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Tuesday, 1 April 2025

एक राजा बहुत दिनों बाद अपने बगीचे में सैर करने गया, पर वहां पहुँच उसने देखा कि सारे पेड़-पौधे मुरझाए हुए हैं। राजा बहुत चिंतित हुआ, उसने इसकी वजह जानने के लिए सभी पेड़-पौधों से एक-एक करके सवाल पूछने लगा। 


ओक वृक्ष ने कहा, वह मर रहा है क्योंकि वह देवदार जितना लंबा नहीं है। राजा ने देवदार की और देखा तो उसके भी कंधे झुके हुए थे क्योंकि वह अंगूर लता की भांति फल पैदा नहीं कर सकता था। अंगूर लता इसलिए मरी जा रही थी कि वह गुलाब की तरह खिल नहीं पाती थी। 


राजा थोड़ा आगे गया तो उसे एक पेड़ नजर आया जो निश्चिंत था, खिला हुआ था और ताजगी में नहाया हुआ था। 


राजा ने उससे पूछा, “बड़ी अजीब बात है, मैं पूरे बाग़ में घूम चुका लेकिन एक से बढ़कर एक ताकतवर और बड़े पेड़ दुखी हुई बैठे हैं लेकिन तुम इतने प्रसन्न नज़र आ रहे हो... ऐसा कैसे संभव है ?” 


पेड़ बोला, “महाराज, बाकी पेड़ अपनी विशेषता देखने की बजाय स्वयं की दूसरों से तुलना कर दुखी हैं, जबकि मैंने यह मान लिया है कि जब आपने मुझे रोपित कराया होगा तो आप यही चाहते थे कि मैं अपने गुणों से इस बागीचे को सुन्दर बनाऊं, यदि आप इस स्थान पर ओक, अंगूर या गुलाब चाहते तो उन्हें लगवाते! इसीलिए मैं किसी और की तरह बनने की बजाय अपनी क्षमता के अनुसार श्रेष्ठतम बनने का प्रयास करता हूँ और प्रसन्न रहता हूँ।” 


हम अक्सर दूसरों से अपनी तुलना कर स्वयं को कम आंकने की गलती कर बैठते हैं। दूसरों की विशेषताओं से प्रेरित होने की बजाय हम अफ़सोस करने लगते हैं कि हम उन जैसे क्यों नहीं हैं। 


हम सभी में कुछ ऐसी योग्यता है, जो अन्य लोगो में नहीं है। जरुरत है तो सिर्फ उसे पहचानने की और उस गुणवत्ता को और विकसित कर अपने क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की। अगर हम यकीन कर ले की हम सफल हो सकते है,तो इससे दूसरे भी हम पर विश्वास करने लगते है। इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी खुद का मूल्यांकन कम करने की होती है। हमें अपनी कमिया पता होना अच्छी बात है। इनसे हमें यह पता चलता है की हमें किस क्षेत्र में सुधार करना है। 


हमेशा अपने गुणों,अपनी योग्यताओं पर ध्यान केन्द्रित करें। यह जान लें,आप जितना समझते हैं,आप उससे कहीं बेहतर हैं। बड़ी सफलता उन्हीं लोगों का दरवाजा खटखटाती है जो लगातार खुद के सामने ऊंचे लक्ष्य रखते हैं,जो अपनी कार्यक्षमता सुधारना चाहते हैं..!!


Sunday, 30 March 2025

शक्ति

प्रायः सभी पुराण तथा विद्वान् ऐसा कहते हैं कि ब्रह्मामें सृष्टि करनेकी शक्ति, विष्णुमें पालन करनेकी शक्ति, शिवमें संहार करनेकी शक्ति, सूर्यमें प्रकाश करनेकी शक्ति तथा शेष और कच्छपमें पृथ्वीको धारण करनेकी शक्ति स्वभावतः विद्यमान रहती है 


इस प्रकार एकमात्र वे आद्याशक्ति ही स्वरूपभेद से सभी मे व्या प्त रहती हैं। वे ही अग्निमें दाहकत्व शक्ति तथा वायुमें संचारशक्ति हैं 


कुण्डलिनी शक्तिके बिना शिव भी 'शव' बन जाते हैं। विद्वान् लोग शक्तिहीन जीवको निर्जीव एवं असमर्थ कहते हैं 


अतएव हे मुनिजनो ! ब्रह्मासे लेकर तृणपर्यन्त सभी पदार्थ इस संसारमें शक्तिके बिना सर्वथा हेय हैं; क्योंकि स्थावर-जंगम सभी जीवोंमें वह शक्ति ही काम करती है। यहाँतक कि शक्तिहीन पुरुष शत्रुपर विजयी होने, चलने-फिरने तथा भोजन करनेमें भी सर्वथा असमर्थ रहता है। 


वह सर्वत्र व्याप्त रहनेवाली आदिशक्ति ही 'ब्रह्म' कहलाती है। बुद्धिमान् मनुष्यको चाहिये कि वह अनेक प्रकारके यत्नोंद्वारा सम्यक् रूपसे उसकी उपासना करे तथा उसका चिन्तन करे 


भगवान् विष्णुमें सात्त्विकी शक्ति रहती है, जिसके बिना वे अकर्मण्य हो जाते हैं। ब्रह्मामें राजसी शक्ति है, वे भी शक्तिहीन होकर सृष्टिकार्य नहीं कर सकते और शिवमें तामसी शक्ति रहती है, जिसके बलपर वे संहार-कृत्य सम्पादित करते हैं। इस विषयपर मनसे बार-बार विचार करके तर्क-वितर्क करते रहना चाहिये 


शक्ति ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्डकी रचना करती है, सबका पालन करती है और इच्छानुसार इस चराचर जगत्का संहार करती है । 


उसके बिना विष्णु, शिव, इन्द्र, ब्रह्मा, अग्नि, सूर्य और वरुण कोई भी अपने-अपने कार्यमें किसी प्रकार भी समर्थ नहीं हो सकते । 


वे देवगण शक्तियुक्त होनेपर ही अपने-अपने कार्योंको सम्पादित करते रहते हैं। प्रत्येक कार्य-कारणमें वही शक्ति प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है 


मनीषी पुरुषोंने शक्तिको सगुणा और निर्गुणा भेदसे दो प्रकारका बताया है। सगुणा शक्तिकी उपासना आसक्तजनों और निर्गुणा शक्तिकी उपासना अनासक्तजनोंको करनी चाहिये 


धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इन चारों पदार्थोंकी - स्वामिनी वे ही निर्विकार शक्ति हैं। विधिवत् पूजा करनेसे वे सब प्रकारके मनोरथ पूर्ण करती हैं । 


सदा मायासे घिरे हुए अज्ञानी लोग उस महाशक्तिको 2 जान नहीं पाते। यहाँतक कि कुछ विद्वान् पुरुष उन्हें जानते हुए भी दूसरोंको भ्रममें डालते हैं। कुछ मन्दबुद्धि पण्डित अपने उदरकी पूर्तिके लिये कलिसे प्रेरित होकर  अनेक प्रकारके पाखण्ड करते हैं । 


हे महाभागो ! इस कलिमें बहुत प्रकारके - अवैदिक तथा भेदमूलक धर्म उत्पन्न होते हैं; दूसरे युगोंमें नहीं होते । 


स्वयं भगवान् विष्णु भी अनेक वर्षोंतक कठोर तप करते हैं और ब्रह्मा तथा शिवजी भी ऐसा ही करते - हैं। ये तीनों देवता निश्चित ही किसीका ध्यान करते हुए कठिन तपस्या करते रहते हैं । 


इसी प्रकार अपनी इच्छाओंकी पूर्तिके लिये ब्रह्मा, विष्णु, महेश- ये तीनों ही देवता अनेक प्रकारके यज्ञ सदा करते हैं। वे उन पराशक्ति, ब्रह्म नामवाली परमात्मिका देवीको नित्य एवं सनातन मानकर सर्वदा मनसे उन्हींका ध्यान करते हैं । 


हे मुनिश्रेष्ठ ! सब शास्त्रोंका यही निश्चय जानना चाहिये कि दृढनिश्चयी विद्वानोंके द्वारा वे आदिशक्ति ही सदा सेवनीय हैं । 


यह गुप्त रहस्य मैंने कृष्णद्वैपायनसे सुना है जिसे उन्होंने नारदजीसे, नारदजीने अपने पिता ब्रह्माजीसे और ब्रह्माजीने भी भगवान् विष्णुके मुखसे सुना था । 


इसलिये विद्वान् पुरुषोंको चाहिये कि वे न तो किसी अन्यकी बात सुनें और न मानें तथा दृढप्रतिज्ञ होकर सर्वदा शक्तिकी ही उपासना करें । 


शक्तिहीन असमर्थ पुरुषका व्यवहार तो प्रत्यक्ष ही देखा जाता है [कि वह कुछ कर नहीं पाता]। इसलिये सर्वव्यापिनी आदिशक्ति जगज्जननी भगवतीको ही जाननेका प्रयत्न करना चाहिये ।




Tuesday, 18 March 2025

चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैं उन सारी जगहों पर जहाँ बोलना जरूरी था बढ़ती जा रही हैं वे जैसे बढ़ते बाल, जैसे बढ़ते हैं नाखून , और आश्चर्य कि किसी को वह गड़ती तक नहीं. 

बट इटस मी कबतक चुप रहू ?? 🙆

Monday, 17 February 2025

अपना ख्याल रखना

क्या भागदौड़ भरी जिंदगी ने आपका चैन छीन  लिया है?? 🤔🤔🤔🤔 


घंटों मेहनत करने के बाद भी आप तनाव 🤯 और एंग्‍जाइटी🥵 में जी रहे हैं ??? 


इसका सीधा असर आपकी रात की नींद पर पड़ रहा है ???? 🥱🥱🥱🥱



आजकल लोगों का ज्‍यादातर समय अपने काम और परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करने में चला जाता है। ऐसे में उनके पास पर्याप्त नींद लेने के लिए समय ही नहीं बचता। 

जिसका सीधा असर उनकी सेहत पर पड़ता है। लेकिन तनावभरी जिन्‍दगी में थोड़ा आराम करना भी जरूरी है। विशेषज्ञों के अनुसार, एक व्यक्ति को हर दिन ज्‍यादा नहीं, तो कम से कम 7-9 घंटे नींद लेने की जरूरत होती है।

नेशनल स्‍लीप फाउंडेशन की मानें तो अगर आप हेल्‍दी जीवन जीना चाहते हैं तो कम से कम 7 घंटे की रात की नींद बहुत जरूरी है।

कम सोने से ओबेसिटी यानी वजन बढ़ने की समस्‍या हो सकती है। पूरी नींद लेने पर आपकी याददाश्‍त शक्ति मजबूत रहती है और आप भूलते नहीं। ऐसा करने से एथलेटिक और फिजिकल परफॉर्मेंस बढ़ा रहता है।  रात में सात घंटे सोने से हार्ट से संबंधित बीमारियों को खतरा कम रहता है। नींद पूरी ना लें तो इससे डायबिटीज टाइप टू का खतरा पैदा हो सकता है। ना सोने से डिप्रेशन, एंग्‍जायटी जैसी मेंटल हेल्‍थ से जुड़ी समस्‍या हो सकती है


और सर दर्द 

अगर सर दर्द ने आपको परेशान कर रखा है तो बुजुर्गो का अजमाया हुआ नुस्का है दूध मे जलेबिया भीगोकर सूर्योदय से पूर्व 21 -41 तक खाना और फिर भूल जाना ये सर दर्द  कोशिश करे की पेन किलर का प्रयोग कम करे क्योकि इसके दुष्परिणाम होते है । जैसे हेयरफाल,ग्रेयिंग । 😱

बाकी दिमाग का उपयोग और गुस्सा कम करे। 🙏



     उदास लम्हों  की न कोई याद रखना । 

तूफान मे भी वजूद अपना संभाल कर रखना ।।

    किसी की जिंदगी की खुशी हो आप ।

  यही सोचकर आप अपना ख्याल रखना ।।

Sunday, 5 January 2025

The Game Of Warriors !!!!


