शीर्षक देखकर आश्चर्यचकित होने की जरूरत नही है मै यहाँ कुछ भी गलत या हिंसक बात नही कह रही हूँ बस हमारे इतिहास के आधे सच मे आधे झूठ को मिलाकर किस तरह एक क्रूर शासक को दानवीर, नेक और एक महान इंसान घोषित कर दिया बस उसी तथ्य को कुछ ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ एक छोटे से ब्लाग मे स्पष्ठ कर रही हूँ उम्मीद करती हूँ कि आप पूरा पढ़ेंगे।
जैसा कि आप सब जानते है कि औरंगज़ेब का जन्म गुजरात के दाहोद गांव मे 3 नवंबर 1618 को हुआ था ये मुगल सम्राट शाहजहाँ और मुमताज महल के तीसरे पुत्र और छठी संतान थे जिसे आमतौर पर औरंगजेब या आलमगीर के नाम से जाना जाता था भारत पर राज्य करने वाला छठा मुगल शासक था उसका शासन 1647 - 1707 मे उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगजेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया उसके शासनकाल मे मुगल साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था जिसकी वजह से वह अपने समय का सबसे धनी व शक्तिशाली व्यक्ति था उसने पूरे साम्राज्य पर फतवा-ए-आलमगीरी ( शरीयत या इस्लामी कानून ) लागू किए ।
हिंदुओं पर शरीयत लागू करने वाला वो पहला मुसलमान शासक था और कुरान को अपना शासन आधार मानते हुए सिक्को पर कलमा खुदवाना, नौरोज का त्योहार मनाना, भांग की खेती करना,गाना- बजाना, आदि पर रोक लगा दी। इसके साथ ही सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगाया,तीर्थ कर पुन: लगाया, झरोखा दर्शन और तुलादान पर रोक लगाया 1668 मे हिंदु त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया और न कई मंदिरो को तोड़ने का आदेश दिया जिसके तहत मथुरा का केशव राय मंदिर और बनारस विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर के साथ अकेले उदयपुर मे 172 और चित्तौड़ मे 63 मंदिरों को तुड़वाकर मस्जिद बनवाई और मंदिरों की मूर्तियो को मस्जिदों के चौतरो पर दवा दिया ।
औरंगजेब का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य 'दारूल हर्ब' यानी काफिरो के देश भारत को ' दारूल इस्लाम' यानी इस्लाम के देश मे परिवर्तित करना था। औरंगजेब के अंतिम समय मे दक्षिण मे मराठों की ताकत बहुत बढ़ चुकी थी जिनको हराने मे उसकी सेना को सफलता नही मिल रही थी इसलिए 1683 मे औरंगजेब स्वयं सेना लेकर दक्षिण चला गया और करीब 25वर्ष तक उन्हे परास्त करने मे लगा रहा जिसके बाद 3 मार्च 1707 मे उसकी मृत्यु हो गयी। तत्पश्चात मुगल साम्राज्य का अंत भी हो गया।
अपने बड़े भाई दारा शुकोह, शुजा और मुराद की हत्या करवाकर दारा शुकोह के बड़े पुत्र की हत्या की व छोटे पुत्र को कैद करवाकर सत्ता हासिल की और इतना ही नही सत्ता हासिल करने के बाद अपने पिता शाहजहाँ को उनके बुढ़ापे मे बीमार होने के दौरान आगरा के किले की एक अंधेरी कोठरी मे कैद करवा दिया।
उस कोठरी में एक छोटी से खिड़की से शाहजहाँ ताजमहल को निहार कर अपने दिल की कसक पूरी करता था। शाहजहाँ को पुरे दिन में एक घड़ा पानी भर मिलता था। जेठ की दोपहरी में कंपकपाते बूढ़े हाथों से पानी लेते समय वह मटका टूट गया। शाहजहाँ ने दूसरे मटके की मांग करी तो हवलदार ने यह कहकर मना कर दिया की बादशाह का हुकुम नहीं हैं।
औरंगजेब ने अपने साम्राज्य मे वृद्धि तो अवश्य की लेकिन कट्टरपन तथा अपने भाईयो के प्रति दुर्व्यवहार के कारण उसे जनता के विरोध का सामना भी करना पड़ा।
औरंगजेब ने तख्त के लिए अपने तीनो भाईयों को इतनी क्रूरता से मरवाया था कि उसे सपने मे उनकी स्मृतियाँ तंग करती रहती थी वह इतना शकी हो चुका था कि वह स्वयं अपने पुत्रों को अपने निकट नही आने देता था हमेशा उन्हे डांटता रहता था क्योंकि उसे हमेशा डर रहता था कि वे कही गद्दी के लिए कही उसे न मार दे जैसा उसने अपने सगो के साथ किया था। उसकी इसी नीति की वजह से उसके पुत्र उसके जीवनकाल मे ही बुढ्डे हो गए थे मगर राजनीति का एक पाठ भी न सीख सके यही कारण था कि उसके मरने के बाद मे सभी राजकाज मे असक्षम सिद्ध हुई और मुगलिया सल्तनत का दिवाला निकल गया।
औरंगज़ेब ने गैर मुसलमानों से लेकर मुसलमानों पर अनेक अत्याचार किये। उसने अपनी सुन्नी फिरकापरस्ती के चलते मुहर्रम के जुलुस पर पाबन्दी लगा दी, पारसियों के नववर्ष त्यौहार को बंद कर दिया , दरबार में संगीत पर पाबन्दी लगा दी, हिन्दुओं पर तीर्थ यात्रा पर जजिया कर लगा दिया, यहाँ तक की साधु-फकीरों तक को नहीं छोड़ा।
औरंगजेब के पूर्वज अकबर, बाबर आदी शासकों ने अधिकतर भारत पर अधिग्रहण कर लिया था , और औरंगजेब ने क्रूरता और हैवानगी की सारी सीमाएं पार कर उसमें वृध्दि की थी लेकिन आर्थिक समृध्दि के दृष्टिकोण से कोई भी ठोस कदम नही उठाया ।
औरंगजेब ने हिन्दुओ से हद से ज्यादा कर बसूला लेकिन उसका प्रयोग सिर्फ युद्ध मे किया जैसा हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान करता है और उसकी अर्थव्यवस्था की हालत सब जानते है किस आधार पर लोग औरंगजेब के शासनकाल को समृद्ध कहते हैं जबकि सब जानते है एक समृद्ध से समृद्ध देश की अर्थव्यवस्था पर युद्ध का नकारात्मक प्रभाव पड़ता ही है ।
सच तो यह है कि एक आर्थिक सम्पन्नता से परिपूर्ण सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश पर पहले तुर्को की गंदी नजर पड़ी फिर मुगलो की ।
प्राचीन भारत मे मौर्य साम्राज्य ने पूरे भारत को एक क्षत्र मे लाया था कर व्यवस्था मे सुधार कर प्रजा को विकास के अवसर प्रदान किए
गुप्त काल मे महिलाओं को सशक्त बनाया कृषि तथा पशुपालन को राष्ट्रीय सम्पत्ति का एक बड़ा साधन निरूपित किया है । धान, गेहूँ, गन्ना, जूट, तिलहन, कपास, ज्वार-बाजरा, मसाले, धूप, नील आदि प्रभूत मात्रा में उत्पन्न होते थे क्योकि सिचाई की समुचित व्यवस्था थी । उद्योग-धन्धे उन्नति पर थे । कपड़े का निर्माण करना इस काल का सर्वप्रमुख उद्योग था जिससे बहुसंख्यक लोगों को जीविका मिलती थी ।
