुमानजी के परम भक्त थे। हालांकि उनकी प्रसिद्धि काली के भक्त के रूप में ज्यादा थी, क्योंकि वे मंदिर के पुजारी थे। कहते हैं कि श्री रामकृष्ण परमहंस ने हनुमानजी की भक्ति इस चरमता के साथ की थी कि उक्त भक्ति के चलते उनकी रीढ़ में से लगभग एक पूंछ निकलने लगी थी। दरअसल, रामकृष्ण परमहंस ने धर्म के सभी मार्गों की पद्धति से भक्त करके सत्य को जानने का कार्य किया था।



10. नीम करोली बाबा-                                                              

नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था। उन्होंने अपने शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में किया था। बाबा नीम करोली हनुमानजी के परम भक्त थे और उन्होंने देशभर में हनुमानजी के कई मंदिर बनवाए थे। नीम करोली बाबा के कई चमत्कारिक किस्से हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि हनुमानजी उन्हें साक्षात दर्शन देते थे।




परमवीर चक्र से सम्मनित भारतीय सैनिक जदुनाथ सिहं

नायक जदुनाथ सिंह , जिन्होने सैनिक के रूप मे ब्रिटिश काल मे भारतीय सेना ज्वाइन करके द्वितीय विश्वयुद्ध मे वर्मा मे जापान के खिलाफ लड़ाई मे अपना योगदान दिया था । आजाद भारत मे भारतीय सेना ज्वाइन करके भारत पाकिस्तान युद्ध मे जम्मू के नौशेरा मे पाकिस्तानी सैनिको से युद्ध करते हुए शहीद हो गए। जिसके बाद इन्हे परमवीर चक्र से सम्मनित किया गया ।
लेकिन इनका जीवन किस तरह हनुमान जी से कनेक्टेड है इस शार्ट फिल्म मे देखिए।

https://youtu.be/TFHDFqDb6jA



कहते है कि जब राम जी ने जल समाधि ली तो इसबात से बहुत दुखी होकर हनुमानजी दक्षिण भारत के जंगलो मे चले गये और निर्णय लिया कि अब वो जीवनभर जंगलो मे ही रहेंगे उनकी यात्रा के दौरान वे एक कबीले मे रूके उस कबीले के लोगो ने उनकी बहुत सेवा की जिससे हनुमान जी ने खुश होकर उन्हे आत्मज्ञान दिया। उस कबीले के लोगो ने हनुमानजी से यह विनती की कि वो समय समय पर वहां जाकर उनकी आने वाली पीढ़ी को भी आत्मज्ञान दे तो हनुमानजी ने उस कबीले के लोगो को यह वचन दिया कि वो प्रत्येक 41 वर्ष बाद वहाँ आएंगे और उनकी पीढ़ी को आत्मज्ञान देंगे


उस कबीले के लोगो को मातंग कहते है इनकी संख्या बहुत कम है

ऐसा बताया जाता है कि 41 वर्ष मे एकबार हनुमानजी आज भी इनसे मिलने आते है और 27 मई 2014 को हनुमानजी जी ने अंतिम बार अपना समय व्यतीत किया था जिसके उपरान्त अब 2055 मे हनुमानजी इनसे मिलने आएंगे ।

2014 मे मैने ये न्यूज लाइव देखी थी न्यूज चैनल शायद स्टार न्यूज या इंडिया मे एक था ।

जिसमे जर्नलिस्ट ने वहां के लोगो से वात भी की थी जिनका कहना था कि हनुमान जी के संपर्क सिर्फ बहुत ही पवित्र देह के लोग कर सकते है हनुमान जी का औरा भी बहुत ही पवित्रता की अनूभूति देता है ।



🙏🙏

।। जय राम जी की ।।

मानो तो भगवान न मानो तो पत्थर ।
न भगवान का अपमान सिर्फ हमारा नुकसान। 
आज भी अपने भक्तो के सबसे करीब है हनुमान जी 
न जाने कितनी कहानियाँ सबको पता है न जाने कितनी कुछ लोगो ने सीक्रेट बना रखी है लेकिन सच कभी छुपता नही हमारे हनुमानजी को वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर चुके है तभी सेतु एशिया जैसे इंटरनेशनल संगठन भी उनपर रिसर्च कर रहे है ।

4 comments:

  1. In modern era one prominent hanuman ji bhakt is .. a inspiring dharmic warrior hanuman bhakt glorious tale https://youtu.be/TFHDFqDb6jA

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  2. Added! but aaj srf link hi add kiya hai kal video file upload karungi aaj network slow hai

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    1. Waise is sansar me hanuman ji ka bhakt hona namunkeen hai..namunkeen aisa ......

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