लव स्टोरी ऐसी होनी चाहिए,


जिसकी शुरुआत हो, लेकिन अंत कभी ना हो। 


जिसमें मिलन  हो, परंतु जुदाई ना हो। 


जिसमें केवल खुशी हो, कहीं गम ना हो। 


जिसमें समर्पण हो, स्वार्थ ना हो। 


जिसमें वासना ना हो, इज्जत हो। 


जिसमें प्रेम हो, कामना ना हो। 


जिसका एहसास दिल को सुकून देने वाला हो, हृदय को भेदने वाला ना हो। 


जिसका अनुभव सुखद हो, दुखद ‌परिणाम ना हो। 


जिसको सुनाते हुए गर्व का एहसास हो, शर्मिंदगी का नहीं। 


जिसमें विश्वास हो,शक के लिए कहीं जगह ना हो। 


लव स्टोरी ऐसी होनी चाहिए, जिसमें खुशी के आंसू हो गम के नहीं। 


जिसमे सिर्फ इंतजार ही न हो, बल्कि एक सुखद अंजाम भी हो । 


जिसमे सबका साथ हो, आशीर्वाद हो, कोई नाराज न हो ।


जिसमे मुसीबतो से डर कर भागने वाले नही, बल्कि दोनो सामना करने को तैयार हो । 


जो जीवन में कभी याद आये तो दिल मे दुख और आंखों में नफरत ना हो बल्कि होंठों पर मुस्कान हो। काश !!!!!! की मै कह सकू कि सौभाग्य से हम भी ऐसी ही एक प्रेम कहानी के पात्र हैं। ........




 एक रिश्ते को बनाये रखने के लिए प्रयास करो

प्रयास नही कर सकते, तो लिखो 

लिख नही सकते,  तो बोलो 

बोल नही सकते तो, साथ दो 

साथ नही दे सकते तो, जो प्रयास कर रहे है उनका मनोबल न गिराए क्योकि वो आपके हिस्से की लड़ाई लड़ रहे है ।

Right is always right even if no one with it.
Wrong is always wrong even if everyone  with it.

              🙏 (( जिंदा अगर हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है ।। )) 🙏

Sunday, 9 June 2024

क्या गंगा मे नहाने से पाप धुल जाते है ??





गंगा में नहाने से पाप धुल  जाते हैं ऐसा हमें बचपन से सिखाया गया और धर्मशास्त्र में भी लिखा गया है। गंगा पाप नाशिनी है और इसमें स्नान करने से सारे पाप धुल जाते है। जब माता पार्वती ने शिवजी से पूछा कि जब लोग गंगा में स्नान करते हैं तो उनके सारे पाप धुल जाते हैं। जो नित्य गंगा स्नान करता है तो उसे कोई कष्ट नहीं होना चाहिए। इसका जवाब शिवजी ने बड़े आसानी से दिया और कहा कि किस प्रकार गंगा में स्नान करने से सारे पाप नष्ट होते हैं आइए जानते हैं शिव और पार्वती का गंगा जी के बारे में संवाद में। 


एक समय शिव जी महाराज पार्वती के साथ हरिद्वार में घूम रहे थे। पार्वती जी ने देखा कि सहस्त्रों मनुष्य गंगा में नहा नहाकर 'हर-हर' कहते चले जा रहे हैं परंतु प्रायः सभी दुखी और पाप परायण हैं। पार्वती जी ने बड़े आश्चर्य से शिव जी से पूछा कि 'हे देव! गंगा में इतनी बार स्नान करने पर भी इनके पाप और दुखों का नाश क्यों नहीं हुआ? क्या गंगा में सामर्थ्य नहीं रही?' 


शिवजी ने कहा 'प्रिये! गंगा में तो वही सामर्थ्य है, परंतु इन लोगों ने पापनाशिनी गंगा में स्नान ही नहीं किया है तब इन्हें लाभ कैसे हो?" 


पार्वती जी ने आश्चर्य से कहा कि "स्नान कैसे नहीं किया? सभी तो नहा-नहा कर आ रहे हैं? अभी तक इनके शरीर भी नहीं सूखे हैं।' 


शिवजी ने कहा, 'ये केवल जल में डुबकी लगाकर आ रहे हैं। तुम्हें कल इसका रहस्य समझाऊंगा।' 


दूसरे दिन बड़े जोर की बरसात होने लगी। गलियां कीचड़ से भर गईं। एक चौड़े रास्ते में एक गहरा गड्डा था, चारों ओर लपटीला कीचड़ भर रहा था। 


शिवजी ने लीला से ही वृद्ध रूप धारण कर लिया और दीन-विवश की तरह गड्ढे में जाकर ऐसे पड़ गए, जैसे कोई मनुष्य चलता-चलता गड्ढे में गिर पड़ा हो और निकलने की चेष्टा करने पर भी न निकल पा रहा हो। 


पार्वती जी को उन्होंने यह समझाकर गड्ढे के पास बैठा दिया कि 'देखो, तुम लोगों को सुना-सुनाकर यूं पुकारती रहो कि मेरे वृद्ध पति अकस्मात गड्ढे में गिर पड़े हैं कोई पुण्यात्मा इन्हें निकालकर इनके प्राण बचाए और मुझ असहाय की सहायता करे। 


शिवजी ने यह और समझा दिया कि जब कोई गड्ढे में से मुझे निकालने को तैयार हो तब इतना और कह देना कि 'भाई, मेरे पति सर्वथा निष्पाप हैं इन्हें वही छुए जो स्वयं निष्पाप हो यदि आप निष्पाप हैं तो इनके हाथ लगाइए नहीं तो हाथ लगाते ही आप भस्म हो जाएंगे।' 


पार्वती जी 'तथास्तु' कह कर गड्ढे के किनारे बैठ गईं और आने-जाने वालों को सुना-सुनाकर शिवजी की सिखाई हुई बात कहने लगीं। गंगा में नहाकर लोगों के दल के दल आ रहे हैं। सुंदर युवती को यूं बैठी देख कर कइयों के मन में पाप आया, कई लोक लज्जा से डरे तो कइयों को कुछ धर्म का भय हुआ, कई कानून से डरे। 


कुछ लोगों ने तो पार्वती जी को यह भी सुना दिया कि मरने दे बुड्ढे को क्यों उसके लिए रोती है? आगे और कुछ दयालु सच्चरित्र पुरुष थे, उन्होंने करुणावश हो युवती के पति को निकालना चाहा परंतु पार्वती के वचन सुनकर वे भी रुक गए। 


उन्होंने सोचा कि हम गंगा में नहाकर आए हैं तो क्या हुआ, पापी तो हैं ही, कहीं होम करते हाथ न जल जाएं। 


बूढ़े को निकालने जाकर इस स्त्री के कथनानुसार हम स्वयं भस्म न हो जाएं। किसी का साहस नहीं हुआ। सैंकड़ों आए, सैंकड़ों ने पूछा और चले गए। संध्या हो चली। शिवजी ने कहा, 'पार्वती! देखा, आया कोई गंगा में नहाने वाला?' 


थोड़ी देर बाद एक जवान हाथ में लोटा लिए हर-हर करता हुआ निकला, पार्वती ने उसे भी वही बात कही। युवक का हृदय करूणा से भर आया। उसने शिवजी को निकालने की तैयारी की। पार्वती ने रोक कर कहा कि 'भाई यदि तुम सर्वथा निष्पाप नहीं होओगे तो मेरे पति को छूते ही जल जाओगे।' 


उसने उसी समय बिना किसी संकोच के दृढ़ निश्चय के साथ पार्वती से कहा कि 'माता! मेरे निष्पाप होने में तुझे संदेह क्यों होता है? देखती नहीं मैं अभी गंगा नहाकर आया हूं। भला, गंगा में गोता लगाने के बाद भी कभी पाप रहते हैं? तेरे पति को निकालता हूं।' 


युवक ने लपककर बूढ़े को ऊपर उठा लिया। शिव-पार्वती ने उसे अधिकारी समझकर अपना असली स्वरूप प्रकट कर उसे दर्शन देकर कृतार्थ किया। शिवजी ने पार्वती से कहा कि 'इतने लोगों में से इस एक ने ही गंगा स्नान किया है।' 


इसी दृष्टांत के अनुसार जो लोग बिना श्रद्धा और विश्वास के केवल दंभके लिए गंगा स्नान करते हैं उन्हें वास्तविक फल नहीं मिलता परंतु इसका यह मतलब नहीं कि गंगा स्नान व्यर्थ जाता है। विश्वास के साथ किए गए गंगा स्नान का मिलता है वास्तविक फल। कहने का तात्पर्य है कि किसी भी चीज को प्राप्त करने के लिए आपको सच्चे मन से श्रद्धा भाव से एवं त्याग से कोई कार्य करने पर फल अवश्य अच्छा मिलता है। लेकिन लोभरहित एवं ईर्ष्या भाव कोई अच्छा कार्य करने पर भी उसका फल अच्छा नहीं होता है।


Wednesday, 8 May 2024

🙏🏻🙈🙊🙏🏻


   👀 आ गए तुम!! 👀

  🚪द्वार खुला है  🈁

अंदर आ जाओ.. 👣👣

पर तनिक ठहरो 🤚🤚

ड्योढी पर पड़े पायदान पर

अपना अहं झाड़ आना.. 😏😎

मधुमालती लिपटी है मुंडेर से अपनी नाराज़गी वहीँ उड़ेल आना .. 😡🤬🤮

तुलसी के क्यारे में मन की चटकन चढ़ा आना.. 🤯🤕🥴

अपनी व्यस्ततायें बाहर खूंटी पर ही टांग 🦥🦥

जूतों संग हर नकारात्मकता उतार आना.. ❌🐙🦞🔥

बाहर किलोलते बच्चों से थोड़ी शरारत माँग लाना..  😜🙃🤗👻🌝

वो गुलाब के गमले में मुस्कान लगी है तोड़ कर पहन आना.. 😊😃🤩😁

लाओ अपनी उलझने मुझे थमा दो. 🤝

तुम्हारी थकान पर मनुहारों का पँखा झल दूँ.. 🌬️

देखो शाम बिछाई है मैंने  🌌🎑🌇🌠🎆

सूरज क्षितिज पर बाँधा है 🌅🌠

लाली छिड़की है नभ पर.. 🌅🌄

प्रेम और विश्वास की मद्धम आंच पर चाय चढ़ाई है ☕☕

घूँट घूँट पीना..  🍟☕

सुनो इतना मुश्किल भी नहीं हैं साथ मिलकर जीना…. 👫🏻

विमल विनम्रता का अमृत नित नित पीना 🕊️🕊️🕊️🕊️


     माफी फॉर कापी 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙊🙈

Sunday, 24 March 2024

एक ओर निस्वार्थ भक्ति और दूसरी ओर शक्ति का अहंकार

  मै सच की राह पर हूं मैने कुछ गलत नही किया है फिर दूसरे कितने ही शक्तिशाली क्यो न हो सफलता मुझे ही मिलेगी । और इसकेलिए भीड़ की जरूरत नही मै अकेले ही काफी हूं । 

 
एक समय की बात है कि एक छोटा सा लड़का था जिसका नाम प्रहलाद था। वह भगवान में बहुत आस्था रखता था और भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। उसके पिता राजा थे। उनका नाम हिरण्यकश्यप था और वे बहुत बड़े नास्तिक थे। वे भगवान को नहीं मानते थे। उसके पिता बहुत अकडू और घमंडी थे। वे खुद से बढ़कर किसी को भी नहीं मानते थे। जब उन्हें यह बात पता चली कि उनका बेटा प्रहलाद किसी विष्णु नाम के देवता की बहुत पूजा करता है, तो उन्हें यह बात बिलकुल पसंद नहीं आई। उन्होंने प्रहलाद को बहुत बार समझाया कि वह विष्णु की पूजा करना छोड़ दे लेकिन प्रहलाद नहीं माना, क्योंकि उसके तो तन-मन व रोम-रोम में विष्णुजी बसे थे ।
इस बात से आहत होकर हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद को सबक सिखाना चाहते थे। जब सारी कोशिशों के बाद भी हिरण्यकश्यप प्रहलाद को विष्णु की भक्ति करने से रोक और उसे बदल नहीं पाए तो उन्होंने उसे मार देने की सोची। फिर उन्होंने एक दिन प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली। होलिका को भगवान शंकर से वरदान मिला हुआ था। उसे वरदान में एक ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। होलिका उस चादर को ओढ़कर और प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन वह चादर उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ गई और प्रहलाद की जगह होलिका ही जल गई। इस तरह हिरण्यकश्यप और होलिका के गलत इरादे पूरे नहीं हो पाए ।