इसके अतिरिक्त हाथी-दाँत की वस्तुएँ बनाना, मूर्तिकारी, चित्रकारी, शिल्प-कार्य, मिट्टी के बर्तन बनाना, जहाजों का निर्माण आदि इस समय के कुछ अन्य उद्योग-धन्धे थे । गुप्त युग में व्यापार-व्यवसाय के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व प्रगति हुई
9 अप्रैल 1669 को मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के आदेशानुसार काशी विश्वनाथ (बनारस) अगस्त 1669 का विध्वंस किया गया था
मूल काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी को नष्ट करने के बाद ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने 1669 ईस्वी में किया।
हिंदू मंदिर के अवशेषों को ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर देखा जा सकता है
मस्जिद के निर्माण से पहले जो मंदिर का ढांचा मौजूद था, वह शायद अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह द्वारा बनाया गया था।
9 अप्रैल, 1969 को मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा पारित आदेश के अनुसार 'सोमनाथ मंदिर' का भी विध्वंस किया गया
जिसके स्थान पर भी एक मस्जिद का निर्माण करवाया गया था
मंदिर की वर्तमान बिल्डिंग का निर्माण भारत के लौहपुरुष सरदार पटेल ने उसके वास्तविक स्थान पर बनी मस्जिद को तोड़ कर करवाया
औंधा नागनाथ के पहले मंदिर का निर्माण युधिष्ठिर ने # महाभारत के समय में करवाया था। औंधा नागनाथ का वर्तमान मंदिर 13 वीं शताब्दी में सेउना / यादव वंश द्वारा बनाया गया है।
5. 25 मई 1679 को जोधपुर से लूटकर लाई गयी मूर्तियों के बारे में औरंगजेब ने हुकुम दिया कि सोने-चाँदी-हीरे से सज्जित मूर्तियों को जिलालखाना में सुसज्जित कर दिया जाये और बाकि मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढियों में गाड़ दिया जाये।
7. 22 फरवरी 1980 को औरंगजेब ने चित्तोड़ पर आक्रमण कर महाराणा कुम्भा द्वाराबनाएँ गए 63 मंदिरों को तोड़ डाला।
जैसा कि आप सब जानते है कि औरंगज़ेब का जन्म गुजरात के दाहोद गांव मे 3 नवंबर 1618 को हुआ था ये मुगल सम्राट शाहजहाँ और मुमताज महल के तीसरे पुत्र और छठी संतान थे जिसे आमतौर पर औरंगजेब या आलमगीर के नाम से जाना जाता था भारत पर राज्य करने वाला छठा मुगल शासक था उसका शासन 1647 - 1707 मे उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगजेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया उसके शासनकाल मे मुगल साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था जिसकी वजह से वह अपने समय का सबसे धनी व शक्तिशाली व्यक्ति था उसने पूरे साम्राज्य पर फतवा-ए-आलमगीरी ( शरीयत या इस्लामी कानून ) लागू किए ।
हिंदुओं पर शरीयत लागू करने वाला वो पहला मुसलमान शासक था और कुरान को अपना शासन आधार मानते हुए सिक्को पर कलमा खुदवाना, नौरोज का त्योहार मनाना, भांग की खेती करना,गाना- बजाना, आदि पर रोक लगा दी। इसके साथ ही सतीप्रथा पर प्रतिबंध लगाया,तीर्थ कर पुन: लगाया, झरोखा दर्शन और तुलादान पर रोक लगाया 1668 मे हिंदु त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया और न कई मंदिरो को तोड़ने का आदेश दिया जिसके तहत मथुरा का केशव राय मंदिर और बनारस विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर के साथ अकेले उदयपुर मे 172 और चित्तौड़ मे 63 मंदिरों को तुड़वाकर मस्जिद बनवाई और मंदिरों की मूर्तियो को मस्जिदों के चौतरो पर दवा दिया ।
औरंगजेब का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य 'दारूल हर्ब' यानी काफिरो के देश भारत को ' दारूल इस्लाम' यानी इस्लाम के देश मे परिवर्तित करना था। औरंगजेब के अंतिम समय मे दक्षिण मे मराठों की ताकत बहुत बढ़ चुकी थी जिनको हराने मे उसकी सेना को सफलता नही मिल रही थी इसलिए 1683 मे औरंगजेब स्वयं सेना लेकर दक्षिण चला गया और करीब 25वर्ष तक उन्हे परास्त करने मे लगा रहा जिसके बाद 3 मार्च 1707 मे उसकी मृत्यु हो गयी। तत्पश्चात मुगल साम्राज्य का अंत भी हो गया।
हकीकत से दूर अफवाह
1-औरंगज़ेब एक पवित्र जीवन व्यतीत करता था और वह एक श्रेष्ठ व्यक्ति था )
वजह क्योकि औरंगजेब टोपियाँ सीकर कुरान की आयते लिखकर अपना खर्च चलाते थेअपने बड़े भाई दारा शुकोह, शुजा और मुराद की हत्या करवाकर दारा शुकोह के बड़े पुत्र की हत्या की व छोटे पुत्र को कैद करवाकर सत्ता हासिल की और इतना ही नही सत्ता हासिल करने के बाद अपने पिता शाहजहाँ को उनके बुढ़ापे मे बीमार होने के दौरान आगरा के किले की एक अंधेरी कोठरी मे कैद करवा दिया।
उस कोठरी में एक छोटी से खिड़की से शाहजहाँ ताजमहल को निहार कर अपने दिल की कसक पूरी करता था। शाहजहाँ को पुरे दिन में एक घड़ा पानी भर मिलता था। जेठ की दोपहरी में कंपकपाते बूढ़े हाथों से पानी लेते समय वह मटका टूट गया। शाहजहाँ ने दूसरे मटके की मांग करी तो हवलदार ने यह कहकर मना कर दिया की बादशाह का हुकुम नहीं हैं।
औरंगजेब ने अपने साम्राज्य मे वृद्धि तो अवश्य की लेकिन कट्टरपन तथा अपने भाईयो के प्रति दुर्व्यवहार के कारण उसे जनता के विरोध का सामना भी करना पड़ा।
औरंगजेब ने तख्त के लिए अपने तीनो भाईयों को इतनी क्रूरता से मरवाया था कि उसे सपने मे उनकी स्मृतियाँ तंग करती रहती थी वह इतना शकी हो चुका था कि वह स्वयं अपने पुत्रों को अपने निकट नही आने देता था हमेशा उन्हे डांटता रहता था क्योंकि उसे हमेशा डर रहता था कि वे कही गद्दी के लिए कही उसे न मार दे जैसा उसने अपने सगो के साथ किया था। उसकी इसी नीति की वजह से उसके पुत्र उसके जीवनकाल मे ही बुढ्डे हो गए थे मगर राजनीति का एक पाठ भी न सीख सके यही कारण था कि उसके मरने के बाद मे सभी राजकाज मे असक्षम सिद्ध हुई और मुगलिया सल्तनत का दिवाला निकल गया।