तो प्रहलाद की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि भक्ति में बड़ी शक्ति होती है। अगर आप बिना डरे भगवान में पूरा विश्वास बनाए रखेंगे तो वे आपकी हमेशा सहायता करेंगे और आपको हर मुश्किल से बाहर निकालेंगे।
 

Saturday, 9 September 2023

महालया


पश्चिम बंगाल या पुराने असम मे मातारानी की भव्य पूजा के साथ ब्रिटिश और भारतीय परिवारो की मित्रता 







हर साल शारदीय नवरात्रि के समय पश्चिम बंगाल में धूमधाम से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है ।दुर्गा पूजा के समय 9 दिनों तक मां शक्ति की आराधना की जाती है। पश्चिम बंगाल में जगह-जगह भव्य पंडाल तैयार किए जाते हैं। बंगाल के विभिन्न शहरों में होने वाली दुर्गा पूजा की रौनक देखती ही बनती है। बड़े-बड़े पंडाल और आकर्षक मूर्तियों के साथ शानदार तरीके से बंगाली समाज देवी दुर्गा की पूजा करता है। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा आयोजित करने की शुरुआत को लेकर कई कहानियां हैं। पहली बार दुर्गा पूजा कैसे हुई, क्यों आयोजित की गई, इसको लेकर कई दिलचस्प किस्से हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में। 

प्लासी के युद्ध के बाद पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन
कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की शुरुआत 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद हुई थी। प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की जीत पर भगवान को धन्यवाद देने के लिए पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया था। आपको बता दें कि प्लासी के युद्ध में बंगाल के शासक नवाब सिराजुद्दौला की हार हुई थी। बंगाल में मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर गंगा किनारे प्लासी नाम की जगह है। यहीं पर 23 जून 1757 को नवाब की सेना और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ।ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में युद्ध लड़ा और नवाब सिराजुद्दौला को शिकस्त दी। हालांकि युद्ध से पहले ही साजिश के जरिए रॉबर्ट क्लाइव ने नवाब के कुछ प्रमुख दरबारियों और शहर के अमीर सेठों को अपने साथ कर लिया था। 

कहा जाता है कि युद्ध में जीत के बाद रॉबर्ट क्लाइव ईश्वर को धन्यवाद देना चाहता था लेकिन युद्ध के दौरान नवाब सिराजुद्दौला ने इलाके के सारे चर्च को नेस्तानाबूद कर दिया था। उस वक्त अंग्रेजों के हिमायती राजा नव कृष्णदेव सामने आए। उन्होंने रॉबर्ट क्लाइव के सामने भव्य दुर्गा पूजा आयोजित करने का प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव पर रॉबर्ट क्लाइव भी तैयार हो गए थे। उसी वर्ष पहली बार कोलकाता में दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया था। 

पूरे कोलकाता को शानदार तरीके से सजाया गया। कोलकाता के शोभा बाजार के पुरानी हवेली में दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ था। इसमें कृष्णनगर के महान चित्रकारों और मूर्तिकारों को बुलाया गया थाा। भव्य मूर्तियों का निर्माण हुआ था। बर्मा और श्रीलंका से नृत्यांगनाएं बुलवाई गई थीं। रॉबर्ट क्लाइव ने हाथी पर बैठकर समारोह का आनंद लिया था। इस आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से चलकर लोग कोलकाता आए थे। इस आयोजन के प्रमाण के तौर पर अंग्रेजों की एक पेटिंग मिलती है, जिसमें कोलकाता में हुई पहली दुर्गा पूजा को दर्शाया गया है. 

कहा जाता है कि राजा नव कृष्णदेव के महल में भी एक पेंटिंग लगी थी। इसमें कोलकाता के दुर्गा पूजा आयोजन को चित्रित किया गया था। इसी पेंटिंग की बुनियाद पर पहली दुर्गा पूजा की कहानी कही जाती है। 1757 के दुर्गा पूजा आयोजन को देखकर अमीर जमींदार भी अचंभित हो गए थे। बाद के वर्षों में जब बंगाल में जमींदारी प्रथा लागू हुई तो इलाके के अमीर जमींदार अपना रौब दिखाने के लिए हर साल भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन करते थे। इस तरह की पूजा को देखने के लिए दूर-दूर के गांवों से लोग आते थे। धीरे-धीरे दुर्गा पूजा लोकप्रिय होकर सभी जगहों पर होने लगी।


जानिए क्या है महालया 







बंगाल की धरती पर जिस तरह दुर्गा पूजा का महत्व रहा है, उसी तरह महालया को भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। बंगाल में महालया का हर कोई इंतजार करता है क्योंकि यहां पुत्री के रूप में मां भवानी को बुलाया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा की प्रतिमा पर रंग चढ़ाया जाता है, उनकी आंखें बनाई जाती हैं और प्रतिमा समेत मंडप को सजाया जाता है। मां दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले कारीगर अपना कार्य पहले ही शुरू कर लेते हैं लेकिन महालया के दिन मूर्ति को अंतिम रूप दिया जाता है। महालया के दिन पितृपक्ष समाप्त होते हैं और इसी दिन से देवी पक्ष की शुरुआत हो जाती है। पितृपक्ष की तरह ही देवी पक्ष भी 15 दिन का होता है, जिसमें से 10 दिन नवरात्रि के होते हैं और 15वें दिन लक्ष्मी पूजा के साथ देवी पक्ष समाप्त हो जाता है अर्थात शरद पूर्णिमा के साथा देवी पक्ष समाप्त होता है। 

महत्व 
वैसे तो महालया बंगालियों का पर्व है लेकिन इसे देशभर में मनाया जाता है। बताया जाता है कि महिषासुर नामक राक्षस का अंत करने के लिए महालया के दिन ही देवी-देवताओं ने मां दुर्गा का आह्वान किया था। महालया अमावस्या की सुबह को पितर पृथ्वी लोक से विदाई लेते हैं और शाम के समय मां दुर्गा अपने योगनियां और पुत्र गणेश व कार्तिकेय के साथ पृथ्वी पर पधारते हैं। इसके बाद नौ दिन घर-घर में रहकर अपनी कृपा भक्तों पर बनाए रखती हैं। बंगाल में दुर्गा पूजा का इंतजार रहता है और इस दिन देवी दुर्गा की कहानियों को बच्चों को सुनाया जाता है।
नवरात्रि के नौ दिनों में माता पार्वती अपने शक्तियों और नौ रूपों के साथ अपने घर अर्थात पृथ्वी लोक पर आती हैं। मां अपने साथ अपनी सहचर योगनियां और पुत्र गणेश व कार्तिकेय भी पृथ्वी पर पधारते हैं। पृथ्वी देवी पार्वती का मायका है और माता नवरात्रि के नौ दिनों में अपने मायके आती हैं। पृथ्वी पर रहते हुए वह लोगों के कष्टों को दूर करती हैं और आसुरी शक्तियों का भी नाश करती हैं। माता पार्वती हिमालय की पुत्री हैं और हिमालय पृथ्वी के राजा थे इसलिए बंगाल में महालया के दिन पुत्री रूप में माता को बुलाया जाता है और कन्या भोज करवाया जाता है। माता पार्वती की शादी जगतपिता भोलेनाथ के साथ हुई है इसलिए माता पार्वती को जगत माता कहा जाता है। 

पार्वती माता का महात्म्य 
माता पार्वती अपने मायके आने के लिए महालया के दिन कैलाश पर्वत पर से विदा लेती हैं। इसलिए महालया के दिन माता की अगवानी में वंदना की जाती है और स्वागत के लिए खास प्रार्थना की जाती है। इसके अगले दिन से यानी नवरात्रि से मां घर-घर में विराजती हैं। मां जब-जब नवरात्रि में आती हैं तब उनका अलग होता है। इस बार सोमवार से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं इसलिए इस बार मां हाथी पर सवार होकर धरती पर आएंगी।
पितरों को किया जाता है विदा - 

महालया पितृपक्ष का आखिरी दिन होता है। इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन भूले बिछड़े पितरों का श्राद्ध किया जाता है और पितरों को तर्पण करते उनको विदा किया जाता है। साथ ही महालया अमावस्या के दिन पितरों से प्रार्थना की जाती है कि हमसे जो गलतियां हुई हैं, उसके लिए माफ कर दें और अपनी कृपा हमेशा बनाए रखें। वही शाम के समय मां दुर्गा की पृथ्वी लोक पर आने के लिए प्रार्थना की जाती है। महालया के दिन ही मां अपना पहला कदम पृथ्वी पर रखती हैं। मान्यता है कि इस अवधि में कोई भी शुरू किया गया कार्य हमेशा फलदायी माना जाता है।



महिषासुरमर्दिनी माता का महात्म्य - 

महिषासुर दानवराज रम्भासुर का पुत्र था, जो बहुत शक्तिशाली था। कथा के अनुसार महिषासुर का जन्म पुरुष और महिषी (भैंस) के संयोग से हुआ था। इसलिए उसे महिषासुर कहा जाता था। वह अपनी इच्छा के अनुसार भैंसे व इंसान का रूप धारण कर सकता था।


वरदान पाकर लौटने के बाद महिषासुर सभी दैत्यों का राजा बन गया। उसने दैत्यों की विशाल सेना का गठन कर पाताल लोक और मृत्युलोक पर आक्रमण कर सभी को अपने अधीन कर लिया। फिर उसने देवताओं के इन्द्रलोक पर आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान विष्णु और शिव ने भी देवताओं का साथ दिया, लेकिन महिषासुर के हाथों सभी को पराजय का सामना करना पड़ा और देवलोक पर भी महिषासुर का अधिकार हो गया। वह तीनों लोकों का अधिपति बन गया।


जब सभी देव भगवान विष्णु के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे । तब भगवान विष्णु जी, शिवजी और अन्य सभी देवताओं के तेज एकसाथ मिलकर एक नारी के रूप मे प्रवृत्ति हुआ। इन देवी की उत्पत्ति महिषासुर के अंत के लिए हुई थी, इसलिए इन्हें 'महिषासुर मर्दिनी' कहा गया। समस्त देवताओं के तेज से प्रकट हुई देवी को देखकर पीड़ित देवताओं की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा।


भगवान शिव ने देवी को त्रिशूल दिया। भगवान विष्णु ने देवी को चक्र प्रदान किया। इसी तरह, सभी देवी-देवताओं ने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र देवी के हाथों में सजा दिए । इंद्र ने अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घंटा देवी को दिया। सूर्य ने अपने रोम कूपों और किरणों का तेज भरकर ढाल, तलवार और दिव्य सिंह यानि शेर को सवारी के लिए उस देवी को अर्पित कर दिया। विश्वकर्मा ने कई अभेद्य कवच और अस्त्र देकर महिषासुर मर्दिनी को सभी प्रकार के बड़े-छोटे अस्त्रों से शोभित किया। अब बारी थी युद्ध की। थोड़ी देर बाद महिषासुर ने देखा कि एक विशालकाय रूपवान स्त्री अनेक भुजाओं वाली और अस्त्र शस्त्र से सज्जित होकर शेर पर बैठ उसकी ओर आ रही है।


महिषासुर की सेना का सेनापति आगे बढ़कर देवी के साथ युद्ध करने लगा। उदग्र नामक महादैत्य भी 60 हजार राक्षसों को लेकर इस युद्ध में कूद पड़ा। महानु नामक दैत्य एक करोड़ सैनिकों के साथ, अशीलोमा दैत्य पांच करोड़ और वास्कल नामक राक्षस 60 लाख सैनिकों के साथ युद्ध में कूद पड़े सारे देवता इस महायुद्ध को बड़े कौतूहल से देख रहे थे। दानवों के सभी अचूक अस्त्र-शस्त्र देवी के सामने बौने साबित हो रहे थे। रणचंडिका देवी ने तलवार से सैकड़ों असुरों को एक ही झटके में मौत के घाट उतार दिया और असुरों की पूरी सेना के साथ ही महिषासुर का भी वध कर दिया।
जो जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करती है । वही माता सदा हमारी रक्षा करती है भक्ति से प्रसन्न होने पर सबको शक्ति और बुद्धि प्रदान करती है। और हम सदा उनको नमन करते है 