औरंगज़ेब ने गैर मुसलमानों से लेकर मुसलमानों पर अनेक अत्याचार किये। उसने अपनी सुन्नी फिरकापरस्ती के चलते मुहर्रम के जुलुस पर पाबन्दी लगा दी, पारसियों के नववर्ष त्यौहार को बंद कर दिया , दरबार में संगीत पर पाबन्दी लगा दी, हिन्दुओं पर तीर्थ यात्रा पर जजिया कर लगा दिया, यहाँ तक की साधु-फकीरों तक को नहीं छोड़ा।
2- औरंगजेब के शासन में, भारत की अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था का लगभग 25% थी जो दुनिया में सबसे बड़ी थी ।
वजह क्योकि उसके शासनकाल मे लगभग पूरे भारत पर मुगलो का अधिपत्य हो चुका थाऔरंगजेब के पूर्वज अकबर, बाबर आदी शासकों ने अधिकतर भारत पर अधिग्रहण कर लिया था , और औरंगजेब ने क्रूरता और हैवानगी की सारी सीमाएं पार कर उसमें वृध्दि की थी लेकिन आर्थिक समृध्दि के दृष्टिकोण से कोई भी ठोस कदम नही उठाया ।
औरंगजेब ने हिन्दुओ से हद से ज्यादा कर बसूला लेकिन उसका प्रयोग सिर्फ युद्ध मे किया जैसा हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान करता है और उसकी अर्थव्यवस्था की हालत सब जानते है किस आधार पर लोग औरंगजेब के शासनकाल को समृद्ध कहते हैं जबकि सब जानते है एक समृद्ध से समृद्ध देश की अर्थव्यवस्था पर युद्ध का नकारात्मक प्रभाव पड़ता ही है ।
सच तो यह है कि एक आर्थिक सम्पन्नता से परिपूर्ण सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश पर पहले तुर्को की गंदी नजर पड़ी फिर मुगलो की ।
प्राचीन भारत मे मौर्य साम्राज्य ने पूरे भारत को एक क्षत्र मे लाया था कर व्यवस्था मे सुधार कर प्रजा को विकास के अवसर प्रदान किए
गुप्त काल मे महिलाओं को सशक्त बनाया कृषि तथा पशुपालन को राष्ट्रीय सम्पत्ति का एक बड़ा साधन निरूपित किया है । धान, गेहूँ, गन्ना, जूट, तिलहन, कपास, ज्वार-बाजरा, मसाले, धूप, नील आदि प्रभूत मात्रा में उत्पन्न होते थे क्योकि सिचाई की समुचित व्यवस्था थी । उद्योग-धन्धे उन्नति पर थे । कपड़े का निर्माण करना इस काल का सर्वप्रमुख उद्योग था जिससे बहुसंख्यक लोगों को जीविका मिलती थी ।
इसके अतिरिक्त हाथी-दाँत की वस्तुएँ बनाना, मूर्तिकारी, चित्रकारी, शिल्प-कार्य, मिट्टी के बर्तन बनाना, जहाजों का निर्माण आदि इस समय के कुछ अन्य उद्योग-धन्धे थे । गुप्त युग में व्यापार-व्यवसाय के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व प्रगति हुई
हर्षवर्धन ने इसी व्यवस्था को जारी रखा जिससे उस समय की प्रजा व तत्कालीन भारत सम्पन्न व समृद्ध बन चूका था बल्कि गुप्तकाल को ही भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता है ।
हर्षवर्धन के बाद लगभग 1000 वर्षों तक राजपूतों का शासन रहा जो काफी प्रतिष्ठित और वैभवशाली रहा जिसे देखकर पहले तुर्को ऐर फिर मुगलों की गंदी नजर भारत पर पड़ी।
हर्षवर्धन के बाद लगभग 1000 वर्षों तक राजपूतों का शासन रहा जो काफी प्रतिष्ठित और वैभवशाली रहा जिसे देखकर पहले तुर्को ऐर फिर मुगलों की गंदी नजर भारत पर पड़ी।
तुर्क और मुगल तो लुटेरे थे कभी किसी ने सुना है कि चोर लुटेरे अपने खजाना लेकर किसी का घर बनाने के लिए ले गए ?
पूरे भारत पर अपना अधिपत्य जमाने के लिए जिन्होंने अपने भाईयो और पिता के खून से होली खेली हो उनके लिए ऐसा कहना बौद्धिक जेहाद
होगा।
पूरे भारत पर अपना अधिपत्य जमाने के लिए जिन्होंने अपने भाईयो और पिता के खून से होली खेली हो उनके लिए ऐसा कहना बौद्धिक जेहाद
होगा।
3.औरंगजेब एक महान शासक था
वजह ये है फिरकापरस्ती और चापलूसी की सीमा पार करते कुछ लोगो का कहना है कि औरंगजेब ने मंदिरों मे धन आभूषण दान किए बल्कि बहुत से मंदिरों का निर्माण करवाया ।
और ये बात उतनी ही सच है जितनी, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे श्रेष्ठ अर्थव्यवस्था है आगे कुछ ऐतिहासिक प्रमाणों को देखकर आप औरंगजेब और उनके समर्थकों की सोच का आकलन स्वंय कीजिए।
औरंगज़ेब ने गैर मुसलमानों से लेकर मुसलमानों पर अनेक अत्याचार किये।
गैर मुसलमान इसलिए क्योंकि उसने हिन्दुओ, बौद्ध, जैन, सिख सभी को अपनी क्रूरता का शिकार बनाया ।
उसने अपनी सुन्नी फिरकापरस्ती के चलते मुहर्रम के जुलुस पर भी पाबन्दी लगा दी, पारसियों के नववर्ष त्यौहार को बंद कर दिया , दरबार में संगीत पर पाबन्दी लगा दी, हिन्दुओं पर तीर्थ यात्रा पर जजिया कर लगा दिया, यहाँ तक की साधु-फकीरों तक को नहीं छोड़ा।औरंगज़ेब ने होली पर प्रतिबन्ध लगाकर, मंदिरों में गोहत्या करवाकर, अनेक मंदिरों को तुड़वा कर अपने आपको "आलमगीर" बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
औरंगज़ेब ने गैर मुसलमानों से लेकर मुसलमानों पर अनेक अत्याचार किये।
गैर मुसलमान इसलिए क्योंकि उसने हिन्दुओ, बौद्ध, जैन, सिख सभी को अपनी क्रूरता का शिकार बनाया ।
उसने अपनी सुन्नी फिरकापरस्ती के चलते मुहर्रम के जुलुस पर भी पाबन्दी लगा दी, पारसियों के नववर्ष त्यौहार को बंद कर दिया , दरबार में संगीत पर पाबन्दी लगा दी, हिन्दुओं पर तीर्थ यात्रा पर जजिया कर लगा दिया, यहाँ तक की साधु-फकीरों तक को नहीं छोड़ा।औरंगज़ेब ने होली पर प्रतिबन्ध लगाकर, मंदिरों में गोहत्या करवाकर, अनेक मंदिरों को तुड़वा कर अपने आपको "आलमगीर" बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
औरंगजेब द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़ने के लिए जारी किये गए फरमानों का कच्चा चिट्ठा
1- काशी विश्वनाथ मंदिर
9 अप्रैल 1669 को मिर्जा राजा जय सिंह अम्बेर की मौत के बाद औरंगजेब के हुक्म से उसके पूरे राज्य में जितने भी हिन्दू मंदिर थे, उनको तोड़ने का हुक्म दे दिया गया और किसी भी प्रकार की हिन्दू पूजा पर पाबन्दी लगा दी गयी।9 अप्रैल 1669 को मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के आदेशानुसार काशी विश्वनाथ (बनारस) अगस्त 1669 का विध्वंस किया गया था
मूल काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी को नष्ट करने के बाद ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने 1669 ईस्वी में किया।