Monday, 5 June 2023

कर्म फल ही जीवन है

रोहित नामक एक अनाथ बच्चा था। उसके माता–पिता बचपन में ही चल बसे थे, उसके ननिहाल और पिता की तरफ से भी कोई नहीं था। उसके न तो कोई आगे था ना कोई पीछे, अनाथालय में रहा और पढ़ा। वह पढ़ने में मेधावी था उसे आर्मी में नौकरी लग गई और वह एक अधिकारी बन गया। अब सेना के साथ ही रहता, कभी भी घर वापस नहीं आता क्योंकि उसका कोई था नहीं, उसने शादी भी नहीं की थी। उसे जितनी सैलरी मिलती थी वह सब बचा लेता था। आर्मी के कैंटीन में खाता था वहीं पर रहता था, तो उसका खर्चा भी लगभग ना के बराबर था। तो हम कह सकते हैं कि उसने आज तक जितनी सैलरी पाई सब बचा ही लिया था।


सूरजमल सेठ और रोहित का पैसा


उसी कैंटीन में सूरजमल नामक एक सेठ आता था जो कैंटीन के समान का छोटा सप्लायर था। बहुत दिन हो गए दोनों को एक दूसरे को जानते पहचानते, एक दिन सूरजमल ने कहा रोहित आपके पैसे बैंक में रखें हैं। मुझे व्यापार में लगाने को दे दो मैं तुम्हे अच्छा मुनाफा दूंगा। रोहित ने मना कर दिया। रोहित ने कहा मुझे इतनी ज्यादा पैसे की लालच नही है। जो सरकार ने दिया है वह मेरे खाते में पड़ा है। कभी जिंदगी में जरूरत पड़ी तो इस्तेमाल करेंगे नहीं तो कोई बात नहीं। सेठ ने कहा यह भी क्या बात हुई अगर तुम हमें अपना दोस्त मानते हो तो तुम मेरी सहायता ही कर दो। मैं तुम्हें यह पैसा वापस लौटा दूंगा। कम से कम मेरा काम हो जाएगा अभी इस पैसे की तुम्हें जरूरत भी नहीं है।

सेठ की नीयत में खोट


बात तो सही कह रहे हो, पर आप पैसा वापस करोगे इसकी क्या गारंटी है, सेठ ने कहा कसम खाकर कहता हूं धोखा नहीं दूंगा। रोहित ने कहा सेठ जी! लोग तो पैसे के लिए क्या क्या कर देते हैं।पर कोई नही चलिए मैं आपकी बात को मान लेता हूं। कम से कम आप का तो भला हो जाए। सेठ ने मुस्कुराते हुए, धन्यवाद कहा और रोहित को गले लगा लिया। पैसा लेने के बाद सेठ जब भी आता रोहित को बहुत–बहुत धन्यवाद देता। सेठ का बिजनेस रोहित के पैसों से बढ़ रहा था आमदनी दिन दुगनी रात चौगुनी हो रही थी। आमदनी बढ़ने के साथ अब सेठ की नीयत में बेईमानी आ चुकी थी। वह अब पैसा ना लौटाना पड़े उसका बहाना ढूंढता रहता।


बॉर्डर पर युद्ध


इसी बीच बॉर्डर पर पड़ोसी देश के साथ युद्ध शुरू हो गया और रोहित को भी जाना पड़ा। जहां युद्ध हो रहा था वो इलाका काफी दुर्गम था। वहां पहुंचने का एक मात्र रास्ता घोड़े से पहुंचने का था। रोहित एक कुशल घुड़सवार था, उसे जो घोड़ी मिली वो बिगड़ैल थी। रोहित के पीठ पर बैठते ही सरपट दौड़ने लगी, रोहित उसे काबू में करने की जितनी कोशिश करता वो अपनी गति और तेज करती जाती। रोहित ने लगाम पूरी ताकत से खींचा, घोड़ी का मुंह कट चुका था पर पता नही आज ये बिगड़ैल घोड़ी कुछ भी सुनने को राजी नहीं थी। घोड़ी दौड़ते दौड़ते दुश्मन के खेमे के सामने जाकर खड़ी हो गई। रोहित दुश्मन की गोलियों का शिकार हो गया।

सेठ की खुशी


सेठ बराबर आर्मी कैंट में जाता था उसे वहां पता चला की रोहित युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ। सेठ ने वहां काफी दुख दिखाया और कैंट से बाहर आते ही खुशी से झूम उठा। अब पैसा वापस नही करना होगा। सेठ का व्यापार दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था। कुछ दिनों के बाद सेठ की पत्नी मां बनी और सेठ एक सुंदर बच्चे का पिता बना। सेठ के जीवन का ये सबसे बेहतरीन समय चल रहा था।


समय बीतते देर नहीं लगती। सेठ का बेटा अमर जो अब बड़ा हो गया था और अब सेठ के साथ मिलकर व्यापार करता था। अमर विवाह योग्य हो चुका था। अच्छे घर की सुंदर सुशील कन्या देखकर अमर की शादी हो गई। अब सेठ कहता कुछ दिन की और बात है अब बेटा व्यापार संभालेगा। मेरी जिंदगी सफल हो गई और क्या चाहिए मुझे।

अमर की बीमारी

अमर की शादी हुए मुश्किल से 2 महीने हुए थे, अमर सड़क पार कर रहा था उसे चक्कर आया और गिर गया। लोग उसे उठाकर हॉस्पिटल पहुंचाए, उसके ब्रेन का एमआरआई और अन्य टेस्ट हुए तो पता चला अमर को ब्रेन कैंसर है। सेठ ने डॉक्टरों से कहा पैसे की चिंता मत करें आप इलाज करें। डॉक्टर और हॉस्पिटल बदलते गए पर अमर की हालत दिन ब दिन बिगड़ती गई। सेठ अब व्यापार पे ध्यान नहीं दे पा रहा था, उसके कस्टमर छूटते जा रहे थे।


हॉस्पिटल का बढ़ता बिल और अमर की बीमारी


हॉस्पिटल का बिल बढ़ता जा रहा था। अब सेठ पर कर्ज काफी हो चुका था, सेठ परेशान था। अब अमर को डॉक्टर ने जवाब दे दिया, सेठ हार चुका था। किसी चमत्कार की आशा में बैठा था, चमत्कार तो नही हुआ। पर अमर अब इस दुनिया में नही रहा। महीनो जिंदगी की जंग लड़ने के बाद अमर हार चुका था। सेठ के घर में हाहाकार मच गया। सेठ, सेठानी, अमर की पत्नी सब विलाप कर रहे थे। यहां तक की घर के नौकरों का भी रो रो कर हाल बुरा था।


साधु का सच और कर्म फल 


एक साधु उधर से गुजर रहे थे उन्होंने करुण क्रंदन सुना तो रुक गए। वहां जाकर उन्हें कहा रोने से कुछ नही होगा, जो होना था वो हो गया। सेठ गुस्से में बोला “मेरे साथ ही क्यों?” साधु ने कहा सब कर्म का फल (Karm Ka Fal) है, यहीं चुका कर जाना होता है। आज बहुत रो रहे हो, कल तो तुम बहुत हस रहे थे।


सेठ ने कहा “मै कुछ समझा नही महाराज“, साधु ने कहा “तुमने अपने व्यापार के लिए उधार पैसे लिए थे। जब व्यापार चल पड़ा, तो तुमने, जिसके पैसे थे उसे लौटाए नही। सेठ ने कहा “गलत, वो मर गया था, किसे लौटाता?”, साधु ने कहा “झूठ नही। तुम भूल गए उसके मरने के समाचार पे तुम कितना खुश हुए थे?, उस दिन तुमने मिठाई बांटी थी। क्या मिठाई बांटना सही था? तुम उसके पैसे को सरकार को या अनाथालय या किसी जरूरतमंद को दे सकते थे पर तुमने नही दिया। तुम्हारी नीयत में खोट थी।


शर्मिंदा सेठ और कर्म का फल 


सेठ शर्मिंदा था। आज सेठ वहीं पर खड़ा था जहां पर आज से 20 साल पहले खड़ा था। आज ना तो पैसे थे न व्यापार और ना ही पुत्र और ढेर सारा कर्ज था। साधु ने कहा ये तुम्हारा पुत्र वही लड़का रोहित था, ये अपना हिसाब करने आया था, हिसाब कर लिया और चला गया। जितना उसने तुम्हे दिया था सूद सहित वापस ले लिया। तुमने उसकी शिक्षा, शादी, हॉस्पिटल सब पर खूब खर्च किया जब वो गया तुम्हे भिखारी बना कर गया। सेठ ने सुबकते हुए कहा, मान लिया मेरी गलती थी।


पत्नी के कर्म का फल 


इस बेटी की क्या गलती, इससे तो सिर्फ दो महीने पहले शादी हुई थी। साधु ने कहा ये इसका कर्म फल था। ये पिछले जन्म में वो घोड़ी थी जिसके चलते रोहित की जिंदगी खत्म हुई। आज रोहित ने बदला ले लिया, और इसकी जिंदगी नर्क बना कर चला गया। जीवन में कुछ भी बिना कारण नही हो रहा है, हो सकता है बीज आपने बहुत पहले लगाया हो और आप भूल गए हो। वही बीज पेड़ बन जाता है तब हमें पता चलता है। इसलिए आप कैसा बीज लगाते हो हमेशा याद रखो। प्रकृति हिसाब करती है, आप याद रखो न रखो प्रकृति हमेशा याद रखती है। सेठ, निरुत्तर, हताश, घर की सीढ़ी पर बैठा, अपने कर्म को कोस रहा था। हमेशा अपने कर्म पर ध्यान दें, ऊपर वाले की लाठी में आवाज नही होती पर असर पूरा करती है।


Thursday, 1 June 2023

डोर

 राजस्थान की एक घटना है । एक राजा थे जिनकी एक युवा पत्नी थी जो उनसे बेहद प्रेम करती थी और उनके प्रति पूरी तरह समर्पित थी लेकिन राजाओ की हमेशा ढेर सारी पत्नियां होती थी इसलिए रानी जिस तरह उनके ध्यान मे पूरी तरह डूबी रहती थी उन्हे यह काफी मूर्खतापूर्ण लगता था वह हैरान होता था और उसे यह अच्छा भी लगता था लेकिन कई बार अति हो जाती थी फिर वह उसे थोड़ा दूर करके बाकी रानियों के साथ समय बिताया था लेकिन वह रानी राजा के लिए पूर्ण रूप से समर्पित थी ।

राजा और रानी के पास दो बोलने वाली मैना थी एकदिन इनमे से एक चिड़िया मर गयी तो दूसरी ने खाना पीना छोड़ दिया और चुपचाप बैठी रही ।

राजा ने उसे खाना खिलाने की हर सम्भव कोशिश की लेकिन सफल नही हुआ और वह चिड़िया दो दिन मे मर गयी ।

इसबात ने राजा को काफी प्रभावित किया यह क्या है किसी भी जीव के लिए पहले अपने जीवन को महत्तव देना स्वभाविक है मगर यह चिड़िया बैठी रही और मर गयी यह कहने पर रानी ने कहा जब कोई वास्तव मे किसी से प्रेम करता है तो दूसरे के साथ मर जाना उनके लिए स्वभाविक है क्योकि उसके बाद उनके लिए अपने जीवन का कोई अर्थ नही रह जाता ।

राजा ने मजाक मे पूछा क्या आप भी हमे इतना प्रेम करती है? रानी ने हां मे जबाव दिया । यह सुनकर राजा बड़ा खुश हुआ ।

एकदिन राजा अपने दोस्तो के साथ शिकार खेलने गया 

उसके दिमाग मे चिड़ियो के मरने वाला प्रसंग चल रहा था राजा रानी की बात की परीक्षा लेना चाहता था इसलिए उसने अपने वस्त्रो पर खून लगाकर सिपाही के हाथो महल पहुंचा दिया । महल पहुचकर सिपाही ने घोषणा कर दी कि राजा पर एक बाघ ने हमला कर उन्हे मार डाला रानी ने अपनी ऑख मे आसू लाए बिना बहुत गरिमा के साथ उनके कपड़े लिए, लकड़िया इक्ठठी की और उनपर लेटकर मर गयी लोगो को विश्वास नही हो रहा था कि रानी बस चिता पर लेटी और मर गयी कुछ और करने को नही था क्योकि वह मर चुकी थी इसलिए उन्होने उनका अंतिम संस्कार कर दिया जब यह खबर राजा को मिली तो वह दुख मे डूब गया उसने सिर्फ एक सनक मे आकर उसके साथ मजाक किया और वह वास्तव मे मर गयी उसने आत्महत्या नही की वह बस यूं ही मर गयी लोग इसतरह भी प्रेम करते थे क्योकि कही न कही लोग आपस मे जुड़ जाते थे ।।







Thursday, 18 May 2023

अनुभूति




हमारे साथ होने वाली भविष्य की घटनाओं का पहले से महसूस होने की प्रक्रिया को ही इंट्यूशन कहते है इतना ही नहीं 


लोग जो हमारे अपने होते है उनके साथ होने वाली घटनाओं का एहसास भी हमे तब हो जाता है जब हम उनसे काफी दूर होते है यही हमे महसूस करवाता है है की कोई इंसान हमारे लिए कैसी भावनाएं रखता है सकारात्मक नकारात्मक प्यार गुस्सा नफरत सब चीजों का एहसास ।


कोई परेशान है लेकिन सबके सामने नॉर्मल है । बहुत बड़ा दुख छिपा रहा है इसके साथ में आपके दुख तकलीफ में किसी को अंदर ही अंदर मजे मिल रहे है वो कहते है न मुझे उससे पॉजिटिव वाइब्स नही मिलती ।


जीवन बदलने वाला अनुभव तब होता है जब आप ऐसे अजनावियो से मिलते है जिनसे मिलकर आपको अजनवियो वाली कोई फीलिंग ही नही आती एक कंफर्ट, एक अपनत्व लगता है उनका दुख उनकी परेशानी स्वयं को कही ज्यादा परेशान कर जाती है अगर कही दूर वो आशुओ में डूबे है तो आपको महसूस हो जाता हैं जब वो हमे ही याद करते है तो महसूस हो जाता है इतना सब होने के बाद अगर कोई आपको प्रैक्टिकल लाइफ ओर इस भौतिक दुनिया का मुफ्त ज्ञान दे कर आपकी फीलिंग्स को कोरी कल्पना मात्र कहे तो just keep smile and let it go


क्योंकि ये दिल की बातें वही समझ सकता है जिसके पास दिल होगा ओर मन में अपनो के लिए सच्चा लगाव होगा । कभी स्वार्थ के अलावा किसी दूसरे के दुख को समझा होगा ......✍️


बात सिर्फ भावनाओ तक ही सीमित नहीं इसके साथ हम इंसान को भी परखना जानते है एक अच्छा इंसान, दिल का सच्चा इंसान या विलेन टाइप लोग 

जब हम जीवन में एक अच्छे इंसान से मिलते है बाते करते है तो सबसे पहले सम्मान उन्हें जाता है जिनकी परवरिश या विचारधारा में वो रहता है मतलब माता पिता ।

वो कहते है न इंसान इतना अच्छा है तो पैरेंट्स कितने अच्छे होंगे !! they deserve that respect 💙💙




जिंदगी बहुत हसीन है,

कभी हंसाती है, तो कभी रुलाती है,

लेकिन जो जिंदगी की भीड़ में खुश रहता है,

जिंदगी उसी के आगे सिर झुकाती है।

बिना संघर्ष कोई महान नही होता,

बिना कुछ किए जय जय कार नही होता,

जब तक नहीं पड़ती हथौड़े की चोट,

तब तक कोई पत्थर भगवान नहीं होता। 






Tuesday, 16 May 2023

जात- पात मे मरता हिंदु जगह जगह पर मरता हिंदु पार्ट 2

भारतीय इतिहास की पाठय पुस्तकों में औरंगजेब और शिवाजी के संघर्ष के पश्चात चुनिन्दा घटनाओं को ही प्राथमिकता से बताया जाता हैं जैसे की नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली द्वारा भारत पर आक्रमण करना, प्लासी की लड़ाई में सिराज-उद-दौलाह की हार और अंग्रेजो का बंगाल पर राज होना और मराठों की पानीपत के युद्ध में हार होना। उसके पश्चात टीपू सुल्तान की हार ,सिखों का उदय और अस्त से 1857 के संघर्ष तक वर्णन मिलता हैं। एक प्रश्न उठता हैं की इतिहास के इस लंबे 100 वर्ष के समय में भारत के असली शासक कौन थे? शक्तिहीन मुग़ल तो दिल्ली के नाममात्र के शासक थे परन्तु उस काल का अगर कोई असली शासक था, तो वह थे मराठे। शिवाजी महाराज द्वारा देश,धर्म और जाति की रक्षा के लिए जो अग्नि महाराष्ट्र से प्रज्ज्वलित हुई थी उसकी सीमाएँ महाराष्ट्र के बाहर फैल कर देश की सीमाओं तक पहुँच गई थी। इतिहास के सबसे रोचक इस स्वर्णिम सत्य को देखिये की जिस मतान्ध औरंगजेब ने वीर शिवाजी महाराज को पहाड़ी चूहा कहता था उन्ही शिवाजी के वंशजों को उसी औरंगजेब के वंशजों ने "महाराजधिराज "और "वज़ीरे मुतालिक" के पद से सुशोभित किया था। जिस सिंध नदी के तट पर आखिरी हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान के घोड़े पहुँचे थे उसी सिंध नदी पर कई शताब्दियों के बाद अगर भगवा ध्वज लेकर कोई पहुँचा तो वह मराठा घोड़ा था। सिंध के किनारों से लेकर मदुरै तक, कोंकण से लेकर बंगाल तक मराठा सरदार सभी प्रान्तों से चौथ के रूप में कर वसूल करते थे, स्थान स्थान पर अपने विरुद्ध उठ रहे विद्रोहों को दबाते थे, जंजीरा के सिद्दियों को हिन्दू मंदिरो को भ्रष्ट करने का दंड देते थे, पुर्तगालियों द्वारा हिन्दुओं को जबरदस्ती ईसाई बनाने पर उन्हें यथायोग्य दंड देते थे, अंग्रेज सरकार जो अपने आपको अजेय और विश्व विजेता समझती थी मराठों को समुद्री व्यापार करने के लिए टैक्स लेते थे, देश में स्थान स्थान पर हिन्दू तीर्थों और मन्दिरों का पुनरुद्धार करते थे जिन्हें मुसलमानों ने नष्ट कर दिया था, जबरन मुस्लमान बनाये गए हिन्दुओं को फिर से शुद्ध कर हिन्दू बनाते थे । मराठों के राज में सम्पूर्ण आर्याव्रत राष्ट्र में फिर से भगवा झन्डा लहराता था और वेद ,गौ और ब्राह्मण की रक्षा होती थी।

अंग्रेज लेखक और उनके मानसिक गुलाम साम्यवादीलेखकों द्वारा एक शताब्दी से भी अधिक के हिंदुओ के इस स्वर्णिम राज को पाठ्य पुस्तकों में न लिखा जाना इतिहास के साथ खिलवाड़ नहीं तो और क्या हैं ?

हम न भूले की "जो राष्ट्र अपने प्राचीन गौरव को भुला देता हैं , वह अपनी राष्ट्रीयता के आधार स्तम्भ को खो देता हैं।"

उलटी गंगा बहा दी

वीर शिवाजी का जन्म 1627 में हुआ था। उनके काल में देश के हर भाग में मुसलमानों का ही राज्य था। यदा कदा कोई हिन्दू राजा संघर्ष करता तो उसकी हार, उसी की कौम के किसी विश्वासघाती के कारण हो जाती, हिन्दू मंदिरों को भ्रष्ट कर दिया जाता, उनमें गाय की क़ुरबानी देकर हिन्दुओं को नीचा दिखाया जाता था। हिन्दुओं की लड़कियों को उठा कर अपने हरम की शोभा बढ़ाना अपने आपको धार्मिक सिद्ध करने के समान था। ऐसे अत्याचारी परिवेश में वीर शिवाजी का संघर्ष हिन्दुओं के लिए एक वरदान से कम नहीं था। हिन्दू जनता के कान सदियों से यह सुनने के लिए थक गए थे की किसी हिन्दू ने मुसलमान पर विजय प्राप्त की। 1642 से शिवाजी ने बीजापुर सल्तनत के किलो पर अधिकार करना आरंभ कर दिया। कुछ ही वर्षों में उन्होंने मुग़ल किलो को अपनी तलवार का निशाना बनाया। औरंगजेब ने शिवाजी को परास्त करने के लिए अपने बड़े बड़े सरदार भेजे पर सभी नाकामयाब रहे। आखिर में धोखे से शिवाजी को आगरा बुलाकर कैद कर लिया जहाँ पर अपनी चतुराई से शिवाजी बच निकले। औरंगजेब पछताने के सिवाय कुछ न कर सका। शिवाजी ने मराठा हिन्दू राज्य की स्थापना की और अपने आपको छत्रपति से सुशोभित किया। शिवाजी की अकाल मृत्यु से उनका राज्य महाराष्ट्र तक ही फैल सका था। उनके पुत्र शम्भा जी में चाहे कितनी भी कमिया हो पर अपने बलिदान से शम्भा जी ने अपने सभी पाप धो डाले। औरंगजेब ने शम्भा जी के आगे दो ही विकल्प रखे थे या तो मृत्यु का वरण कर ले अथवा इस्लाम को ग्रहण कर ले। वीर शिवाजी के पुत्र ने भयंकर अत्याचार सह कर मृत्यु का वरण कर लिया पर इस्लाम को ग्रहण कर अपनी आत्मा से दगाबाजी नहीं की और हिन्दू स्वतंत्रता रुपी वृक्ष को अपने रुधिर से सींच कर और हरा भरा कर दिया। शिवाजी की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब ने सोचा की मराठो के राज्य को नष्ट कर दे परन्तु मराठों ने वह आदर्श प्रस्तुत किया जिसे हिन्दू जाति को सख्त आवश्यकता थी। उन्होंने किले आदि त्याग कर पहाड़ों और जंगलों की राह ली। संसार में पहली बार मराठों ने छापामार युद्ध को आरंभ किया। जंगलों में से मराठे वीर गति से आते और भयंकर मार काट कर, मुगलों के शिविर को लूट कर वापिस जंगलों में भाग जाते। शराब-शबाब की शौकीन आरामपस्त मुग़ल सेना इस प्रकार के युद्ध के लिए कही से भी तैयार नहीं थी। दक्कन में मराठों से 200वर्षों के युद्ध में औरंगजेब बुढ़ा होकर निराश हो गया , करीब 3 लाख की उसकी सेना काल की ग्रास बन गई। उसके सभी विश्वास पात्र सरदार या तो मर गए अथवा बूढ़े हो गए। पर वह मराठों के छापा मार युद्ध से पार न पा सका। मराठों की विजय का इसी से अंदाजा लगा सकते हैं की औरंगजेब ने जितनी संगठित फौज शिवाजी के छोटे से असंगठित राज्य को जीतने में लगा दी थी उतनी फौज में तो उससे 10 गुना बड़े संगठित राज्य को जीता जा सकता था। अंत में औरंगजेब की भी 1704 में मृत्यु हो गई परन्तु तब तक पंजाब में सिख, राजस्थान में राजपूत, बुंदेलखंड में छत्रसाल, मथुरा,भरतपुर में जाटों आदि ने मुगलिया सल्तनत की ईट से ईट बजा दी थी। मराठों द्वारा औरंगजेब को दक्कन में उलझाने से मुगलिया सल्तनत इतनी कमजोर हो गई की बाद में उसके उतराधिकारियों की आपसी लड़ाई के कारण ताश के पत्तों के समान वह ढह गई। इस उलटी गंगा बहाने का सारा श्रेय वीर शिवाजी को जाता हैं।

स्वार्थ से बड़ा जाति अभिमान

इतिहास इस बात का गवाह हैं की मुगलों का भारत में राज हिन्दुओं की एकता में कमी होने के कारण ही स्थापित हो सका था।

अकबर के काल से ही हिन्दू राजपूत एक ओर अपने ही देशवासियों से, अपनी ही कौम से अकबर के लिए लड़ रहे थे वही दूसरी और अपनी बेटियों की डोलियों को मुगल हरमों में भेज रहे थे। औरंगजेब ने जीवन की सबसे बड़ी गलती यही की कि उसने काफ़िर समझ कर राजपूतों का अपमान करना आरंभ कर दिया जिससे न केवल उसकी शक्ति कम हो गई अपितु उसकी सल्तनत में चारों और से विरोध आरंभ हो गया। भातृत्व की भावना को पनपने का मौका मिला और भाई ने भाई को अपने स्वार्थ और परस्पर मतभेद को त्याग कर गले से लगाया। शिवाजी के पुत्र राजाराम के नेतृत्व में मराठों ने जिनजी के किले से संघर्ष आरंभ कर दिया था। मराठों के सेनापति खान्डोबलाल ने उन मराठा सरदारों को जो कभी जिनजी के किले को घेरने में मुगलों का साथ दे रहे थे अपनी और मिलाना आरंभ कर दिया। नागोजी राणे को पत्र लिख कर समझाया गया की वे मुगलों का साथ न देकर अपनों का साथ दे जिससे देश,धर्म और जाति का कल्याण हो सके। नागोजी ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया और अपने 5000 आदमियों को साथ लेकर वे मराठा खेमे में आ मिले।