हिंदू मंदिर के अवशेषों को ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर देखा जा सकता है
मस्जिद के निर्माण से पहले जो मंदिर का ढांचा मौजूद था, वह शायद अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह द्वारा बनाया गया था।
2- सोमनाथ मंदिर
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है।9 अप्रैल, 1969 को मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा पारित आदेश के अनुसार 'सोमनाथ मंदिर' का भी विध्वंस किया गया
जिसके स्थान पर भी एक मस्जिद का निर्माण करवाया गया था
मंदिर की वर्तमान बिल्डिंग का निर्माण भारत के लौहपुरुष सरदार पटेल ने उसके वास्तविक स्थान पर बनी मस्जिद को तोड़ कर करवाया
3- औंधा नागनाथ
औंधा नागनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में से 8 वें स्थान पर है, मंदिर का निर्माण 7 मंजिला था और इसे औरंगज़ेब द्वारा तोड़ दिया गया था।औंधा नागनाथ के पहले मंदिर का निर्माण युधिष्ठिर ने # महाभारत के समय में करवाया था। औंधा नागनाथ का वर्तमान मंदिर 13 वीं शताब्दी में सेउना / यादव वंश द्वारा बनाया गया है।
4- केशवदेव राय मंदिर मथुरा
मथुरा में स्थित केशवदेव राय का महान मंदिर भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि और भारत में निर्मित सबसे शानदार मंदिरों में से एक था।
भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने लगभग 5,000 साल पहले यहां पहला बड़ा मंदिर बनवाया था। दूसरा बड़ा मंदिर 400ईसवी मे गुप्त साम्राज्य के चंद्रगुप्त द्वितीय के समय मे बनवाया गया था
विजयपाल देव के शासन के दौरान विक्रम संवत १२० 11 (११५० ईस्वी) में जाजा जी द्वारा निर्मित तीसरा मंदिर और चौथा मंदिर वीर सिंह जी द्वारा बनवाया गया था जिसके ऊपर ही औरंगजेब ने ईदगाह मस्जिद बनवाई थी ।
11 जनवरी -16 फरवरी 1670 औरंगजेब द्वारा मथुरा के भगवान केशवदेव राय मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया गया
जिसके बाद केशव देव राय के मंदिर को तोड़ दिया गया और उसके स्थान पर मस्जिद बना दी गयी। मंदिर की मूर्तियों को तोड़ कर आगरा लेकर जाया गया और उन्हें मस्जिद की सीढियों में गाड़ दिया गया और मथुरा का नाम बदल कर इस्लामाबाद कर दिया गया।
औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव राय मंदिर से नक्काशीदार जालियों को जोकि उसके बड़े भाई दारा शिकोह द्वारा भेंट की गयी थी को तोड़ने का हुक्म यह कहते हुए दिया कि किसी भी मुसलमान के लिए एक मंदिर की तरफ देखने तक की मनाही है। और दारा शिको ने जो किया वह एक मुसलमान के लिए नाजायज है।
केशवदेव राय मंदिर को रमजान के महिने मे गिरवाया गया और मूर्तियो को बेगम मस्जिद (जामा मस्जिद) के नीचे दफन किया गया
मंदिर गिराने के बाद उसी स्थान पर ईदगाह मस्जिद का निर्माण करवाया
500 ईस्वी पूर्व औरंगजेब द्वारा ध्वस्त किया गया ऐतिहासिक कृष्णजन्मभूमि के केशवदेव राय मंदिर की रुद्रा मूर्ति, जो वर्तमान में मथुरा संग्रहालय में है।
इसके बाद औरंगजेब ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर का भी विध्वंश कर दिया।
5- कालकाजी मंदिर
12 सितम्बर 1667 को औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली के प्रसिद्द कालकाजी मंदिर को तोड़ दिया गया।
5. 25 मई 1679 को जोधपुर से लूटकर लाई गयी मूर्तियों के बारे में औरंगजेब ने हुकुम दिया कि सोने-चाँदी-हीरे से सज्जित मूर्तियों को जिलालखाना में सुसज्जित कर दिया जाये और बाकि मूर्तियों को जामा मस्जिद की सीढियों में गाड़ दिया जाये।
6- श्रीनाथ जी मंदिर की मूर्ति का स्थानांतरण
5 दिसम्बर 1671 औरंगजेब के शरीया को लागु करने के फरमान से गोवर्धन स्थित श्री नाथ जी की मूर्ति को पंडित लोग मेवाड़ राजस्थान के सिहाद गाँव ले गए। जहाँ के राणा जी ने उन्हें आश्वासन दिया की औरंगजेब की इस मूर्ति तक पहुँचने से पहले एक लाख वीर राजपूत योद्धाओं को मरना पड़ेगा।
6.कोोउदयपुर मे बने जगन्नाथ मंदिर को राजपूतो द्वारा बचाया गया
23 दिसम्बर 1679 को औरंगजेब के हुक्म से उदयपुर के महाराणा झील के किनारे बनाये गए मंदिरों को तोड़ा गया। महाराणा के महल के सामने बने जगन्नाथ के मंदिर को मुट्ठी भर वीर राजपूत सिपाहियों ने अपनी बहादुरी से बचा लिया।
7. 22 फरवरी 1980 को औरंगजेब ने चित्तोड़ पर आक्रमण कर महाराणा कुम्भा द्वाराबनाएँ गए 63 मंदिरों को तोड़ डाला।
8. जगन्नाथ मंदिर
1 जून 1681 को औरंगजेब ने प्रसिद्द पूरी के जगन्नाथ मंदिर को तोड़ने का हुकुम दिया।
9. 13 अक्टूबर 1681 को बुरहानपुर में स्थित मंदिर को मस्जिद बनाने का हुकुम औरंगजेब द्वारा दिया गया।
10. नन्द माधव मंदिर
13 सितम्बर 1682 को मथुरा के नन्द माधव मंदिर को तोड़ने का हुकुम औरंगजेब द्वारा दिया गया। इस प्रकार अनेक फरमान औरंगजेब द्वारा हिन्दू मंदिरों को तोड़ने के लिए जारी किये गए।
और यहाँ भी मंदिर तोड़कर उसी स्थान पर मस्जिद बनवाई जिसका नाम था आलमगिर मस्जिद
23 दिसम्बर 1679 को सिर्फ उदयपुर में 172 मंदिर ध्वस्त करने का औरंगजेब द्वारा पारित आदेश
2 अप्रैल 1679 को औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया गया
जिसका हिन्दुओं ने दिल्ली में बड़े पैमाने पर शांतिपूर्वक विरोध किया परन्तु उसे बेरहमी से कुचल दिया गया।
इसके साथ-साथ मुसलमानों को करों में छूट दे दी गयी जिससे हिन्दू अपनी निर्धनता और कर न चूका पाने की दशा में इस्लाम ग्रहण कर ले।
16 अप्रैल 1667 को औरंगजेब ने दिवाली के अवसर पर आतिशबाजी चलाने से और त्यौहार बनाने से मना कर दिया गया।
ऐसे न किए जाने पर न जाने कितने अत्याचार औरंगजेब ने हिन्दू जनता पर किये और आज उसी द्वारा जबरन मुस्लिम बनाये गए लोगों के वंशज उसका गुण गान करते नहीं थकते हैं।
औरंगजेब के अनुसार एक मुसलमान का एक मंदिर या मूर्ति को देखने भी एक पाप है। 13 अक्टूबर 1666