अगला लक्ष्य शिरका था जो अभी भी मुगलों की चाकरी कर रहा था। शिरका ने अपने अतीत को याद करते हुए राजाराम के उस फैसले को याद दिलाया जब राजाराम ने यह आदेश जारी किया था की जहाँ भी कोई शिरका मिले उसे मार डालो। शिरका ने यह भी कहा की राजाराम क्या वह तो उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हैं जब पूरा भोंसले खानदान मृत्यु को प्राप्त होगा तभी उसे शांति मिलेगी। खान्डोबलाल शिरका के उत्तर को पाकर तनिक भी हतोत्साहित नहीं हुआ। उन्होंने शिरका को पत्र लिखकर कहा की यह समय परस्पर मतभेदों को प्रदर्शित करने का नहीं हैं। मेरे भी परिवार के तीन सदस्यों को राजाराम ने हाथी के तले कुचलवा दिया था। मैं राजाराम के लिए नहीं अपितु हिन्दू स्वराज्य के लिए संघर्ष कर रहा हूँ। इस पत्र से शिरका क ह्रदय द्रवित हो गया और उसके भीतर हिन्दू स्वाभिमान जाग उठा। उसने मराठों का हरसंभव साथ दिया और मुगलों के घेरे से राजाराम को छुड़वा कर सुरक्षित महाराष्ट्र पहुँचा दिया।

काश अगर जयचंद से यही शिक्षा मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय ले ली होती तो भारत से पृथ्वी राज चौहान के हिन्दू राज्य का कभी अस्त न होता।

महाराष्ट्र से भारत के कोने कोने तक

मराठों ने मराठा संघ की स्थापना कर महाराष्ट्र के सभी सरदारों को एक तार में बांध कर, अपने सभी मतभेदों को भुला कर, संगठित हो अपनी शक्ति का पुन: निर्माण किया जो शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद लुप्त सी हो गई थी। इसी शक्ति से मराठा वीर सम्पूर्ण भारत पर छाने लगे। महाराष्ट्र से तो मुगलों को पहले ही उखाड़ दिया गया था। अब शेष भारत की बारी थी। सबसे पहले निज़ाम के होश ठिकाने लगाकर मराठा वीरों ने बची हुई चौथ और सरदेशमुखी की राशी को वसूला गया। दिल्ली में अधिकार को लेकर छिड़े संघर्ष में मराठों ने सैयद बंधुओं का साथ दिया। 70000 की मराठा फौज को लेकर हिन्दू वीर दिल्ली पहुँच गये। इससे दिल्ली के मुसलमान क्रोध में आ गये। इस मदद के बदले मराठों को सम्पूर्ण दक्षिण भारत से चौथ और सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार मिल गया।

मालवा के हिन्दू वीरों ने जय सिंह के नेतृत्व में मराठों को मुगलों के राज से छुड़वाने के लिए प्रार्थना भेजी क्यूंकि उस काल में केवल मराठा शक्ति ही मुगलों के आतंक से देश को स्वतंत्र करवा सकती थी। मराठा वीरों की 70000 की फौज ने मुगलों को हरा कर भगवा झंडे से पूरे प्रान्त को रंग दिया।

बुंदेलखंड में वीर छत्रसाल ने अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी। शिवाजी और उनके गुरु रामदास को वे अपना आदर्श मानते थे। वृद्धावस्था में उनके छोटे से राज्य पर मुगलों ने हमला कर दिया जिससे उन्हें राजधानी त्याग कर जंगलों की शरण लेनी पड़ी।इस विपत्ति काल में वीर छत्रसाल ने मराठों को सहयोग के लिए आमंत्रित किया। मराठों ने वर्षा ऋतु होते हुए भी आराम कर रही मुग़ल सेना पर धावा बोल दिया और उन्हें मार भगाया। वीर छत्रसाल ने अपनी राजधानी में फिर से प्रवेश किया। मराठों के सहयोग से वो इतने प्रसन्न हुए की उन्होंने बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र बना लिया और उनकी मृत्यु के पश्चात उनके राज्य का तीसरा भाग बाजीराव को मिला।

इसके पश्चात गुजरात की और मराठा सेना पहुँच गई। मुगलों ने अभय सिंह को मराठों से युद्ध लड़ने के लिये भेजा। उसने एक स्थान पर धोखे से मराठा सरदार की हत्या तक कर दी पर मराठा कहाँ मानने वाले थे। उन्होंने युद्ध में जो जोहर दिखाए की मराठा तल्वाक की धाक सभी और जम गई। इधर दामा जी गायकवाड़ ने अभय सिंह के जोधपुर पर हमला कर दिया जिसके कारण उसे वापिस लौटना पड़ा। मराठों ने बरोडा और अहमदाबाद पर कब्ज़ा कर लिया।

दक्षिण में अरकाट में हिन्दू राज को गद्दी से उतर कर एक मुस्लिम वहां का नवाब बन गया था। हिन्दू राजा के मदद मांगने पर मराठों ने वहाँ पर आक्रमण कर दिया और मुस्लिम नवाब पर विजय प्राप्त की। मराठों को वहाँ से एक करोड़ रुपया प्राप्त हुआ। इससे मराठों का कार्य क्षेत्र दक्षिण तक फैल गया।इसी प्रकार बंगाल में भी गंगा के पश्चिमी तट तक मराठों का विजय अभियान जारी रहा एवं बंगाल से भी उचित राशी वसूल कर मराठे अपने घर लौटे।मैसूर में भी पहले हैदर अली और बाद में टीपू सुल्तान से मराठों ने चौथ वूसली की थी।

दिल्ली के कागज़ी बादशाह ने फिर से मराठों का विरोध करना आरंभ कर दिया। बाजीराव ने मराठों की फौज को जैसे ही दिल्ली भेजा उनके किलों की नीवें मराठा सैनिकों की पदचाप से हिलने लगी। आखिर में अपनी भूल और प्रयाश्चित करके मराठा क्षत्रियों से उन्होंने पीछा छुड़ाया। अहमद शाह अब्दाली से युद्ध के काल में ही मराठा उसका पीछा करते हुए सिंध नदी तक पहुँच गये थे। पंजाब की सीमा पर कई शताब्दियों के मुस्लिम शासन के पश्चात मराठा घोड़े सिंध नदी तक पहुँच पाए थे। मराठों के इस प्रयास से एवं पंजाब में मुस्लिम शासन के कमजोर होने से सिख सत्ता को अपनी उन्नति करने का यथोचित अवसर मिला जिसका परिणाम आगे महाराजा रंजीत सिंह का राज्य था। इस प्रकार सिंध के किनारों से लेकर मदुरै तक, कोंकण से लेकर बंगाल तक मराठा सरदार सभी प्रान्तों से चौथ के रूप में कर वसूल करते थे, स्थान स्थान पर अपने विरुद्ध उठ रहे विद्रोहों को दबाते थे और भगवा पताका को फहरा कर हिन्दू पद पादशाही को स्थिर कर रहे थे। इन सब प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की करीब एक शताब्दी तक मराठों का भारत देश पर राज रहा जोकि विशुद्ध हिन्दू राज्य था।

थल से जल तक

वीर शिवाजी के समय सही मराठा फौज अपनी जल सेना को मजबूत करने में लगी हुई थी। इस कार्य का नेतृत्व कान्होजी आंग्रे के कुशल हाथों में था। कान्होजी को जंजिरा के मुस्लिम सिद्दी, गोआ के पुर्तगाली, बम्बई के अंग्रेज और डच लोगों का सामना करना पड़ता था जिसके लिए उन्होंने बड़ी फौज की भर्ती की थी। इस फौज के रख रखाव के लियी वो उस रास्ते से आने जाने वाले सभी व्यापारी जहाजों से कर लेते थे। अंग्रेज यही काम सदा से करते आये थे इसलिए उन्हें यह कैसे सहन होता। बम्बई के समुद्र तट से 16 मील की दूरी पर खाण्डेरी द्वीप पर मराठों का सशक्त किला था। इतिहासकार कान्होजी आंग्रे को समुद्री डाकू के रूप में लिखते हैं जबकि वे कुशल सेनानायक थे। 1717 में बून चार्ल्स बम्बई का गवर्नर बन कर आया। उसने मराठों से टक्कर लेने की सोची। उसने जहाजों का बड़ा बेड़ा और पैदल सेना तैयार कर मराठों के समुद्री दुर्ग पर हमला कर दिया। अंग्रेजों ने अपने जहाजों के नाम भी रिवेंज,विक्ट्री,हॉक और हंटर आदि रखे थे। पूरी तैयारी के साथ अंग्रेजों ने मराठों के दुर्ग पर हमला किया पर मराठों के दुर्ग कोई मोम के थोड़े ही बने थे। अंग्रेजों को मुँह की खानी पड़ी। अगले साल फिर हमला किया फिर मुँह की खानी पड़ी। तंग आकर इंग्लैंड के महाराजा ने कोमोडोर मैथयू के नेतृत्व में एक बड़ा बेड़ा मराठों से लड़ने के लिए भेजा। इस बार पुर्तगाल की सेना को भी साथ में ले लिया गया। बड़ा भयानक युद्ध हुआ। कोमोडोर मैथयू स्वयं आगे बढ़ बढ़ कर नेतृत्व कर रहा था। मराठा सैनिक ने उसकी जांघ में संगीन घुसेड़ दी, उसने दो गोलियाँ भी चलाई पर वह खाली गई क्यूंकि मराठों के आतंक और जल्दबाजी में वह उसमें बारूद ही भरना भूल गया। अंत में अंग्रेजों और पुर्तगालियों की संयुक्त सेना की हार हुई। दोनो एक दूसरे को कोसते हुए वापिस चले गए। डच लोगों के साथ युद्ध में भी उनकी यही गति बनी। मराठे थल से लेकर जल तक के राजा थे।

ब्रह्मेन्द्र स्वामी और सिद्दी मुसलमानों का अत्याचार

ब्रह्मेन्द्र स्वामी को महाराष्ट्र में वही स्थान प्राप्त था जो स्थान शिवाजी के काल में समर्थ गुरु रामदास को प्राप्त था। सिद्दी कोंकण में राज करते थे मराठों के विरुद्ध पुर्तगालीयों , अंग्रेजों और डच आदि की सहायता से उनके इलाकों पर हमले करते थे। इसके अलावा उनका एक पेशा निर्दयता से हिन्दू लड़के और लड़कियों को उठा कर ले जाना और मुसलमान बनाना भी था। इसी सन्दर्भ में सिद्दी लोगों ने भगवान परशुराम के मंदिर को तोड़ डाला। यह मंदिर ब्रह्मेन्द्र स्वामी को बहुत प्रिय था। उन्होंने निश्चय किया की वह कोंकण देश में जब तक वापिस नहीं आयेंगे जब तक उनके पीछे अत्याचारी मलेच्छ को दंड देने वाली हिन्दू सेना नहीं होगी क्यूंकि सिद्दी लोगों ने मंदिर और ब्राह्मण का अपमान किया हैं। स्वामी जी वहाँ से सतारा चले गए और अपने शिष्यों शाहू जी और बाजीराव को पत्र लिख कर अपने संकल्प की याद दिलवाते रहे। मराठे उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। सिद्दी लोगों का आपसी युद्ध छिड़ गया, बस मराठे तो इसी की प्रतीक्षा में थे। उन्होंने उसी समय सिद्दियों पर आक्रमण कर दिया। जल में जंजिरा के समीप सिद्दियों के बेड़े पर आक्रमण किया गया और थल पर उनकी सेना पर आक्रमण किया गया। मराठों की शानदार विजय हुई और कोंकण प्रदेश मराठा गणराज्य का भाग बन गया। ब्रह्मेन्द्र स्वामी ने प्राचीन ब्राह्मणों के समान क्षत्रियों की पीठ थप-थपा कर अपने कर्तव्य का निर्वाहन किया था। वैदिक संस्कृति ऐसे ही ब्राह्मणों की त्याग और तपस्या के कारण प्राचीन काल से सुरक्षित रही हैं।