16 फरवरी 1668 को औरंगजेब ने संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया,
मगर इन सबका परिणाम वही निकला जो हर अत्याचारी का निकलता हैं। बर्बादी। औरंगज़ेब को उसके कुकर्मों, उसके बाप के शाप, उसके भाइयों की हाय, गैर मुसलमानों के प्रति वैमनस्य की भावना और मज़हबी उन्माद ने बर्बाद कर दिया ।
औरंगजेब ने कई बार कहा कि वो संभाजी को क्षमा कर देगा, लेकिन वो यदि अब भी इस्लाम कबूल ले। संभाजी ने मुगलों का उपहास उड़ाते हुए कहा, कि वह मुस्लिमों के समान मुर्ख नहीं है, जो ऐसे मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति के सामने घुटने टेके। फिर संभाजी ने अपने हिन्दू आराध्य महादेव को याद किया और कहा कि धर्म-अधर्म के भेद को देखने और समझने के बाद वो अपना जीवन हज़ारो बार हिंदुत्व और राष्ट्र को समर्पित करने को तैयार हैं। और इस तरह संभाजी म्लेच्छ औरंगजेब के आगे नहीं झुके, औरंगजेब ने इससे क्रोधित होकर आदेश दिया, की संभाजी के घावों पर नमक छिड़का जाए और उन्हें घसीटकर औरंगजेब के सिंहासन के नीचे लाया जाए फिर भी संभाजी लगातार भगवान शिव का नाम जपे चले जा रहे थे फिर उनकी जीभ काट दी गई और आलमगीर के पैरो में रखी गयी, जिसने इसे कुत्तो को खिलाने का आदेश दे दिया लेकिन औरंगजेब भूल गया था, कि वो जीभ काटकर भी संभाजी के दिल और दिमाग से कभी देशभक्ति और भगवद भक्ति को अलग नहीं कर सकता।
संभाजी अब भी मुस्कुराते हुए भगवान् शिव की आरधना कर रहे थे और मुगलों की तरफ गर्व भरी दृष्टि से देख रहे थे। इस पर उनकी आँखे निकाल दी गयी और फिर उनके दोनों हाथ भी एक-एक कर काट दिए गए। और ये सब धीरे-धीरे हर दिन संभाजी को प्रताड़ित करने के लिए किया जाने लगा। संभाजी के दिमाग में तब भी अपने पिताजी वीर शिवाजी की यादें ही थी, जो उन्हें प्रतिक्षण इन विपरीत परिस्थिति का सामना करने के लिए प्रेरित कर रही थी। हाथ काटने के भी लगभग 2 सप्ताह के बाद 11 मार्च 1689 को उनका सर भी धड से अलग किया गया। उनका कटा हुआ सर महाराष्ट्र के कस्बों में जनता के सामने चौराहों पर रखा गया, जिससे की मराठाओं में मुगलों का डर व्याप्त हो सके। जबकि उनके शरीर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर तुलापुर के कुत्तों को खिलाया गया। लेकिन ये सब वीर मराठा पर अपना प्रभाव नहीं जमा सके। अंतिम क्षणों तक भगवान शिव का जाप करने वाले बहादुर राजा के इस बलिदान से हिन्दू मराठाओ में अपने राजा के प्रति सम्मान मुगलों के प्रति आक्रोश और बढ़ गया।
माना जाता है कि चार नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर को दिल्ली लाया गया था। मुगल बादशाह ने गुरु तेग बहादुर से मौत या इस्लाम स्वीकार करने में से एक चुनने के लिए कहा। उन्हें डराने के लिए उनके साथ गिरफ्तार किए गए उनके तीन ब्राह्मणों अनुयायियों का सिर कटवा दिया गया लेकिन गुरु तेग बहादुर नहीं डरे। उनके साथ गिरफ्तार हुए भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गये,
भाई दयाल दास को तेल के खौलते कड़ाहे में फेंकवा दिया गया
और भाई सति दास को जिंदा जलवा दिया गया।
गुरु तेग बहादुर ने जब इस्लाम नहीं स्वीकार किया तो औरंगजेब ने उनकी भी हत्या करवा दी।
23 दिसम्बर 1679 को सिर्फ उदयपुर में 172 मंदिर ध्वस्त करने का औरंगजेब द्वारा पारित आदेश
हिन्दुओं पर औरंगजेब द्वारा अत्याचार करना
2 अप्रैल 1679 को औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया गया
जिसका हिन्दुओं ने दिल्ली में बड़े पैमाने पर शांतिपूर्वक विरोध किया परन्तु उसे बेरहमी से कुचल दिया गया।
इसके साथ-साथ मुसलमानों को करों में छूट दे दी गयी जिससे हिन्दू अपनी निर्धनता और कर न चूका पाने की दशा में इस्लाम ग्रहण कर ले।
16 अप्रैल 1667 को औरंगजेब ने दिवाली के अवसर पर आतिशबाजी चलाने से और त्यौहार बनाने से मना कर दिया गया।
धर्मांतरण
इसके बाद सभी सरकारी नौकरियों से हिन्दू कर्मचारियों को निकाल कर उनके स्थान पर मुस्लिम कर्मचारियों की भरती का फरमान भी जारी कर दिया गया। हिन्दुओं को शीतला माता, पीर प्रभु आदि के मेलों में इकठ्ठा न होने का हुकुम दिया गया। हिन्दुओं को पालकी, हाथी, घोड़े की सवारी की मनाई कर दी गयी। कोई हिन्दू अगर इस्लाम ग्रहण करता तो उसे कानूनगो बनाया जाता।
7 अप्रैल 1685 हिंदुओं का धर्मान्तरण करने के लिए औरंगजेब द्वारा जारी किया गया फतवा मुसलमान बनने पर प्रत्येक हिन्दू पुरुष को 4 रु जबकि हिंदू महिला को 2 रु दिये जाने का आदेश दिया था ।
ऐसे न किए जाने पर न जाने कितने अत्याचार औरंगजेब ने हिन्दू जनता पर किये और आज उसी द्वारा जबरन मुस्लिम बनाये गए लोगों के वंशज उसका गुण गान करते नहीं थकते हैं।
औरंगजेब के अनुसार एक मुसलमान का एक मंदिर या मूर्ति को देखने भी एक पाप है। 13 अक्टूबर 1666
16 फरवरी 1668 को औरंगजेब ने संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया,
मगर इन सबका परिणाम वही निकला जो हर अत्याचारी का निकलता हैं। बर्बादी। औरंगज़ेब को उसके कुकर्मों, उसके बाप के शाप, उसके भाइयों की हाय, गैर मुसलमानों के प्रति वैमनस्य की भावना और मज़हबी उन्माद ने बर्बाद कर दिया ।
औरंगजेब द्वारा सम्भाजी राजे की निर्मम हत्या
महान शिवाजी के देहांत के बाद 1680 में मराठो को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। औरंगजेब को लगा था कि शिवाजी के बाद उनका पुत्र संभाजी ज्यादा समय तक टिक नहीं सकेगा, इसलिए शिवाजी की मृत्यु के बाद 1680 में औरगंजेब दक्षिण की पठार की तरफ आया, उसके साथ 400,000 जानवर और 50 लाख की सेना थी। औरंगजेब ने बीजापुर की सल्तनत के आदिलशाह और गोलकोंडा की सल्तनत के कुतुबशाही को परस्त किया और वहां अपने सेनापति क्रमश: मुबारक खान और शार्जखन को नियुक्त किया। इसके बाद औरंगजेब ने मराठा राज्य का रुख किया और वहां संभाजी की सेना का सामना किया। 1682 में मुगलों ने मराठो के रामसेई दुर्ग को घेरने की कोशिश की लेकिन 5 महीने के प्रयासों के बाद भी वो सफल ना हो सके। फिर 1687 में वाई के युद्ध में मराठा सैनिक मुगलों के सामने कमजोर पड़ने लगे। वीर मराठाओं के सेनापति हम्बिराव मोहिते शहिद हो गए।