गोआ में पुर्तगाली अत्याचार

गोआ में पुर्तगाली सत्ता ने भी धार्मिक मतान्धता में कोई कसर न छोड़ी थी। हिन्दू जनता को ईसाई बनाने के लिए दमन की निति का प्रयोग किया गया था। हिन्दू जनता को अपने उत्सव बनाने की मनाही थी। हिन्दुओं के गाँव के गाँव ईसाई न बनने के कारण नष्ट कर दिए गये थे। सबसे अधिक अत्याचार ब्राह्मणों पर किया गया था। सैकड़ों मंदिरों को तोड़ कर गिरिजाघर बना दिया गया था। कोंकण प्रदेश में भी पुर्तगाली ऐसे ही अत्याचार करने लगे थे।ऐसे में वह की हिन्दू जनता ने तंग आकर बाजीराव से गुप्त पत्र व्यवहार आरंभ किया और गोवा के हालात से उन्हें अवगत करवाया। मराठों ने कोंकण में बड़ी सेना एकत्र कर ली और समय पाकर पुर्तगालियों पर आक्रमण कर दिया। उनके एक एक कर कई किलों पर मराठों का अधिकार हो गया। पुर्तगाल से अंटोनियो के नेतृत्व में बेड़ा लड़ने आया पर मराठों के सामने उसकी एक न चली। वसीन के किले के चारों और मराठों ने चिम्मा जी अप्पा के नेतृत्व में घेरा दाल दिया था। वह घेरा कई दिनों तक पड़ा रहा था। अंत में आवेश में आकार अप्पा जी ने कहा की तुम लोग अगर मुझे किले में जीते जी नहीं ले जा सकते तो कल मेरे सर को तोप से बांध कर उसे किले की दिवार पर फेंक देना कम से कम मरने के बाद तो मैं किले मैं प्रवेश कर सकूँगा। वीर सेनापति के इस आवाहन से सेना में अद्वितीय जोश भर गया और अगले दिन अपनी जान की परवाह न कर मराठों ने जो हमला बोला की पुर्तगाल की सेना के पाँव ही उखड़ गए और किला मराठों के हाथ में आ गया। यह आक्रमण गोआ तक फैल जाता पर तभी उत्तर भारत पर नादिर शाह के आक्रमण की खबर मिली। उस काल में केवल मराठा संघ ही ऐसी शक्ति थी जो इस प्रकार की इस राष्ट्रीय विपदा का प्रतिउत्तर दे सकती थी। नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण कर 15000 मुसलमानों को अपनी तलवार का शिकार बनाया। उसका मराठा पेशवा बाजीराव से पत्र व्यवहार आरंभ हुआ। जैसे ही उसे सूचना मिली की मराठा सरदार बड़ी फौज लेकर उससे मिलने आ रहे हैं वह दिल्ली को लुटकर ,मुगलों के सिंघासन को उठा कर अपने देश वापिस चला गया।

पहाड़ी चूहे से महाराजाधिराज तक

दिल्ली में अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण का काल में रोहिल्ला सरदार नजीब खान ने दिल्ली में बाबर वंशी शाह आलम पर हमला कर उसकी आँखें फोड़ दी और उस पर भयानक अत्याचार किये। मराठा सरदार महाजी सिंधिया ने दिल्ली पर हमला बोल कर नजीब खा को उसके किये की सजा दी। इतिहास गवाह हैं की जिस औरंगजेब ने वीर शिवाजी की वीरता से चिढ़ कर अपमानजनक रूप से उन्हें पहाड़ी चूहा कहा था उसी औरंगजेब के वंशज ने मराठा सरदार को पूना के पेशवा के लिए "वकिले मुतालिक" अर्थात "महाराजाधिराज" से सुशोभित किया। औरंगजेब जिसे आलमगीर भी कहा जाता हैं ने अपनी ही धर्मान्ध नीतियों से अपने जीवन में इतने शत्रु एकत्र कर लिए थे जिसका प्रबंध करने में ही उसकी सारी शक्ति, उसकी आयु ख़त्म हो गई।

पहले पानीपत के मैदान में मराठों को हार का सामना करना पड़ा पर इससे अब्दाली की शक्ति भी क्षीण हो गई और अब्दाली वही से वापिस अपने देश चला गया। कालांतर में मराठों के आपसी टकराव ने मराठा संघ की शक्ति को सिमित कर दिया जिससे उनकी 1818 में अंग्रेजों से युद्ध में हार हो गई और हिन्दू पद पादशाही का मराठा स्वराज्य का सूर्य सदा सदा के लिए अस्त हो गया।

इतिहास इस बात का भी साक्षी हैं की जब भी किसी जाति पर अत्याचार होते हैं, उनका अन्याय पूर्वक दमन किया जाता हैं तब तब उसी जाति से अनेक शिवाजी, अनेक प्रताप, अनेक गुरु गोबिंद सिंह उठ खड़े होते हैं जो अत्याचारी का समूल नष्ट कर देते हैं।केवल इस्लामिक आक्रान्ता और मुग़ल शासन से इतिहास की पूर्ति कर देना इतिहास से साथ खिलवाड़ के समान हैं जिसके दुष्परिणाम अत्यंत दूरगामी होंगे।

वियतनामी चाम हिंदू

वियतनाम में दो तरह के हिंदू रहते हैं। स्थानीय "चाम हिंदू" और भारत के हिंदू जो वियतनाम में आकर बस गए हैं।

चाम हिंदुओं के पीछे एक सुनहरा इतिहास है। उनका साम्राज्य जिसे चंपराज नाम दिया गया था, आज के दक्षिण वियतनाम और लाओस के कुछ हिस्सों को नियंत्रित करता था। चंपा के महाराजा भगवान शिव के भक्त थे और कई मंदिरों के निर्माता थे।
चंपा से भगवान नटराज की दसवीं शताब्दी की प्रतिमा


चम्पा साम्राज्य का मुकुट

हिंदू धर्म को राजधर्म के रूप में स्थापित करने के बाद, चंपा ने संस्कृत शिलालेख बनाना शुरू किया और हिंदू मंदिरों का निर्माण किया। शिलालेखों के अनुसार, पहले राजा महाराज भद्रवर्मन थे, जिन्होंने 380 ईस्वी से 413 ईस्वी तक शासन किया था। "मी शॉन" में, राजा भद्रवर्मन ने भद्रेश्वर नामक एक लिंग की स्थापना की, जिसका नाम राजा के अपने नाम और भगवान शिव के संयोजन में था। । भद्रेश्वर नाम के देव-राजा की पूजा सदियों के बाद भी जारी रही। महाराजा रुद्रवर्मन ने 529 ईस्वी में एक नए राजवंश की स्थापना की और उनके पुत्र महाराज शंभुवर्मन ने उनका उत्तराधिकार लिया। उन्होंने भद्रवर्मन के मंदिर का पुनर्निर्माण किया और इसका नाम बदलकर शंभू-भद्रेश्वर रखा। 629 में उनकी मृत्यु हो गई और उनके पुत्र कंदर्पधर्म की मृत्यु हो गई, जिनकी मृत्यु 630–31 में हुई। कंदर्पधर्म का उत्तराधिकारी उनके पुत्र, प्रभासधर्म द्वारा प्राप्त किया गया था, जिनकी मृत्यु 645 ईस्वी में हुई थी।

7 वीं से 10 वीं शताब्दी ईस्वी के बीच, चाम राजवंश एक नौसेना शक्ति बन गया; चंपा के बंदरगाहों ने स्थानीय और विदेशी व्यापारियों को आकर्षित किया, चम्पा के जहाजों ने चीन, इंडोनेशियाई द्वीपसमूह और भारत के बीच दक्षिण चीन सागर में मसालों और रेशम के व्यापार को भी नियंत्रित किया।

1471 में, उत्तरी दिशा से वियतनामी आक्रमण हुआ और चम्पा को एक गंभीर हार का सामना करना पड़ा, जिसमें 120,000 लोग या तो पकड़ लिए गए या मारे गए, और उनका राज्य नष्ट हो गया। चंपा के महाराज महाजन को युद्ध के कैदी के रूप में लिया गया था और उसके साथ, उनके लोगों ने अपनी खुद की जमीन पर नियंत्रण खो दिया था जो वे फिर से हासिल करने में कामयाब नहीं हुए।
वियतनामी सम्राट "लेह थान ताह" की एक प्रतिमा जिसने चम्पा को हराया था

8 वीं शताब्दी से ही अरब के व्यापारी चम्पा में पहुंचने लगे थे। मुसलमानों ने 10 वीं शताब्दी ईस्वी के बाद चाम के बीच धर्मप्रचार शुरू किया। 17 वीं शताब्दी तक, चाम के पूरे शाही परिवार ने इस्लाम कबूल कर लिया था, इंडोनेशिया में कई मुस्लिम चाम ने इस्लाम का धर्म प्रचार किया। उन्होंने वियतनामी आक्रमणकारियों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा, लेकिन यह सवाल के दायरे से बाहर है। अंत में, शैव ब्राह्मणों और नागवंशी क्षत्रियों को छोड़कर अधिकांश चाम लोग इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गए और अब वियतनामी चेम्स में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं।

आज भी चम्पा के लोगों को वियतनामी कम्युनिस्ट शासन द्वारा उनके वाजिब अधिकार नहीं दिए गए हैं, क्योंकि सरकार को चम्पन अलगाववादी तत्वों के पुनरुत्थान का भय है।



चंपा में स्थित एक भव्य गणेश मंदिर


वियतनाम के "न्हा तरंग" के अपने मंदिर के सामने नृत्य प्रस्तुत करतीं हुईं चाम स्त्रियाँ


चम्पा साम्राज्य को सबसे बड़ी हद तक दिखाने वाला एक नक्शा





Tuesday, 23 August 2022

The Three Type Of People

 


A Teacher shows three toys to a student and asks the student to find out the differences.

All the three toys seemed to be identical in their shape, size and material.

After keen observation, the student observes holes in the toys.

First toy has holes in the ears. 

Second toy has holes in ear and mouth.

Third toy has only one hole in one ear.


Then with the help of a needle, the student puts the needle in the ear hole of the first toy.

The needle comes out from the other ear.

In the second toy, when the needle was put in the ear, the needle came out of mouth.

And in the third toy, when the needle was put in, the needle did not come out.


1. First toy represents those people around you who give an impression that they are listening to all your things and care for you. But they just pretend to do so. After listening, as the needle comes out from the next ear, the things you said to them by counting on them are gone.

So be careful while you are speaking to this type of people around you, who does not care for you.


2. Second toy represents those people who listen to you, all your things and give an impression that they care for you. But as in the toy, the needle comes out from mouth. These people will use your things and the words you tell them against you by telling it to others and bringing out the confidential issues for their own purpose.


3. Third toy, the needle does not come out from it.

These kinds of people will keep the trust you have in them. They are the ones who you can count on. Always stay in a company of people who are loyal and trustworthy. People, who listen to what you tell them, are not always the ones you can count on when you need them the most.


I'm to sharing it with the request of writer 

Here the link 

https://www.pawbuzz.com/the-three-types-of-people/








Wednesday, 2 March 2022

शुभ कर्मो का अक्षय फल !!

वैश्वीकरण के समय मे समाज मे श्रेष्ठता की जंग इस सीमा तक बढ़ चुकी है कि लोगो ने त्योहारों पर भी पेशे की छाप डालनी शुरू कर दी है अक्षय तृतीया का नाम आते ही स्वर्णकारो, किसानो,फाइनेंशियल कन्सलटेंट, रियल स्टेट आदि मे ज्यादा से ज्यादा कस्टमर एक्वायर करने का कम्पटीशन स्टार्ट हो जाता है । लेकिन आज बायर सेलर से आगे बढ़ तिथि के महत्व के साथ साथ नेक भावना के साथ किए गए शुभ कर्मों से प्राप्त अक्षय फलो की बात करते है।

जिनसे पवित्र कथाओ का निर्माण होता है। 


अक्षय का अर्थ होता है “जो कभी खत्म ना हो” और इसीलिए ऐसा कहा जाता है, कि अक्षय तृतीया वह तिथि है जिसमें सौभाग्य और शुभ फल का कभी क्षय नहीं होता है। इस दिन होने वाले कार्य मनुष्य के जीवन को कभी न खत्म होने वाले शुभ फल प्रदान करते हैं। इसलिए यह कहा जाता है, कि इस दिन मनुष्य जितने भी पुण्य कर्म तथा दान करता है उसे, उसका शुभ फल अधिक मात्रा में मिलता है और शुभ फल का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता है वहीं इसके विपरीत जो व्यक्ति इस दिन कुकर्म करता है उसका परिणाम भी उसे कई गुना बढ़कर भुगतना पड़ता है। 


कथा- 

बहुत समय पहले की बात है कुशावती नामक नगरी में महोदय नाम का एक वैश्य रहता था। सौभाग्यवश महोदय वैश्य को एक पंडित से अक्षय तृतीया के व्रत करने की विधि के बारे में पता चला। 


महोदय ने भक्ति – भाव से विधि पूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रताप से महोदय वैश्य कुशावती का महाप्रतापी शक्तिशाली राजा बन गया। उसका खजाना हमेशा स्वर्ण मुद्राओं , हीरे जवाहरातों से भरा रहता था। राजा महोदय अच्छे स्वभाव का तथा दानवीर था। वह उदार मन से खुले हाथ से दान करता था और असहाय व गरीबो की भरपूर सहायता  करता था। 


एक बार राजा का वैभव और सुख शांतिपूर्ण जीवन देख कर दूसरे राजाओं ने उसकी समृद्धि का कारण पूछा। राजा ने स्पष्ट रूप से अपने अक्षय तृतीया व्रत की कथा कह सुनाई और कहा कि सब कुछ अक्षय तृतीय व्रत की कृपा से हुआ है। 


राजा से सुनकर उन्होंने अपने राज्य में जाकर विधि विधान सहित अक्षय तृतीया का पूजन व व्रत किया तथा प्रजा को भी ऐसा ही करने को कहा। अक्षय तृतीया के पुण्य प्रताप से उनके सभी नगर वासी , धन धान्य से पूर्ण होकर वैभवशाली और सुखी हो गए। 


हे अक्षय तीज माता ! जैसे आपने उस वैश्य को वैभव और राज्य दिया वैसे ही अपने सब भक्तो को धन धान्य और सुख देना। सब पर अपनी कृपा बनाये रखना।

अक्षय तृतीया का पौराणिक इतिहास -


अक्षय तृतीया का पौराणिक इतिहास महाभारत काल में मिलता है। जब पाण्डवों को 13 वर्ष का वनवास हुआ था तो एक दुर्वासा ऋषि उनकी कुटिया में पधारे थे। तब द्रौपदी से जो भी बन पड़ा, जितना हुआ, उतना उनका श्रद्धा और प्रेमपूर्वक सत्कार किया, जिससे वे काफी प्रसन्न हुए। दुर्वासा ऋषि ने उस दिन द्रौपदी को एक अक्षय पात्र प्रदान किया। 


श्रीकृष्ण से सम्बंधित एक और कथा अक्षय तृतीया के सन्दर्भ में प्रचलित है| कथानुसार श्रीकृष्ण के बालपन के मित्र सुदामा इसी दिन श्रीकृष्ण के द्वार उनसे अपने परिवार के लिए आर्थिक सहायता मांगने गए था| भेंट के रूप में सुदामा के पास केवल एक मुट्ठीभर पोहा ही था| श्रीकृष्ण से मिलने के उपरान्त अपना भेंट उन्हें देने में सुदामा को संकोच हो रहा था किन्तु भगवान कृष्ण ने मुट्ठीभर पोहा सुदामा के हाथ से लिया और बड़े ही चाव से खाया| चूंकि सुदाम श्रीकृष्ण के अतिथि थे, श्रीकृष्ण ने उनका भव्य रूप से आदर-सत्कार किया| ऐसे सत्कार से सुदामा बहुत ही प्रसन्न हुए किन्तु आर्थिक सहायता के लिए श्रीकृष्ण ने कुछ भी कहना उन्होंने उचित नहीं समझा और वह बिना कुछ बोले अपने घर के लिए निकल पड़े| जब सुदामा अपने घर पहुंचें तो दंग रह गए| उनके टूटे-फूटे झोपड़े के स्थान पर एक भव्य महल था और उनकी गरीब पत्नी और बच्चें नए वस्त्राभूषण से सुसज्जित थे| सुदामा को यह समझते विलंब ना हुआ कि यह उनके मित्र और विष्णुःअवतार श्रीकृष्ण का ही आशीर्वाद है| यहीं कारण है कि अक्षय तृतीया को धन-संपत्ति की लाभ प्राप्ति से भी जोड़ा जाता है।

तः आज के दिन धरती पर जो भी श्रीहरि विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना करेगा। उनको चने का सत्तू, गुड़, मौसमी फल, वस्त्र, जल से भरा घड़ा तथा दक्षिणा के साथ श्री हरी विष्णु के निमित्त दान करेगा, उसके घर का भण्डार सदैव भरा रहेगा। उसके धन-धान्य का क्षय नहीं होगा, उसमें अक्षय वृद्धि होगी।

ध्यान दीजिए दान और सेवा का महत्व आवश्यक है। कुछ अलग, स्पेशल, ऐसा करे जिससे मन को शांति मिले। मन की शांति अक्षय रह सके। क्योकि फल तो हमे हमारे कर्मो का ही मिलता है बाकी शॉपिंग से संतुष्टि तो सिर्फ महिलाओं को ही मिलती है 😜 

अक्षय तृतीया की आप सभी  और आपके सम्पूर्ण परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं । 🙏🙏

Thursday, 10 February 2022

Twitter The Modem Of Expression

Some people use Twitter to express their thoughts, while others use Twitter to find the flaws of good thinking. For this sometimes these people cross the limit and start making derogatory remarks just to humiliate others. Just because the other person has a different way of society, you will insult them by mistreating . While doing this, people do not even think that they are hurting someone mentally. 
Well this doesn't happen only on Twitter.

Twitter is simple in features – but Twitter Users are a diverse crowd. And often they misunderstand each other.

Misunderstandings lead to complaints, complaints lead to fights, and fights lead to more misunderstandings. Let me be your mediator and explain the different groups to you.

Types Of Valuable Twitter Users


1. The Listener

The Listener is a Twitter User, who follows (topics, people, friends or celebrities) – but doesn’t feel the need to be followed. That doesn’t mean he is worthless, though. Listeners are the accounts that are in the game for information, and whenever they find a piece of information they suck it up. They follow a few friends and a lot of accounts they feel give them the information they need – yet you shouldn’t expect interaction from them. The best you can hope for is a click on the Retweet button from time to time.

The value they bring

Listeners actually bring a lot of value to Twitter, though it often goes unnoticed. They are the ones who are most interested in the content that is provided. They suck up the information, and although it seems that all you get is a random retweet – in fact, you collect readers.

2. The Facebook Runaway

You meet them on every social network these days – yet on Twitter, they can be particularly annoying. The Facebook Runaways! They simply don’t get that Twitter is different and has a different social structure than Facebook. They are here because they “don’t want Facebook spying” on them, or “don’t believe in Facebook’s censorship”.

The problem is: They want to use Twitter like they have used or would use Facebook. They follow their friends and a few brands (those they would “like” on Facebook). They get annoyed when someone follows them 

The value they bring

As annoying as this type of Twitter users can be – be patient. These are intelligent people too (sometimes), and over time, they will convert to regular Twitter users. They will get comfortable with the way social interactions are made on Twitter, and while they are not willing to interact with _you_ at first, they are interacting with their friends and acquaintances. Twitter still needs growth – and once these people get comfortable with the regular chit-chat on Twitter, who knows, they might enjoy the openness.

3. The Interactor

Interactors are the complete opposite of the Listeners. They talk a lot on Twitter, send you questions, talk about random things (either business or even personal) with seemingly random people. They are here not to take part in conversations – they create conversations. They turn Twitter into the global party it is.

The value they bring

This is easy – they bring value because they are the spark for conversations that spread like wildfire. Without them Twitter would be a boring place, they make it fun. If you want to target on Twitter – these might not be the Twitter users who will constantly click on the content you post, but if they do and like it, you have engaged the ones that have the power to make you trending (if you are very lucky).

4. The Entertainer

This group is somewhat similar to the Interactors – but there is a difference: The Interactor interacts because he likes interacting, the entertainer needs an audience. And while the entertainer is also very keen to talk to you, he also is very keen to post content (and often even to create content).

If this sounds like the entertainer is an egocentric version of the Interactor, that is because he is.

The value they bring

Imagine a college party. There are people talking to each other, people who have talked to every single guest at the party. And then there is always, at least, one guy or girl everyone remembers: He/she talks slightly louder than everyone else, he cracks jokes, tells everyone stories of his life; if a girl gives him her number she knows she has only a 10% chance of ever getting a call.

Not everyone likes him, and everyone agrees that he is over the top and sometimes annoying. But although many wouldn’t admit it, without him, the party wouldn’t be a party at all.

5. The Seeder (Marketer Type A)

Seeders treat Twitter like an information stream, and (as marketers), they see their role as presenting themselves as sources for as much information as possible. Many of them tweet content as often as every 15 – 20 minutes, and while this may seem strange to newcomers – if they do it well you might not even notice.

Many from this group tweet primarily on autopilot – recurring queues of Tweets, heavy usage of Buffer. Often they measure their tweets and topics on how they perform within their audience and they almost definitely grow their audience actively.

The value they bring

Many people use Twitter as a stream of information – and this is who the Seeder is after. Information is king on Twitter and if you manage to implement yourself in the content stream with your sources of content (without becoming a spammer) – you are a winner.

Look at your Twitter stream: What would it be without the valuable information? A lot of this information is spread and passed on to other Twitter users by Marketers. Do you really mind (as long as the information is truly relevant)?

6. The Ambassador (Marketer Type B)

Ambassadors promote products they believe in. They build an audience that trusts them – and has good reason to trust them. Because they never promote things they don’t like or use themselves. Or if they do they say: This might be interesting, but I haven’t tried it yet.

These people might be Entertainers, Interactors or Seeders as well – yet when they promote a product you can be sure that they are convinced it is worth it


The value they bring

In a world where new products appear every day, Ambassadors are not only valuable; they are needed desperately – how else would you find the product you need?

7. The Newbie

New account, no profile picture, no idea of how to find his or her way around the network, sometimes scary behavior. Like a teenager on his first college party. Often imitating the behavior of others. You get the picture.

The value they bring

Just like the Facebook Runaways, these will hopefully “get it” in the future. They need our help and support and shouldn’t be seen as outsiders – don’t we all want Twitter to grow?


8. Inactive Accounts

A lot of people sign up for Twitter but often don’t stay active. These become inactive accounts – no tweet for weeks and month, no messages, no activity.

The value they bring

Believe it or not – many people don’t get Twitter from the start. But that doesn’t mean that they will never get it.

So stay calm and wait. While these might not provide value now, they also don’t do damage.

9. The Regular Twitter Users 

A lot of people just use Twitter without thinking about what they do. They are a bit of everything above. And that’s ok.

Isn’t it a bit harsh to call someone useless? Well, maybe but before you decide on your verdict about my behavior, read on and decide for yourself whether you have a better way to describe these Twitter user types.

10. The Spammer (Marketer Type C)

These are similar to Seeders in the way that they post often, and they try to induce their message into the stream of information – it’s just that their messages are useless. No real information, repetition to excess.

And since they don’t provide value, their messages simply don’t work – and since they do notice this they get even more annoying by mentioning random Twitter handles, trying to raise attention by insulting people.

And while a good marketer knows his audience and knows how to grow his audience by targeting the right people/accounts, these idiots simply don’t. They often have Twitter accounts with over 100k followers – which they probably bought for little money.

Value? None. Annoyment factor: 5/10

 

11. The Troll 

If Spammers are annoying, Trolls are sneaky little 🤬 that do real damage in the virtual world. All other types of Twitter users are actually reflections of social groups in the real world – Trolls are not.

They insult people (for no apparent reason or at least not legitimate reasons). They come up with surprisingly well-developed plans to create fights between certain groups, they bully people, they lie, they scheme, they hack accounts and use them for their purpose, …

These people often appear to be different in real life – sometimes even respectable, but in the anonymity of the social web, they show their real personalities.

These types hide in every society on the planet – sometimes they come out when a political system drifts into a dictatorship, racism or other unfavorable directions. They are not simply not nice people – they strive when you give them an audience, they become dangerous when you give them power, and they prosper when you give them the opportunity to believe they are better than others with their narcissistic belief system.

In reality, they are simply cowards striving for attention. Don’t give it to them.

Don’t feed the §$!§$” troll!










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