1689 तक स्थितियां बदल चुकी थी। मराठा राज संगमेश्वर में क्षत्रुओ के आगमन से अनभिज्ञ था ऐसे में मुक़र्राब खान के अचानक आक्रमण से मुग़ल सेना महल तक पहुँच गयी और संभाजी के साथ कवि कलश को बंदी बना लिया उन दोनों को कारागार में डाला गया और उन्हें वेद-विरुद्ध इस्लमा अपनाने को विवश किया गया।
औरंगजेब के शासन काल के आधिकारिक इतिहासकार मसिर प्रथम अम्बारी और कुछ मराठा सूत्रों के अनुसार कैदीयों को चैनों से जकडकर हाथी के हौदे से बांधकर औरंगजेब के कैंप तक ले जाया जाता था जो कि अकलूज में था। मुगल शासक तक ये खबर पहले ही पहुँच चुकी थी और उन्होंने इसके लिए एक बड़े महोत्सव के आयोजन की घोषणा की मुगलों ने पूरे मार्ग में विजयी सेनापतियों के लिए उत्सव का आयोजन और स्वागत किया। मुगलो की जीत के जश्न के लिए शेख निज़ाम का चित्र बनवाया गया. मुगल पुरुष सड़कों पर और झरोखों से झांकती महिलाए बुरखे के भीतर से हारे हुए मराठा को देखने को उत्सुक थी, जबकि राह में पड़ने वाले हर मुगल उनकी हँसी उड़ा रहे थे और कोई तो अपमान में मुंह पर थूक भी रहा था। मुगलों में मिले हुए राजपूत सैनिकों को संभाजी के लिए बहुत सहानुभूति थी संभाजी ने उन्होंने ललकारते हुए कहा था, कि या तो वे उन्हें खुला छोड़कर सन्मुख युद्ध कर ले या फिर उन्हें मारकर इस अपमान से मुक्ति दे, लेकिन मुगलों के डर से वो सैनिक खामोश थे इस तरह 5 दिन तक चलने के बाद वो लोग औरंगजेब के दरबार में पहुंचे
औरंगजेब संभाजी को देखकर अपने सिहासन से नीचे उतरकर आया और उसने कहा कि मराठाओ का आतंक कुछ ज्यादा ही हो गया था, वीर शिवाजी के पुत्र का मेरे सामने खड़े होना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, ऐसा कहकर औरंगजेब ने अपने अल्लाह को याद करने के लिए घुटने टेके।
कवि कलश उस समय चैनो से बंधे हुए एक तरफ खड़े थे, लेकिन उन्होंने संभाजी की तरफ देखा और कहा कि हे मराठा राजे! देखिये आलमगीर खुद अपने सिंहासन से उठकर आपके आगे श्रद्धा से नतमस्तक होने आये हैं. कलश ने उन विपरीत परिस्थियों में भी वीरता दिखाते हुए कहा, कि औरंगजेब अपने दुश्मन संभाजी राजे के सामने घुटने टेक रहे हैं।
कवि कलश उस समय चैनो से बंधे हुए एक तरफ खड़े थे, लेकिन उन्होंने संभाजी की तरफ देखा और कहा कि हे मराठा राजे! देखिये आलमगीर खुद अपने सिंहासन से उठकर आपके आगे श्रद्धा से नतमस्तक होने आये हैं. कलश ने उन विपरीत परिस्थियों में भी वीरता दिखाते हुए कहा, कि औरंगजेब अपने दुश्मन संभाजी राजे के सामने घुटने टेक रहे हैं।
इससे औरंगजेब आग बबूला हो गया और उसने उन दोनों को तहखाने में डालने का आदेश दे दिया।औरंगजेब ने शेख निजाम को फ़तेह जंग खान-ए-आजम की उपाधि देने की घोषणा की, साथ ही 50,000 रूपये,एक घोडा,एक हाथी,और 6000 सैनिकों की टुकड़ी देने की घोषणा की। इसके अलावा उसके पुत्र इकलास और भतीजे को भी उपहार और सेना में उच्च पद देने की घोषणा की।
मुगल नायकों ने संभाजी को सुझाव दिया, कि वे यदि अपना पूरा राज्य और सभी किले औरंगजेब को सौप दे, तो औरंगजेब संभाजी की जान बख्श देगा संभाजी ने इस बात से मना कर दिया इसके बाद मुगल अपने उस उद्देश्य पर लौट आये, जिसके लिए उन्होंने भारत पर आक्रमण किया था जिसमे गैर-मुस्लिम को मुस्लिम बनाना और जनता को लूटना और महिलाओं का शील भंग मुख्य कार्य था। संभाजी ये सब देखकर बहुत आहत हो रहे थे ऐसे में संभाजी की हालत देख उन्हें फिर से औरंगजेब का ये सन्देश आया, कि वो यदि इस्लाम अपना लेते हैं, तो उन्हें ऐशो-आराम की जिंदगी दी जायेगी लेकीन संभाजी ने साफ़ कह दिया, कि आलमगीर देश का सबसे बड़ा शत्रु हैं और वो ऐसी कोई संधि नहीं कर सकते, जो उनके राष्ट्र के सम्मान के विपरीत हो।
कठोर यातनाओ के बाद भी ना झुकने पर संभाजी और कलश को कैद से निकालकर घंटी वाली टोपी पहना दी। उनके हाथ में झुनझुना बाँध कर उन्हें ऊँटो से बांध दिया गया और तुलापुर के बाज़ार में घसीटा जाने लगा, मुगल लगातार उनका अपमान कर रहे थे उन्हें जबरदस्ती घसीटा जा रहा था, जिसके कारण झुनझुने की आवाज़ को साफ़ सुना जा सकता था। मुगल अपनी असलियत का परिचय देते हुए, ये सब देखकर क्रूरता से हंस रहे थे और उपहास कर रहे थे। मंत्री कलश भी ऐसे में हार मानाने वालो में से नहीं थे, वो लगातार भगवान का जाप कर रहे थे, जब उनके बाल खीच कर उन्हें इस्लाम कबूलने के लिए कहा जा रहा था, तब भी उन्होंने साफ़ तौर पर इससे ना कह दिया और कहा, कि हिंदुत्व सभी धर्मो से ऊपर सच्चा और शान्ति प्रिय धर्म हैं। मराठाओ के लिए अपने राजा के अपमान को देखना बहुत बड़ी बाध्यता थी।
संभाजी अब भी मुस्कुराते हुए भगवान् शिव की आरधना कर रहे थे और मुगलों की तरफ गर्व भरी दृष्टि से देख रहे थे। इस पर उनकी आँखे निकाल दी गयी और फिर उनके दोनों हाथ भी एक-एक कर काट दिए गए। और ये सब धीरे-धीरे हर दिन संभाजी को प्रताड़ित करने के लिए किया जाने लगा। संभाजी के दिमाग में तब भी अपने पिताजी वीर शिवाजी की यादें ही थी, जो उन्हें प्रतिक्षण इन विपरीत परिस्थिति का सामना करने के लिए प्रेरित कर रही थी। हाथ काटने के भी लगभग 2 सप्ताह के बाद 11 मार्च 1689 को उनका सर भी धड से अलग किया गया। उनका कटा हुआ सर महाराष्ट्र के कस्बों में जनता के सामने चौराहों पर रखा गया, जिससे की मराठाओं में मुगलों का डर व्याप्त हो सके। जबकि उनके शरीर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर तुलापुर के कुत्तों को खिलाया गया। लेकिन ये सब वीर मराठा पर अपना प्रभाव नहीं जमा सके। अंतिम क्षणों तक भगवान शिव का जाप करने वाले बहादुर राजा के इस बलिदान से हिन्दू मराठाओ में अपने राजा के प्रति सम्मान मुगलों के प्रति आक्रोश और बढ़ गया।
गुरू तेगबहादुर की हत्या-
गुरु तेग बहादुर की मुगल बादशाह औरंगजेब से अदावत की शुरुआत कश्मीरी पंडितों को लेकर हुई। कश्मीरी पंडित मुगल शासन द्वारा जबरदस्ती मुसलमान बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। उन्होंने गुरु तेग बहादुर से अपनी रक्षा की गुहार की। गुरु तेग बहादुर ने उन्हें अपनी निगहबानी में ले लिया। मुगल बादशाह इससे बहुत नाराज हुआ। जुलाई 1675 में गुरु तेग बहादुर अपने तीन अन्य शिष्यों के साथ आनंदपुर से दिल्ली के लिए रवाना हुए थे। इतिहासकारों के अनुसार गुरु तेग बहादुर को मुगल फौज ने जुलाई 1875 में गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें करीब तीन-चार महीने तक दूसरी जगहों पर कैद रखने के बाद पिंजड़े में बंद करके दिल्ली लाया गया जो मुगल सल्तनत की राजधानी थी।माना जाता है कि चार नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर को दिल्ली लाया गया था। मुगल बादशाह ने गुरु तेग बहादुर से मौत या इस्लाम स्वीकार करने में से एक चुनने के लिए कहा। उन्हें डराने के लिए उनके साथ गिरफ्तार किए गए उनके तीन ब्राह्मणों अनुयायियों का सिर कटवा दिया गया लेकिन गुरु तेग बहादुर नहीं डरे। उनके साथ गिरफ्तार हुए भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गये,
भाई दयाल दास को तेल के खौलते कड़ाहे में फेंकवा दिया गया
और भाई सति दास को जिंदा जलवा दिया गया।
गुरु तेग बहादुर ने जब इस्लाम नहीं स्वीकार किया तो औरंगजेब ने उनकी भी हत्या करवा दी।
4.औरंगजेब एक बहादुर शासक था
बहादुरी और क्रूरता के बीच बारीक सी रेखा होती है जिसे पार कर औरंगजेब एक क्रूरता की सारी सीमाएं पार कर चूका था औरंगज़ेब ने मुग़ल साम्राज्य का विस्तार दूर तक किया, लेकिन उसे ख़त्म करने के लिए बीज भी उसीने डाले थे। गैर-मुसलमानों के लिए उनके विस्तार और असहिष्णुता ने कई समुदायों को नाराज कर दिया, जिन्होंने उनके शासन के खिलाफ विद्रोह करना शुरू कर दिया। मूल रूप से, गैर-हिंदुओं पर उनके द्वारा लगाए गए जजिया कर ने बड़े पैमाने पर विद्रोह किया। सिखों पर उत्पीड़न के कारण उन्हें तलवार उठानी पड़ी, और वे मुगल पक्ष में सबसे बड़ा कांटा बन जाएंगे।
1669 में जाट विद्रोह करने वाले पहले व्यक्ति थे, और औरंगजेब ने विद्रोह को क्रूरता से अंजाम देने में सफलता पाई और जल्द ही उन्होंने भरतपुर में अपने राज्य की स्थापना की। पूर्व में, लछित बोरोफुकन के नेतृत्व में अहोमों ने लड़ाई लड़ी, पूरे क्षेत्र को पुनः प्राप्त किया, और साराघाट के युद्ध में मुगलों को अपमानजनक हार मिली। सिख गुरु, तेग बहादुर के क्रूर वध ने उन्हें नाराज कर दिया, और गुरु गोविंद सिंह के अधीन, उन्होंने हथियार उठा लिया। गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा की स्थापना की, और जल्द ही सिख मुगल शासन के कट्टर विरोधियों में से एक बन गए। लेकिन किसी भी चीज़ से अधिक डेक्कन अभियान था, जिसने औरंगज़ेब को सचमुच समाप्त कर दिया, और मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हुआ। सबसे पहले, शिवाजी ने अपनी छापामार रणनीति के साथ, मुगल सेना को खदेड़ दिया, औरंगजेब को युद्ध का कोई अंत नहीं होने के लिए परेशान किया, कई किलों को पकड़ने और एक मराठा परिसंघ का निर्माण करने में कामयाब रहा। शिवाजी के पुत्र संभाजी के क्रूरतापूर्ण हत्या के बावजूद, मराठा प्रतिरोध कभी नहीं समाप्त हो गए। राजाराम, बाद में उनकी विधवा ताराबाई और फिर मराठा सरदारों के साथ लगातार मुगलों पर हमला किया। और औरंगजेब को लगातार मराठा विद्रोहों को झेलना पड़ा। 2 दशकों के करीब, औरंगजेब ने दक्कन में समय बिताया, मराठों को अपने अधीन करने की कोशिश की। जिसने उसे थका दिया, उसे अपनी सेना के लगभग 1/5 वें भाग को खो दिया।
देखा जाए तो औरंगज़ेब के जीवन में उसकी सनक ने मुग़ल सल्तनत को बर्बाद कर दिया। करीब 20 वर्षों तक दक्कन में चले युद्ध ने सरकारी खजाना समाप्त कर दिया, उसके सभी सरदार या तो बुड्ढे हो गए या मर गए। मगर विजय श्री नहीं दिखी। अपने उत्कर्ष से मुग़ल सल्तनत जमीन पर आ गिरी और ताश के पत्तों के समान ढह गई। यह औरंगज़ेब की गलती के कारण हुआ।
औरंगज़ेब ने अपने पूर्वजों की राजपूतों से दोस्ती की नीति को तोड़ दिया। वह सदा राजपूत सरदारों को काफिर और इस्लाम का दुश्मन समझता था। इस नीति के चलते राजपूत सरदार उसकी ओर से किसी भी युद्ध में दिलोजान से नहीं लड़ते थे। मुस्लमान सरदारों को इस्लाम की दुहाई देकर औरंगज़ेब भेजता था मगर शराब और शबाब में गले तक डूबें हुए सरदार अपने तम्बुओं में पड़े राजकोष के पैसे बर्बाद करते रहे। अंत में परिणाम वही दाक के तीन पात। मुग़ल साम्राज्य युद्ध पर युद्ध हारता चला गया। अलग अलग प्रान्त में अनेक सरदार उठ खड़े हुए। महाराष्ट्र में वीर शिवाजी, बुंदेलखंड में वीर छत्रसाल, पंजाब में सिख गुरु, राजपुताना में दुर्गादास राठोड़ आदि उठ खड़े हुए। इस प्रतिरोध ने मुग़ल साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दी। अपने साम्राज्य के हर कौने से उठे प्रतिरोध को औरंगज़ेब न संभाल सका
इसलिए जब औरंगज़ेब का निधन हुआ, मुग़ल साम्राज्य अपने चरम पर था, लेकिन इसे सबसे तीव्र विद्रोह भी झेलना पड़ रहा था। मराठा, जाट, सिख, अहोम सभी ने अपने-अपने मजबूत राज्य बना लिए और मुगलों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। मुग़ल साम्राज्य वास्तव में विद्रोहों का सामना नहीं कर सका, और पतन शुरू हुआ।
एक मुहावरा है कि एक झूठ को छुपाने के लिए हज़ार झूठ बोलने पड़ते हैं। औरंगज़ेब को न्यायप्रिय घोषित करने वालों ने तो उसके अत्याचार और मतान्धता को छुपाने के लिए इतने कमजोर साक्ष्य प्रस्तुत किये जो एक ही परीक्षा में ताश के पत्तों के समान उड़ गए। औरंगजेब के समर्थको के
समक्ष यह प्रश्न है कि उनके लिए आदर्श कौन है?
औरंगज़ेब जैसा अत्याचारी या उसके अत्याचार का प्रतिकार करने वाले वीर शिवाजी महाराज।
औरंगजेब की नीतियों को जानने के बाद अगर उसकी तुलना आईएस आईएस चीफ बगदादी से की जाए तो ये गलत नही होगा फर्क इतना है बगदादी की क्रूरता हम वीडियो के जरिये देखते है और औरंगजेब को किताबो मे पढ़ते है जो औरंगजेब से प्रेरित होकर उसकी पूजाकर उसका गुणगान करते है यकीकन बगदादी भी उनके लिए मसीहा ही होगा।
और ऐसे लोगो से हमे अलर्ट रहना चाहिए भविष्य मे ये आईएसआईएस सदस्य बनकर हमारे लिए खतरा बन सकते है बल्कि सरकार को चाहिए ऐसे लोगो पर विशेष रूप से नजर रखे।
देखा जाए तो औरंगज़ेब के जीवन में उसकी सनक ने मुग़ल सल्तनत को बर्बाद कर दिया। करीब 20 वर्षों तक दक्कन में चले युद्ध ने सरकारी खजाना समाप्त कर दिया, उसके सभी सरदार या तो बुड्ढे हो गए या मर गए। मगर विजय श्री नहीं दिखी। अपने उत्कर्ष से मुग़ल सल्तनत जमीन पर आ गिरी और ताश के पत्तों के समान ढह गई। यह औरंगज़ेब की गलती के कारण हुआ।
औरंगज़ेब ने अपने पूर्वजों की राजपूतों से दोस्ती की नीति को तोड़ दिया। वह सदा राजपूत सरदारों को काफिर और इस्लाम का दुश्मन समझता था। इस नीति के चलते राजपूत सरदार उसकी ओर से किसी भी युद्ध में दिलोजान से नहीं लड़ते थे। मुस्लमान सरदारों को इस्लाम की दुहाई देकर औरंगज़ेब भेजता था मगर शराब और शबाब में गले तक डूबें हुए सरदार अपने तम्बुओं में पड़े राजकोष के पैसे बर्बाद करते रहे। अंत में परिणाम वही दाक के तीन पात। मुग़ल साम्राज्य युद्ध पर युद्ध हारता चला गया। अलग अलग प्रान्त में अनेक सरदार उठ खड़े हुए। महाराष्ट्र में वीर शिवाजी, बुंदेलखंड में वीर छत्रसाल, पंजाब में सिख गुरु, राजपुताना में दुर्गादास राठोड़ आदि उठ खड़े हुए। इस प्रतिरोध ने मुग़ल साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दी। अपने साम्राज्य के हर कौने से उठे प्रतिरोध को औरंगज़ेब न संभाल सका
इसलिए जब औरंगज़ेब का निधन हुआ, मुग़ल साम्राज्य अपने चरम पर था, लेकिन इसे सबसे तीव्र विद्रोह भी झेलना पड़ रहा था। मराठा, जाट, सिख, अहोम सभी ने अपने-अपने मजबूत राज्य बना लिए और मुगलों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। मुग़ल साम्राज्य वास्तव में विद्रोहों का सामना नहीं कर सका, और पतन शुरू हुआ।
एक मुहावरा है कि एक झूठ को छुपाने के लिए हज़ार झूठ बोलने पड़ते हैं। औरंगज़ेब को न्यायप्रिय घोषित करने वालों ने तो उसके अत्याचार और मतान्धता को छुपाने के लिए इतने कमजोर साक्ष्य प्रस्तुत किये जो एक ही परीक्षा में ताश के पत्तों के समान उड़ गए। औरंगजेब के समर्थको के
समक्ष यह प्रश्न है कि उनके लिए आदर्श कौन है?
औरंगज़ेब जैसा अत्याचारी या उसके अत्याचार का प्रतिकार करने वाले वीर शिवाजी महाराज।
औरंगजेब की नीतियों को जानने के बाद अगर उसकी तुलना आईएस आईएस चीफ बगदादी से की जाए तो ये गलत नही होगा फर्क इतना है बगदादी की क्रूरता हम वीडियो के जरिये देखते है और औरंगजेब को किताबो मे पढ़ते है जो औरंगजेब से प्रेरित होकर उसकी पूजाकर उसका गुणगान करते है यकीकन बगदादी भी उनके लिए मसीहा ही होगा।
और ऐसे लोगो से हमे अलर्ट रहना चाहिए भविष्य मे ये आईएसआईएस सदस्य बनकर हमारे लिए खतरा बन सकते है बल्कि सरकार को चाहिए ऐसे लोगो पर विशेष रूप से नजर रखे।
Aap ne 90 percent is turk lutere ka ithaas padhige to proud feel how whole his life all he faced defeat and humilation in every venture he go on after murdering his brother dara shikoh....had marathas generals later after his demise control their materialistic lust that era would have been the glorious chapter of our entire history
ReplyDeleteWho according to general perception was the strongest hindu adversary of this turk lutera aurangzeb in that era..?(general knowledge test sort)
ReplyDeleteAdversary of aurangjeb -Mainly shiva ji after him sambha ji and durgadas rathore and I heard about raja ram jaat who took direct revange with aorangjeb but history me kahi jyada info inki nahi hai. Mujhe by marks reply dijiye mai bhi dekhu mera history knowledge.
DeleteWow.. zero marks for this answer.. rest historyy ki knowledge mujhe bhii zero number paake mile hai .. can you complete the full name without google use.. if bhgta is singh then what is sukhdev..... And rajguru....... Is
DeleteJust to show the state of hindu rashtra sseeks unity..(wwe ask these simple question bcoz they are much more highlighted in public glare) and question is not posted as gyaani but jigyaasu form .. as always seeker of truth
Maine pahle vala reply bhi without google help ke diya.
Deletelekin sukhdev ka mujhe idea nahi lekin sayad rajguru brahmin the
Vaise maine thoda thoda british era ke pahle ka history study kiya hai
Aor aapne sahi jawaab to dijiye nahi pahle vale question ka ??
Aap ke pehle question ka jawab is dusre trick question me hi thha baisa hukum.. par usko generally le gaye, rest recent topics par focus karne ke karen thoda little backlog me chala gaya hai woh topic.... If they were adversary then how come owaisi is dancing in aurangabad not sambajinagar
DeleteI said these all were Adversary (Rival) of aurangjeb not of hindu ab marks dijiye :))
ReplyDeleteAurangzeb has rival in form of brothers and son also.. but for strongest adversary the more you read the lot you the more you know.. even samarth gururamdas is much adversay then this lot as most of them you mentuon start fighting under their guidance
ReplyDeleteMujhe lagta hai aap 9/10 marks to mujhe dena chahiye aapko
ReplyDeleteBaisa hukum ji Samartrh guru ramdas answer nahi hai to youu are nowhere close, so zero for this.. if true history taken in consideration.. otherwise 11 out of 10 as you just put new discovery in the inventory of adversaries
ReplyDeleteMaine to unko aisa nahi kaha mujhe pta hai vo shiva jinke guru the maine 9/10 isliye kaha kyuki koi bhi examiner full marks nahi deta
ReplyDeleteLekin isbaar to chamatkar ho gayaa 11/10 :D
Hamare examiner dete thhe baisa hukum ji
ReplyDeleteLucky you are !
ReplyDeleteThey feel the same under our prabhu ji....:))
ReplyDelete:))
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